कहानी/
संगत की संगति
शम्भू और
उसकी पत्नी सजना को संतान नहीं होने के चिंता अंदर ही अंदर खाई जा रही थी। रात-दिन
दोनों इसी ङ्क्षचता की आग में जलते जा रहे थे। संतानोत्पत्ति की जेहन में लगी आग
को बुझाने के लिए,शम्भू ने
बड़े से बड़े डॉक्टरों तक को नहीं छोड़ा। दकियानूसी घड़ी के विपरीत चलने वाला
शम्भू साधू-संतों के चरणों में माथा टेक कर संतान के लिए ,गिड़गिड़ता और झोली कर भीख मांगता। उनकी सेवा में स्वयं को
समर्पित कर देता। उनकी इच्छाओं की पूर्ति के लिए सदैव तत्पर रहता। वे जो भी
कर्म-कांड़ बताते उनको पूरी श्रद्धा और लगन से करता। इन कार्यों में उसकी पत्नी भी
बारबर की साझेदारी निभाती। पर,जब
अड़ोसन-पड़ोसन ताने कसती,उस वक्त तो
सजना आंसू पीकर रह जाती। परन्तु घर आकर फूट-फूट कर रोती बिलखती। अपने भाग्य को
कोसती। सजना की वेदना देखकर शम्भू की भी अश्रुधारा छलक जाती। अपनी छाती पर पत्थर
रखकर शम्भू सजना के आंसू पोंछता। उसे समझाने की कोशिश करता। देखों नियति के आगे
किसी की नहीं चलती। सजना सुबकती हुई बोली मेरा ही कसूर है। शम्भू ऐसा क्यों सोचती
हो तुम।
भाग्य में
संतान का सुख होगा तो अवश्य मिलेंगा। आखिर यह भाग्य कब साथ देगा। सात वर्ष बीत गए।
संतान की किलकारी के बिना आंगन सूना पड़ा है। इतने वर्षों में तो बंजर भूमि भी
हरी-भरी हो जाती है। इतना कहते ही सजना की ममता भर आई। आंसू टपक-टपक कर आंचल पर
गिरने लगे। सजना की ऐसी हालत शम्भू से देखी नहीं जाती थी। पर शम्भू करें भी तो
क्या करें? ढांढ़स बंधाने के सिवाह उसके पास कोई
वक्तव्य नहीं। संतान का मोह उसे साधू-संतों तक खिंच ले जाता । शम्भू आंख मूंद कर
ढोंगी-पाखंड़ी बाबाओं पर भी विश्वास कर लेता था। संतान की चाहत में अंधा शम्भू सब
कुछ जानते हुए भी दकियानूसी नदीं में कूद जाता था। ऐसा भी नहीं था किशम्भू और सजना
डॉक्टरों के पास नहीं जाते थे। उनके पास भी जाते रहते थे। अब भी सजना का इलाज शहर
के एक बड़े डॉक्टर के पास चल रहा था। इन दिनों में गांव के शिव मंदिर में एक
पहुंचा हुआ बाबाजी आया हुआ था। शम्भू कर्म-कांड की दुनिया से ऊब गया था। किन्तु
गांव के ही मंदिर में बाबाजी आया हुआ है,तो जाने
में क्या हर्ज है? शम्भू के
अत:मन में यह बात आई और शम्भू बाबाजी के पास जा ठहरा। जाते ही बाबाजी के चरणों में
गिर गया। रोते रोते अपनी वेदना बताई। बाबाजी ने अपने झोली से थोड़ी सी बभूत निकाल
कर शम्भू को दी।
बाबाजी ने
सिर पर हाथ रखकर संतानोत्पत्ति का आशिर्वाद दिया। बाबाजी की दी बभूत को शम्भू ने
सजना को दे दी। सजना माथे के लगाकर बभूत खा ली। कुछ दिन बाद सजना की सूनी कोख भी
भर गई। यह सब डॉक्टर के इलाज से हुआ या बाबाजी की बभूत से यह तो ईश्वर ही जाने।
लेकिन सूना आंगन किलकारियों से शीघ्र ही गूंजने वाला था। इन दिनों शम्भू सजना के
इर्द-गिर्द ही रहता। उसकी सेहत का पूरा ख्याल रखता। वर्षों से जिस घड़ी का इंतजार
था। वह घड़ी आ गई। सजना ने लडक़े को जन्म दिया है। ऐसा डॉक्टर ने शम्भू से कहा।
