17 Nov 2020

कड़ाही नहीं चाहती लड़ाई

कदाचित ही ऐसा कोई घर होगा,जहाँ दो बर्तत आपस में नहीं टकराते होंगे। पुरानी कहावत भी है कि घर में दो बर्तन होंगे,तो टकराएंगे भी। अक्सर नहीं तो यदाकदा टकराते होंगे। चकला-बेलन नहीं,तो कटोरा-कटोरी लड़ते होंगे। चिमटा-चमचा भिड़ जाते होंगे। थाली-प्लेट में तकरार हो जाती होगी। और नहीं तो चम्मच ही टाँग अड़ा देती होगी। नोकझोंक तो बड़े से बड़े घरों के बर्तनों में भी हो जाती है। यह भी सच है कि कई घरों के बर्तनों में सुबह कलह तो शाम को सुलह भी हो जाती हैं।

मेरे पड़ोसी के बर्तन ब्रांडेड होते हुए भी अक्सर टकराते रहते हैं। टकराएंगे तो बजेंगे भी। बजेंगे तो आवाज भी होगी। आवाज होगी तो अडोसी-पड़ोसी भी सुनेंगे। सुनेंगे तो अच्छी-बुरी बातों के संग झूमेंगे भी। झूमेंगे तो गाएंगे भी। फिर चाहे सुर बेसुर ही क्यों ना निकलेतब तक गाते रहेंगेजब तक आवाज ब्रांडेड के ब्रांड एंबेसडर के कानों तक नहीं पहुँच जाएं। ब्रांड एंबेसडर के कानों तक पहुँचाने का अभिप्राय है कि आपने जिस तरह से इश्तहार में बताया था वैसा नहीं निकला। बतौर गारंटी पीरियड में ही चमक में धमक पड़ रही है। तुम्हारे सभ्य व संस्कार धातु से निर्मित बर्तन को समझाने के डिटर्जेंट से मांजते हैं तो कुपित दाग छोड़ने लगते है।

जिसके बर्तन हैं,उसे कतई गिला-शिकवा नहीं। उसके पड़ोसी इसी चिंता में सूखे जा रहे हैं कि ब्रांडेड,सभ्य व  संस्कार की धातु से निर्मित होने के बावजूद भी बर्तन अक्सर क्यों टकराते व बजते रहते हैंआपसी टकराव की वजह क्या हैबेवजह भेजा फ्राई करने वाले पड़ोसी से अच्छा पड़ोसी वही है,जो अपनी वजह के बजाय पड़ोसी की वजह को ढूँढने में लगा रहता है। यह तो हम भी  जानते हैं बेवजह क्यों बजेंगेकोई न कोई वजह है तभी तो उनकी चम्मच भी कड़ाही पर हावी हो जाती है। इस कड़ाही से तीन और बड़ी कड़ाही हैं,उन्हें कोई कुछ नहीं कहता। यह उनके घर की सबसे छोटी कड़ाही है। आकार-विकार में नहीं। उम्र में छोटी है। छोटी कड़ाही आग में जलकर सब बर्तनों का पेट भरती है। फिर भी उनके सारे बर्तन उसी को कोसते रहते हैं। बुरा-भला कहते हैं। 

जब से यह आई है,आए दिन गृह युद्ध होता ही रहता है।पर जहाँ से यह आई है,उनके सात पीढ़ी में भी बुराई की 'बूतक नहीं और इसके सिर पर रोज बुराई का ठीकरा फूटता है। सब्जी जल गई तोसब्जी में पानी ज्यादा हो गया तो,चमचे ने अपना काम ढंग से नहीं किया तो ठीकरा इसी के माथे पर फूटेगा। गनीमत यह है कि कड़ाही लड़ाई नहीं चाहती। अन्यथा अब से पहले रक्त की नदियाँ बह जाती और न जाने कितने ही शूरवीर बर्तन शहीद हो जाते हैं।

कड़ाही को अड़ोसन-पड़ोसन बहकाती भी खूब हैं। अच्छे- खासे लोहे से निर्मित है। फिर भी जुल्म-सितम सह रही है। घुटन भरी जिंदगी जी रही है। यह भी कोई जीना है। बगावत के बाण प्रक्षेपित क्यों नहीं करतीऐसी भी क्या मजबूरी हैजुबानी जंग भी नहीं लड़ती। तेरी जगह हम हो तो जुबानी जंग के दौरान ऐसी बुरी-बुरी गालियों की गोली दागे कि सामने वाले की जुबान लकवा खा जाए। गली-मोहल्ले के तवों से तो यह तक सुना है कि कड़ाही में ही खोट है। इसीलिए खरी-खोटी सुनती रहती है। 

दरअसल में या तो यह बहुत समझदार है या फिर एक नंबर की बेवकूफ है। बहकाने के बावजूद भी नहीं बहकती। बस सुनकर मुस्कुराकर चल देती है। यह इसकी मजबूरी है या खूबी। यह भी रहस्यमय है। भगवान जाने यह किस लोहे की बनी है,जो कि इतना सितम सहने के बावजूद भी कभी लाल-पीली नहीं होती। बस मुस्कुराती रहती है।

कड़ाही  के साथ अक्सर होने वाली लड़ाई की वजह उस दिन सामने आ ही गई। जिस दिन पूरा मोहल्ला इकट्ठा हो गया था और हाथापाई में कड़ाही का एक हाथ फैक्चर हो गया था। पता चला है कि कड़ाही  की सगाई में दहेज नाम का जो ऑफर बताया गया था। वह पूरा नहीं मिला था। इसी वजह से कड़ाही साथ लड़ाई होती है।


 

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