मोहन लाल मौर्य
वसंत एक फरवरी को परदेश
से आया था। मैंने ही नहीं दीनू काका ने भी देखा था। देखा क्या था,उसने दीनू काका
के पैर भी छूए थे। काका ने शुभाशीष भी दिया था-‘जुग-जुग जियो। यूं ही आते-जाते रहना।’ वसंत समूचे
मोहल्ले वासियों का चेहता हैं। हर साल
इन्हीं दिनों घर आता है। कपड़ों का बैग भरकर लाता हैं। वसंत को पीले वस्त्र
बहुत प्रिय हैं। उसका रूमाल तक पीले रंग का होता है। सब उससे मिलना चाहते हैं। पर
जबसे आया है, दिखाई नहीं दे
रहा है।
कल रामू काका पूछ रहे थे-
‘सुना है वसंत आया
हुआ है?’ मैंने कहा-‘आपने ठिक सुना
है।’ यह सुनकर वे
बोले-‘तो फिर वह कहां
है? मैंने तो उसे
देखा ही नहीं और ना वह मुझे मिला है।’ इस पर मैंने उन्हें समझाते हुए कहा-‘आजकल वह आप से ही
नहीं, किसी से भी
मिलता-जुलता नहीं है।’ रामू काका चौंके-‘क्या कह रहे हो? वसंत ऐसा लडक़ा
नहीं है। वह तो जब भी आता है, सबसे मिलता है। बड़े-बुजुर्गों का अदब करता। प्यार-प्रेम की
वार्ता करता है। जरूर किसी कार्य में व्यस्त होगा।’
रामू काका वसंत से मिलने
उसके घर पहुंचे। पर वह वहां नहीं था। उसके मां-बाप बता रहे थे कि जबसे आया है, फेसबुक पर ही
चिपका रहता है। पता नहीं क्या हो गया है? गुमसुम रहता है। पहले तो खेत-खलियान में भी जाता था। सरसों
के फूल बरसाते हुए आता था। सबसे मिलता-जुलता था। दिनभर खुश रहता था।
अगले दिन मैं गया तो वसंत
अपने कमरे में बैठा फेसबुक पर लिख रहा था- ‘मैं वसंत हूं। परदेश से तुम्हारे लिए आया हूं। एक खास गिफ्ट
लाया हूं। वैलेंटाइन डे पर मिलेगे...।’तभी उसे कमरे में मेरे दाखिल होने का भान हुआ। उसने गर्दन
मेरी आरे घुमाई और बोला-‘आप और यहां। कैसे
आना हुआ?’
मैंने कहा-‘भाई! आपसे मिलने
आ गया। आप जबसे आए हो, मिले ही नहीं।
आपको रामू काका भी पूछ रहे थे। कईयों को तो यकीन नहीं है कि वसंत आ गया है।
आखिरकार बात क्या है?’ वसंत बोला-‘बात-वात कुछ नहीं
है। अभी तुम जाओं। मैं व्यस्त हूं। शाम को फेसबुक पर ऑनलाइन मिलते हैं। वहीं
वार्तालाप करते हैं।’
मैं मन मसोसकर चला आया।
रास्ते में रामू काका मिले। उन्होंने पुन: पूछा-‘वसंत मिला क्या? नहीं मिला तो कहां मिलेगा?’मैंने कहा-‘काका,वसंत तो अब
फेसबुक पर ऑनलाइन मिलेगा।’
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