बीमारी कैसी भी हो। वह अच्छे भले इंसान को इंसान से मरीज बना देती है। जब व्यक्ति किसी भी बीमारी से ग्रस्त होता है। तब वह मनुष्य न होकर एक मरीज होता है। उस वक्त उसे लोग ही नहीं,अपने चिरपरिचित भी उसको मरीज की दृष्टि से निहारते हैं। उसकी देखभाल भी इंसान की तरह नहीं करके मरीज की तरह करते हैं। ताकि वह शीघ्र स्वस्थ हो जाए। मुल्क में एक बीमारी ऐसी है। जिसकी चपेट में आने पर व्यक्ति बीमार तो नहीं होता। पर हालत बीमार से बदतर हो जाती है। आजीविका की गाड़ी सही ढंग से चल नहीं पाती है। घर में आए दिन गृहकलह रहता है। उस बीमारी का नाम है बेरोजगारी। जो सब बीमारियों पर भारी है। यह मौसमी बीमारी नहीं है। मौसमी बीमारी होतो रोकथाम की संभावना रहती है। पर यह तो बारहमासी है। इससे पीडि़त व्यक्ति नहीं सही ढंग से जी पाता है और नहीं मृत्यु को पाता है। रोजगार दवा हेतु दर-दर की ठोकर खाता फिरता है।
बंदा बेरोजगारी बीमारी की चपेट में कैसे आता है। जब रोजगार की तलाश में पस्त हो जाता है। तब बेरोजगारी बीमारी से ग्रस्त हो जाता है। शिक्षित बेरोजगार इस बीमारी की चपेट में कैसे आता है। यह शिक्षित बेरोजगार दीनू की मनोदशा से समझ सकते है। विविध डिग्रीधारी दीनू ने पहली बार कंपटीशन दिया तो एकाध अंक से लुढ़क गया। दूसरी बार दिया तो मामला कोर्ट में अटक गया। तीसरी बार दिया तो पेपर लीक हो गया। चौथी बार आवेदन किया तो भर्ती निरस्त हो गई। इसके बाद सिलसिला ऐसे ही गुजरता रहा। कभी पेपर लीक तो कभी मामला कोर्ट में चलता रहा और कभी खुद एकाध अंक से लुढ़कता रहा। फिर भी कभी पस्त नहीं हुआ। समय का पहिया अपनी गति से चलता रहा। जो ख्वाब संजोए थे। वे समय के पहिए के तले कुचलते गए। नौकरी पाने के चक्कर में कब बेरोजगारी बीमारी से पीडि़त हो गया। खुद को भी पता नहीं। ऐसा भी नहीं है कि दीनू होशियार नहीं था। दीनू प्रथम जमात से प्रतिभा का धनी रहा है। आज वहीं प्रतिभा का धनी। धन के पीछे भाग रहा है। फिर भी धन पकड़ में नहीं आ रहा है। जो पकड़ में आ रहा है। वह घर-गृहस्थी से होकर वापस जा रहा है। बचत के नाम पर ठेंगा है। यह कहानी अकेले दीनू की ही नहीं। बल्कि हर उस शिक्षित बेरोजगारी की है,जो बेरोजगारी बीमारी से ग्रस्त है।
‘पहले नौकरी बाद में छोकरी’ का प्रण लेने वाले। इस बीमारी से पीडि़त होने के उपरांत शीघ्र ही प्राणिग्रहण संस्कार में बंध जाते हैं। इनके घरवाले शादी जल्दी इसलिए कर देते हैं। नौकरी चक्कर में कहीं छोकरी भी नहीं मिली तो जिंदगी भर कुंवारा बैठा रहेगा। इस बीमारी से पीडि़त,चाहकर भी घरवालों के खिलाफ नहीं जा सकता। खिलाफ चल तो जाए। पर खिलाफ जाने के सभी रास्ते अवरुद्ध होते हैं। जाए तो किधर से जाए। दुस्साहस करके अवरूद्ध रास्ते से चल भी गया तो काम से गया। काम से गया तो तमाम से गया। इसलिए अवरूद्ध रास्ते से कोई नहीं जाना चाहता है।
शादी के उपरांत धर्मपत्नी को क्या-क्या चाहिए होता है। इससे तो आप अच्छी तरह से वाकिफ है। पत्नी पतिदेव को आए दिन रसोई से लेकर अपने सौंदर्य प्रसाधनों तक की फेहरिस्त थमाती रहती है। जो इस बीमारी के पीडि़त से कभी पूरी नहीं हो पाती है। जब पत्नी द्वारा दी गई फेहरिस्त पूरी नहीं होती है। तब गृहकलह होता है। गृहकलह होता है तो न जाने पति को क्या-क्या सुनना पड़ता है। कहने की तो हिम्मत नहीं होती। चुपचाप सुनना ही पड़ता है। सुनने में भलाई है। अन्यथा शामत नहीं।
महंगाई की मार का भार शिक्षित बेरोजगार उठा नहीं पाता है। बड़ी मुश्किल से उठाने की कोशिश करता है तो लडख़ड़ा कर गिर जाता है। गिरे हुए को कोई उठाने भी नहीं आता है। सब देखकर चलते बनते हैं। खुद को ही उठना पड़ता है। फिर से खड़े होकर जैसे-तैसे महंगाई की मार का भार उठाना ही पड़ता है। क्या करें? बेरोजगारी बीमारी से पीडि़त है। जिसका इलाज भगवान भरोसे हो जाए तो हो जाए। अन्यथा वह इस बीमारी से जूझता रहता है। इस बीमारी का कोई अस्पताल तो होता नहीं। नहीं कोई डॉक्टर होता है। इसकी नहीं कोई दवा। दुआ ही इसकी दवा है। जो कुछ चमत्कार होता है,वह भगवान भरोसे होता है। होने को तो भरोसा भरसक होता है। पर जिस पर भरोसा होता है और वह भरोसेमंद नहीं निकले। तब भरोसा भरसक न होकर भूसा हो जाता है। भूसा भी ऐसा होता है। पशु मुंह मारकर दूर हट जाते हैं। किंतु भगवान पर भरोसा तो भरोसा ही होता है।
जो शिक्षित बेरोजगार बेरोजगारी बीमारी से पीडि़त है। वह जब देखों तब ही किस्मत का रोना रोता रहता है। उसकी दिलोदिमाग की शक्ति निर्बल पड़ जाती है। वह चाहकर भी अपनी स्थिति सुधार नहीं पाता है। उसको अपनी अर्हता के अनुरूप कार्य मिलता नहीं और देहाड़ी मजदूरी होती नहीं। अर्हता के मुताबिक कार्य मिलता है तो वेतन अर्हता के अनुरूप नहीं मिलता है। ऐसी स्थिति में यह बीमारी दिन-ब-दिन बढ़ती जाती है। हां इस बीमारी का एक रामबाण उपाय है। अपनी अर्हता के मुताबिक प्रतियोगिता परीक्षाओं की निर्धारित आयु सीमा से पूर्व नौकरी मिल जाए तो निजात मिल जाती है। अन्यथा यह बीमारी महामारी बन जाती है। जब महामारी बन जाती है तो इसका इलाज लाइलाज है। जिंदगी भर सताती है। अपनी साथ ओर बीमारियों को भी बुला लेती हैं।