मोहन लाल मौर्य
व्यक्ति चार लोगों से
डरता हैं। अन्यथा पता नहीं क्या से क्या कर दे। आप सोच रहे होंगे। भला ये ‘चार लोग’ है कौन और
व्यक्ति इनसे डरता क्यों हैं? मैं आपको बता दूं ये ‘चार लोग’आप हम में से ही होते हैं। जरूरी नहीं पुरूष ही हो,महिलाएं भी हो
सकती हैं। ये ‘चार लोग’ नारदमुनि गुणों
से युक्त होते हैं। राई का पहाड़ और बात का बतंगड़ बनाने में महारथी होते हैं।
इसको उसकी और उसकी इसको, मिर्च-मसाला
लगाकर कहना इनका कार्य है। खुशामद करने व करवाने में अग्रणी रहते हैं। जो इनकी
खुशामद करता है,वह खुशहाल रहता है और जिसकी ये खुशामद करते हैं उसे कंगाल करने में
लगे रहते हैं। ये किसी के फटे में ही टांग नहीं अड़ाते बल्कि फटे,पुराने व नये में
भी अपनी टांग फंसा देते हैं। इनको तो अपनी टांग फंसाने से मतलब रहता हैं, फिर चाहे
फटा,पुराना व नया ही
क्यों ना हो? टांग फंसाने के
लिए बस थोड़ा सा फटा हो। कैसे भी करके एक बार फटे में टांग फंस जाए, फिर उस फटे को
ओर फाडऩे में तो ये सिद्धहस्त हैं।
ये ‘चार लोग’ चहूंओर विराजमान
रहते हैं। अपनी शातिर निगाहों से चलते-चलते ही ताक-झांक कर लेते हैं। कौन कब घर आ
रहा है और कब घर से जा रहा है? कहां जा रहा है और कहां से आ रहा है? किसके नल में
ज्यादा पानी आता है और किसके नल में कम आता है। किसका नल दिनभर खुला रहता है और
किसका नल बंद रहता है। रामू के घर में क्या चल रहा है? श्यामलाल की बीवी
बेलन से उसकी रोज मरम्मत क्यों करती है? मदनलाल की बीवी अपनी पड़ोसिनों कमला और विमला से क्या
कानाफूसी करती है? जेठाराम का लडक़ा
किसकी लडक़ी से नैन मटक्का कर रहा है? इन सब बातों की भनक लगते ही ये ‘चार लोग’ प्रचार-प्रसार
करने में जुट जाते हैं। जहां कहीं भी इनको दो-चार लोग मिल गए या बैठे हो, वहीं अपनी पोटली खोल देते है। एक बार बात दो से
चार में गई। उसके उपरांत कुछ ही देर में सिलसिला एक-दूसरे से आगे बढ़ता हुआ
सर्वविदित हो जाता है। आधुनिकता में सोशल मीडिया ने इनका काम ओर भी आसान कर दिया
है। बस कॉपी-पेस्ट करना होता है। बाकी का काम तो खुद-ब-खुद ही हो जाता है। इनके
वक्तव्य की पहली शर्त होती है-‘देख किसी से कहना मत और कह भी दे तो मेरा नाम मत लेना। अगर
मेरा नाम आ गया तो देख लेना तेरी खैर नहीं।’ जब सूनने वाला इस शर्त को फॉलो कर लेता है। फिर उसे पूरी
स्टोरी बताते है। बाकायदा टीवी सीरियल की तरह चलचित्र दर्शाते है। एक-एक पात्र से
परिचय करवाते हैं और उनका चरित्र बताते हैं।
इन चार लोगों की वैसे तो
तकरीबन सारी क्रिया-प्रतिक्रिया तंदुरुस्त रहती है,पर पाचन शक्ति कमजोर रहती है।
इनको आप किसी भी तरह की बात कह दो। ऊपर से कसम भी दिला दो। इनके हजम नहीं होगी। जब
तक आपके द्वारा कहीं बात दो-चार को कानाफूसी नहीं कर दे। तब तक इनके पेट में
मरोड़े उठ़ते रहते हैं। कुलबुलाहट लगी रहती हैं। मैं सोचता हूं,भला इनके भोजन
कैसे पचता होगा?
इनके भय से हर
कोई भयभीत रहता हैं। मां-बाप अपने बेटा-बेटी को यहीं कहता है-तुम कोई-ऐसा-वैसा काम
मत करना, अन्यथा ‘चार लोग क्या
कहेंगे’। बात चार में चल
गई तो हमारी नाक कट जाएंगी। एक बार नाक कट गई तो किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं
रहेंगे। समाज में रहने के लिए नाक का होना जरूरी है। फिर चाहे नाक कैसे भी हो? लम्बी हो,छोटी हो,टेड़ी-मेड़ी
हो। बस कटी हुई नहीं हो। जब नाक साफ करते वक्त जरा सा नाखून लगने से नाक कट जाती
है,तब भी बहुत तकलीफ होती है। यहां तो मामला बिरादरी की नाक का हो जाता है।
बिरादरी में नाक कटने पर तकलीफ नहीं बदनामी होती है। व्यक्ति तकलीफ तो सहन कर लेता
है, बदनामी सहन नहीं होती। हर कोई यहीं चाहता है कि समाज,बिरादरी में मेरी
नाक ऊंची रहे। नाक कटे नहीं। शायद इसीलिए व्यक्ति इन चार लोगों से डरकर ही रहता
हैं।
मजे की बात है कि इन चार
लोगों का तो बाल भी बांका नहीं होता। जिसका होना होता है उसका हो जाता है। ये तो
अपना काम कर चलते बनते हैं। पीछे से चाहे कुछ भी हो इनकी सेहत पर क्या फर्क पड़ता
हैं। जो भी पड़ता उस पर ही पड़ता है। वहीं दबता और वहीं झूकता है। इनके आगे नहीं
सही पर किसी ना किसी के सम्मुख तो झूकता ही है। नहीं झूके तो अकिंचित भी कीचड़
उछाल देता है। जिसका वजूद न के बारबर होता है। पर क्या करें? जब जिसका वक्त
होता है वहीं हावी होता है। जिस पर हावी होता है वह भीगी बिल्ली की तरह म्याऊं
रहता है। फिर चाहे वह शेर क्यों ना? ये लोग चाहते भी यहीं है कि शेर हमारे समक्ष दहाड़े नहीं।
बिल्ली की तरह म्याऊं-म्याऊं ही करता रहे। इनको शेर की दहाड़ नापसंद है और बिल्ली
की म्याऊं- म्याऊं पसंद है। क्योंकि ये भी बिल्ली की श्रेणी में आते हैं। जिस तरह
बिल्ली घर-घर जाती है। उसी तरह ये भी दिनभर इधर-उधर ही भटकते रहते हैं। मेरा मानना
है इनसे जो जितना भयभीत रहता है। वह उतना ही पीछे चला जाता है। आप-हम पूरी जिंदगी
इसी भय में गुजार देते है कि ‘चार लोग क्या कहेंगे’और अंत में चार लोग यहीं कहते है-‘राम ना सत्य है’। उस वक्त आप-हम
इस मोह-माया संसार को छोडक़र परलोक की यात्रा पर होते है। जहां ये ‘चार लोग’ नहीं चार यमदूत
होते हैं।
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