मोहन लाल मौर्य
गांव की चौपाल में एक विशाल पीपल का पेड़ है।
उसके चारों ओर चबूतरा बना हुआ है। जिस पर सुबह-शाम कबूतर चुग्गा चुगते हैं और
दोपहर में बुजुर्ग लोग ताश-पत्ती खेलकर अपना टाइम पास करते हैं। यदा-कदा पंच-पटेल फैसला
करते हैं। फैसले में न्याय होता है या अन्याय। यह तो पीपल की टहनियों पर बैठे
कबूतर भी जानते हैं। पर खामोश रहते हैं। गुटरगूं-गुटरगूं नहीं करते। किस की कहे और
किस की नहीं कहे यह दिक्कत रहती है। एक बार अन्याय के खिलाफ गुटरगूं-गुटरगूं की
थी। किसी ने सुनी ही नहीं । एक दफा जन सुनवाई में भी गुटरगूं-गुटरगूं की थी। उस
वक्त सुनकर अनसुनी कर दी। इसलिए टहनियों पर ही बैठे रहना ही उचित समझते हैं।
गांव के छोटे-मोटे सार्वजनिक कार्यक्रम इसी
पीपल तले बने चबूतरे पर आयोजित होते हैं। कार्यक्रमों को देख-देखकर कई कबूतर बड़े हुए
हैं और कई बुजुर्ग हो गए हैं। कबूतरों ने यहां रामलीला देखी है और धूमधाम से
राष्ट्रीय पर्व भी मनाए हैं। रावण दहन पर रावण जलता देखा और होली दहन पर होली जलती
देखी हैं। मदारी का खेल-तमाशा और जादूगर का जादू देखा है। पर जो चुनावीं मौसम में
देखने और दाने चुगने को मिलता है। वह ऐसे अवसरों पर कहां मिलता है। चुनाव में आए
दिन चबूतरे पर सभाएं होती हैं। जिस दिन जनसभा होती है। उस दिन कबूतर खुश रहते हैं।
उन्हें मुफ्त में दाना-पानी मिलता है। कहीं पयालन उड़ान भरने की जरूरत ही नहीं
पड़ती। बल्कि बैठ-ठाले ही बंदोबस्त हो जाता है। जब भी चुनावीं मौसम आता है। पीपल
के कबूतरों के ‘अच्छे दिन’ आ जाते हैं। नित्य किसी ना
किसी नेताजी का कार्यकर्ता चबूतरे पर दाना-पानी की व्यवस्था कर देता है। दाना
चुगकर दिनभर मस्त रहते हैं। पर ज्यों ही चुनावीं मौसम खत्म होता है। दाना-पानी
चुगने के लाले पड़ जाते है। दाने-दाने के लिए मोहताज होना पड़ता है। कई बार तो दो
चार दिन तक दाना-पानी नसीब नहीं होता है। कबूतर तो चाहते है कि रोज सभाएं हो। रोज
सभाएं होंगी तो मुफ्त में दाना-पानी मिलेगा। मुफ्त का माल भला कौन छोड़ता है।
सुनने में आया है कि पीपल कटने वाला है। जब
से कबूतरों ने यह खबर सुनी है चिंतित हैं। पीपल न रहेगा तो यहां सभाएं नहीं होंगी
और सभाएं नहीं होगी तो दाना-पानी भी नहीं मिलेगा। चुनावीं मौसम में कहे तो किस से
कहे। नेताजी भी अपने प्रचार-प्रसार में व्यस्त है। चलो नेताजी से कहकर देखते वे ही
कोई ना कोई हल निकालेंगे। यह सोचकर नेताजी के पास गए। नेताजी ने कहा- मैं जीत गया
तो पीपल को कभी नहीं कटने दूंगा। यह मेरा आपस से वादा है। दाना-पानी की भी
व्यवस्था करवा दूंगा। चौबीस घंटे चबूतरे पर दाना-पानी उपलब्ध रहेगा। यह सुनकर
कबूतर प्रफुल्लित हो गए और नेताजी को दुआएं देने लगे। नेताजी ने आश्वासन तो दिया
है। यह तो चुनाव जीतने के बाद पता चलेगा पीपल कटता है या यथावत रहता है।
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