27 Jun 2018

महंगाई,भ्रष्टाचार दोनों बेलगाम घोड़े


मुद्दा तो कुछ नहीं चाहता। जो कुछ चाहता है वह मुद्दईगिरी चाहता है। मुद्दा तो अवाम के बीच में रहना चाहता है। लेकिन मुद्दईगिरी उसे घसीटकर धरना  स्‍थल पर ले आता है। कुछेक मुद्दे तो बेचारे मुद्दों जैसे दिखते जरूर हैं,पर मुद्दे होते नहीं। उनको भी तिकड़म-अकड़म लगाकर मुद्दों की बिरादरी में शामिल कर देता है। एक बार मुद्दों की बिरादरी में शामिल हो गया फिर उसकी हालत भी धोबी के कुत्‍ते जैसी हो जाती है,जो न घर का न घाट का रहता है। 
महंगाई,भ्रष्टाचार
सच्‍चा मुद्दईगिरी वहीं है,जो मद्दे से निजात दिलाने से पूर्व उसे मीडिया से कवरेज करवाता है। विषय विशेषज्ञों से विश्‍लेषण करवाता हैं। विश्‍लेषण के दौरान तर्क-तर्क नहीं रहती और वितर्क-‍विर्तक हो जाती है। सच्‍चा मुद्दईगिरी वहीं है,जो लाठीजार्च की शुभ घड़ी में,अपनी टोपी किसी ओर के सिर पर रखकर रफूचक्‍कर हो लेता हैं। जिसके सिर पर टोपी होती है। उसकी लाठीचार्ज से भेंट होती है। लाठीचार्ज भेंटवार्ता में जिसकी भेंटपूजा ज्‍यादा होती है। वह लाठीचार्ज से ऐसा चार्ज होता है। फिर अस्‍पताल से ही डिस्‍चार्ज होता है।
कुछ भी कहों,जो भी किसी भी मुद्दे पर मुद्दईगिरी करता हैं। सबसे पहले अपना उल्‍लू सीधा करता है। मुद्दे का क्‍या है? उसे निजात मिले या ना भी मिले। उसका श्रेय मिलना चाहिए। श्रेय मिल गया तो मुर्दा व्‍यक्ति को भी मुद्दा बना देता है। उसको तो मुद्दे से मतलब है। फिर चाहे मुद्दा जिंदा हो या मुर्दा। लेकिन हो मुद्दा।
मुद्दों का क्‍या है? इनका आवागमन तो जारी रहता है। एक परलोक नहीं पहुंचता। उससे पहले दूसरे का आविर्भाव हो जाता है। मुल्‍क में मुद्दों की भरमार है। कोई इस पार है,तो कोई उस पार है और कई आर-पार है। जो आर-पार है,वे सदाबार हैं। जैसे महंगाई और भ्रष्‍टाचार। यह दोनों बेलगाम घोडे़ हैं। जिधर मन करता है उधर ही दौड़ पड़ते हैं। इनकी राह में जो भी आता हैं। उसे यह अपने पैरों तले कुचल देते हैं। इन पर तो वह भी सवार नहीं होता,जो अश्‍वरोही होता है। ये दोनों घोड़े तो चाबुक मारने पर भी काबू में नहीं आते,बल्कि बिदक जाते हैं। और इनसे तो मुद्दईगिरी भी डरता है। वह भी ऐसे मुद्दों पर मुद्दईगिरी करता हैं। जिन पर करना कुछ भी ना पड़े और पूरा का पूरा श्रेय खुद को मिले। इन बेलगाम घोड़ों पर लगाम तो अवाम ही लगा सकती है। अवाम के पास वह चाबुक है,पर उसका इस्‍तेमाल नहीं करती। जिस दिन चाबुक उठा ली। उस दिन ये घोड़े तो क्‍या इनके बाप भी हिनहिनाएंगे तक नहीं। मुद्दईगिरी का क्‍या है?इसलिए बस वो मौके की तलाश में रहता है। जैसे कोई तनिक सा अवसर मिला मुद्दईगिरी शुरू। खास बात यह कि मौका और अवसर ऐसा वैसा नहीं होना चाहिए।मौका ऐसा हो जिससे पूरा लाभ उसे ही मिले। अगर ऐसा नहीं है तो फिर क्‍या फायदा। उसे तो किसी ना किसी मुद्दे पर मुद्दईगिरी ही करना है। किसी भी मुद्दे का नेस्‍तनाबूद तो आप और हम ही कर सकते हैं।

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