कल तक प्याज
आलू के साथ रहता था, मगर आजकल सेब के साथ
उठने-बैठने लगा है। अपने आप को बड़ा और एलिट किस्म का
समझने लगा है। किसी भी सब्जी से सीधे मुँह बात नहीं करता है। कोई हाल-चाल भी पूछता
है तो उसे उल्टा जवाब देता है। तराजू में आने से पहले अपना मूल्य बताए बगैर नहीं
रहता है। बताए गए मूल्य में एक रुपया भी कम नहीं करता है। तराजू से ग्राहक के थैले में जाते समय बाकी सब्जियों की ओर हिकारत भरी
निगाहों से देखकर मंद-मंद मुस्कुराता रहता है। इस दृश्य को देखकर आलू,बैंगन,टमाटर,गाजर,मूली के जलन होती हैं...मगर क्या करें,बस जल भूनकर
रह जाते हैं। अपनी किस्मत को कोसते हैं और सोचते रहते हैं,प्याज
में ऐसा क्या है? जो हम में नहीं है। हम भी तो धरा का
सीना चीरकर ही बाहर निकलते हैं,फिर हममें और प्याज में इतना
भेदभाव क्यों? कहीं प्याज को सब्जियों के संविधान में कोई
आरक्षण तो नहीं मिला हुआ है? या कहीं
उसे सब्जियों में समुदाय विशेष तो नहीं माना जाता है? प्याज
तो कटते समय आँसू तक निकलवा देता है, उसके बावजूद भी उसके दाम 'ड्रोन' पर बैठकर उड़ते हैं और हमें 'ड्रेनेज' के दाम भी नहीं पूछा जाता है।
थैले में से
बाहर निकलकर प्याज जब रसोई में अपना रुतबा दिखाता है, तब लगता है मानो संजय राऊत हो गया हो। प्याज
का रुतबा देखकर चाकू भी उस पर ठीक वैसे चलने से मना कर देता है, जैसे नेतागण संवैधानिक दायरों पर चलने से मना करते हैं। चाकू चलाने वाले
हाथ वैसे ही कांपने लगते हैं, जैसे ठंड में नहाने के बाद
कांपते हैं बच्चे। प्याज को काटने वाले की आंखों से आंसू छलक आते हैं। ये आंसू
ख़ुशी और अमीरी के होते हैं कि हम प्याज खरीद पाए।
एक ही खेत की कोख से उपजे आलू और प्याज में मामला अब कुछ-कुछ वैसा हो गया है, जैसे एक ही परीक्षा देकर आरक्षण पाने और आरक्षण न पाने वाले के बीच हो जाता है। प्याज को ज्यादा भाव में तौला और तुलवाया जा रहा है, जबकि आलू को कम। यह ठीक वैसा है जैसे परीक्षा परिणामों में आरक्षित और अनारक्षित के लिए तय होते हैं अलग-अलग कटऑफ।
इधर, प्याज का कहना है कि जब मैं सड़क पर पड़ा-पड़ा सड़ रहा था,तब कोई भी सब्जी पूछने तक नहीं आई कि भाई तुम्हारी ऐसी दुर्गति क्यों हुई। मगर अब यदि मैं ठाठ-बाट में हूँ तो सब्जियों से मेरा सुख देखा नहीं जा रहा हैं? मुझे देखकर जलने लगते हैं। मुझसे ईर्ष्या करते हैं। प्याज का दुःख अपनी जगह सही है, लेकिन इसमें आलू का भला क्या दोष? आलू अपने तमाम गुणों के बावजूद सब्जी की दुकान पर जमी टोकरियों के पीछे धकेल दिया गया है। फिर भले ही वह हर सब्जी के साथ स्वयं को को एडजेस्ट करने को तैयार हो, लेकिन आज उसे 'विशिष्ट' का गैरजरूरी दर्जा देकर अलग बोरे में बंद करके रख लिया गया है।
खैर, जो भी हो मगर फिलहाल तो प्याज का इठलाना जारी है। इससे शेष सब्जियां रुआँसी सी हैं। आलू को ज्यादा फर्क नहीं पड़ रहा है क्योंकि वह जानता है अपनी कीमत।
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