3 Nov 2020

नाक का सवाल

उसकी भी वहीं नाक है,जो कि एक आम भारतीय की होती है। मूँछ भी कोई खास नहीं पर वह मूँछों पर हाथ ऐसे फेरता है,जैसे ‘राउडी राठौर’ फिल्म में अक्षय कुमार फेरता है। सच पूछिए तो उँगली और अँगूठे के बीच में चार बाल भी नहीं आते होंगे। लेकिन वह छोटी सी बात को भी मूँछ का बाल तथा नाक का सवाल बना लेता है। एक बार बना लिया तो बना ही लिया। फिर पीछे नहीं हटता। पक्का हठधर्मी है। 

नाक के सवाल पर तो घरवालों की ही नहीं, अगल-बगल वालों की भी नाक में दम कर देता हैं। और जब तक नाक के सवाल का जवाब नहीं मिल जाता। तब तक नासिका पर मक्खी भी नहीं बैठने देता है। इसी तरह मूँछ के बाल पर जब तक बाल में से खाल नहीं निकाल लेता। तब तक बाल को खाल से अलग नहीं होने देता हैं। 

अगर किसी ने हँसी-मजाक में भी कह दिया अमुक ने अमुक काम क्या कर दियाउसका नाम हो गया। इतना सुनते ही फलाने सिंह का काम तमाम करने में और खुद का नाम करने में जुट जाता है। चाहे परिणाम शून्य ही निकले पर जोर सैकड़े का लगा देता है। खर्चा-पानी की भी परवाह नहीं करता। नाक का सवाल और मूँछ के बाल पर तो पानी की तरह पैसा बहा देता है। वैसे एक रुपया नाली में गिर जाए तो उसे भी निकालने लग जाता है। एक नंबर का मक्खीचूस है।

पड़ोसी के लाल से अपना लाल क्रिकेट मैच हार गया तो समझता है कि नाक कट गई। हर जगह अपनी नाक ऊँची रहे। इसलिए अपने बेटे पर भी बाजी लगा देता है। उसकी हार को जीत में बदलने के लिए। जीत गया तो इस तरह ढिंढोरा पीटता है,जैसे कि पुत्र वर्ल्ड कप जीत गया हो। चुनावी मौसम में कोई यूं ही कह दे कि तुम्हारे प्रत्याशी चुन्नीलाल के तो चुनाव में चूना लगेगा। फिर भले ही चुनाव वार्ड पंच का ही क्यों ना हो?अपने उम्मीदवार को जिताने का मिशन ही मूँछ का बाल होता  है।

उसकी नाक और मूँछ का दायरा खुद तक ही सीमित नहीं है। घर-परिवार,गली-मोहल्ला,गाँव- देहात,कस्बा,शहर,राजधानी से लेकर सोशल मीडिया तक विस्तृत है। जब मोहल्ले की खुशी किसी खुशीराम के साथ भाग गई थी। तब नाक अपनी न होकर मोहल्ले की हो गई थी। उसकी खोजखबर में चिरपरिचित से लेकर अपरिचित तक से पूछताछ कर डाली और  तीन दिन में ही ढूँढ़ निकाली थी। इसी तरह फेसबुक मित्र के चित्र पर मित्र चतरसिंह की लड़की चित्रकला फिदा हो गई तो समझा कि मित्र की नाक ही मेरी नाक है। इसलिए जुदाई का कमेंट लिखकर दूर रहने की चेतावनी दे डाला। नहीं माना तो पिटाई की चटनी चटा दी। पिटाई की चटनी ऐसी होती है कि एक बार जिसने चाट ली। फिर वह भूलकर भी इश्क चाट भंडार की ओर नहीं देखता। 

ऐसी प्रवृत्ति का व्यक्ति अकेला यही ही नहीं है। आपके भी आसपास में कोई ना कोई जरुर होगा। अगर नहीं है तो आप स्वयं होंगे। चौंकिए मत। अपनी मूँछों पर हाथ फेरकर देखिए और उस बाल को पकड़िए जो मूँछ के बालों का बाप है। मूँछ नहीं है तो कतई शर्मिंदा मत होइए। ऐसा नहीं है कि बिना पूछ की घोड़ी अच्छी नहीं लगती है तो बिना मूँछ का मर्द भी अच्छा नहीं लगता है। आज के दौर में तो बिना मूँछ वाला ही अच्छा लगता है। यकीन नहीं हो तो अपनी घरवाली या प्रेमिका से पूछ लीजिए। खैर छोड़िए,मूँछ नहीं है तो क्या हुआनाक तो है। नाक को तो कोई भी मूँछों की तरह कतरनी से नहीं काटता है। इसलिए नाक को निहार लीजिए। उसका अक्‍स दिख ही जाएगा।

मोहनलाल मौर्य 


1 comment:

Unknown said...

व्यक्ति सविशेश मर्द के अहम का प्रतीक है।लेखक महोदय ने अपनी बात को सिद्ध करने के लिए विविध उदाहरण देकर अपनी बात की स्थापना की है। मैंने भी ऐसे मुच्छड़ और नाक वालों को करीब से देखा है,जो मानते है, कि शेर कभी घांस खाता नहीं है तो वह क्यों कुल, जाति के कारण मजदूरी नहीं करता,।मात्र प्रशंसा के डॉ बोल सुनकर सारा दिन एक चाय और कुछ बिडियों के लिए काम करता रहेगा।
झूठे अहम और दिखावे के लिए समयानुकुल नहीं होनेवाले के प्रति करारा व्यंग्य है।लेखक को बधाई।