रावण ने देखा अपना दहन
रावण दहन का लाइव कास्ट
देखने खुद रावण भी आया है। रामलीला मैदान खचाखच भरा हुआ है। कोलाहल माहौल है। सबकी
निगाहें रावण पर टिकी हुई है। माइक से नेताजी के आने की उद्घोषणा हो रही है। चहुंओर
उत्साह है। पुतला सज-धज कर तैयार है। इत्ते बड़े रावण को देखकर रावण भी हैरान है।
वह भी मन ही मन सोच-विचार कर रहा है. मेरी कद-काठी तो इत्ती नहीं थी। जित्ती इसकी
है. मेरे तो दंत पीले थे,इसके तो सफेद है। लगता है इसने अच्छी क्वालिटी की टूथपेस्ट यूज की
है। इसकी मूंछ वानर की पूंछ से मिलती-जुलती है। इस वानर की पूंछ ने ही तो सत्यानाश
किया था,लंका का। सोने की लंका को जलाकर खाक कर दिया था।
इस वानर से तो राम बचाएं। राम कैसे बचाएंगा? राम का तो मैं शत्रु था। राम की धर्मपत्नी का तो मैंनें अपहरण किया
था। मैंनें सीता माता का अपहरण जरूर किया था।लेकिन उसके आत्म सम्मान को रत्ती भर
भी ठेस नहीं पहुंचाई। और आज जो मेरा अनुसरण कर रहे हैं। वे अपहरण भी करते हैं।
फिरोती भी मांगते है,फिरोती न मिले तो टपका
भी देते हैं। और न जाने क्या-क्या करते हैं?कलियुग रावण तो मेरे से दो कदम आगे हैं। फिर लोग इन कलियुग रावणों
का तो दहन करते नहीं.मेरा ही करते है.जो कि सरासर अन्याय है।
रावण यह सब सोच ही रहा था कि इत्ते में ही नेताजी आ गए। आते ही
नेताजी ने पुतले की नाभि में तीर मारा और बम-पटाखों की धड़ाम-धम होने लगी। देखते ही
देखते रावण जलकर खाक हो गया। लोग कह रहे थे,‘बुराई पर अच्छाई की विजय हुई’। रावण मन ही मन मुस्कुराने लगा। इस दिन हर साल बुराई जलती है। फिर
साल भर में इतनी बुराई कहां से आ जाती है। तुम लोगों को मेरे में बुराई दिखती है
स्वयं में नहीं। मैं तो इत्ता भी बुरा नहीं था। जित्ते तुम हो। रावण ने पब्लिक की
नब्ज टटोलने के लिए,मानव के हृदय में झांक
कर देखा तो रावण बैठा था। उसकी न मोटी-मोटी आंखें हैं,न भुजाओं में बल हैं। ललाट पर कोध्र की लकीर नहीं। लेकिन मन में
ईर्ष्या,लोभ-लालच,छल कपट भरा पड़ा है।
दशहरा मैदान से रावण सीधा नेताजी के घर गया। नेताजी के मन में झांक
कर देखा तो चकित रह गया। यह क्या? जिस मन ने अभी मेरी नाभि में तीर मार कर मेरा नेस्तनाबूद किया था
और मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की भूमिका अदा की थी। उस मन में घोटाले की मंशा
उछल-कूद कर रही है। बस मौके की ताक में है। यहां से रावण एक सरकारी दफ्तर में घूस
गया। वहां के कर्मियों के मन में झांक कर देखा तो होश उड़ गए। यह क्या?यहां तो रिश्वत रावण बैठा है। यहां से निकल कर रावण गली में घूसा,तो देखा। कुछ गुण्ड़े एक महिला से
बदसलूकी कर रहे हैं और कह रहे है। ‘जो भी है हमारे हवाले कर दो,वरना जान से हाथ धो बैठोगी’। महिला भयभीत हो गई और उसने अपने आभूषण गुण्ड़ों के हवाले कर दिया।
रावण यह सब देखकर समझ गया और अपने लोक की ओर प्रस्थान कर गया।
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