इतना सूनते ही शम्भू के पांव धरती पर नहीं टिके सिर आसमान को छूने लगा। रोम-रोम
खिल उठा। सजना के हृदय में भी घी के दीये जलने लगे। आंगन खुशियों से भर गया। लडक़े
के नाम मोहित रखा। जन्मोत्सव की बेला पर शम्भू ने सभी संगे-संबंधियों आमंत्रित
किया। जन्मोत्सव बड़ी धूमधाम से मनाया। जब मोहित अठख़ेलिया करता, ठूमक-ठूमक कर चलता। तब शम्भू और सजना बहुत प्रसन्न होते। उसे
भागकर उठा लेते। उसकी नाक से नाक अड़ाकर उसको चूमते। मोहित बड़ा हो गया। अब वह
नित्य रोज स्कूल जाने लगा। बारहवीं में उच्च अंक अर्जित कर मोहित ने मम्मी-पापा को
एक ओर खुशी की सौगात दी।
15 मार्च 2015 दैनिक जनवाणी के रविवाणी में कहानी/ संगति की संगति |
लेकिन खुशियां ज्यादा दिन नहीं टिकी। शम्भू की खुशियों को किसी की नजर लग गईथी। शम्भू एक सडक़ दुर्घटना में चल बसा। मोहित के सर से बाप का साया उठ गया। शम्भू की मौत से सजना को गहरा सदमा लगा। किन्तु बेटे के स्नेह में विभोर सजना पति की असामयिक मौत को भी सीने में दबा लिया। बेटे पर किसी तरह का कोई विकृत प्रभाव नहीं पड़े। उसकी परवरिश में कोई कमोबेशी नहीं रहें। इसी में सजना लगी रहती थी। उसका ख्याल रखना सजना की जिम्मेदारी थी। मोहित ने कॉलेज में दाखिला क्या लिया? सजना की छोटी सी दुनिया में भूचाल आने लगा। मोहित एक दिन शराब में उन्मत होकर आया। उसे कोई सुध-बुध नहीं थी। यह देखकर सजना के पैरों तले से जमीन खिसग गई। वह स्तब्ध रह गई। सजना तूने शराब क्यों पी?तेरी हिम्मत कैसे हुई?तूझे जरा सी भी शर्म नहीं आई। इतना कुछ सुनने के बाद भी मोहित बिना वक्तव्य कहें, सिर झूका कर अपने कमरे में चला गया। खाना खाये बगर ही सो गया। सजना को पूरी रात नींद नहीं आई करवट बदलती रहीं। उधेड़बुन में ही सुबह हो गई। सजना अपने कामकाज में जुट गई और मोहित कॉलेज चल गया। कुछ दिन बार फिर मोहित शराब में उन्मत होकर आया। सजना से रहा नहीं गया। उसने वजह जाने की कोशिश की। मोहित तू शराब क्यों पीता है? सजना ने मोहित से कहा। मोहित ने कहा,मम्मी दोस्तों ने पीला दी।
आज के बाद नहीं पीऊंगा। सजना को आत्म संतुष्टि तो नहीं हुई। पर क्या करें? करना ही पड़ा। मोहित की संगति ऐसे दोस्तों से थी। मोहित दोस्तों को छोड़ नहीं सकता। दोस्त उसे शराब पिलाने से नहीं चूके थे। मोहित भी घर से पैसे चुराने लगा। दोस्तों एवं स्वयं की शराब एवं ऐशो-आराम के लिए। अब तो मोहित आएं दिन शराब पिने लगा। सजना को भी बुरा-भला कहने लगा। बात-बात में मरने मारने की धमकी देता। सजना डरी-सहमी रहने लगी। उसको यह भय था। कहीं मोहित कुछ करना बैठे। इसलिए मोहित से कुछ नहीं कहती। मोहित के मन में बाप का भय तो था ही नहीं। मां से थोड़ा भयभीत था। वह भी निकल गया। मोहित आजाद पक्षी की तरह उडऩे लगा। सजना ने उसके पंख पकडऩे की कभी कोशिश नहीं की। उसे डर था कहीं पंख नहीं उखड़ जाएं। इसलिए हाथ पिछे ही खिंच लेती थी। सजना ने मोहित के प्रति जो सपने संजोए थे। उन पर पानी फिरने लगा। एक दिन सजना बाजार में गई हुई थी। वहां लोगों की भीड़ एकत्रित थी। शराब में उन्मत होकर मोहित नाली में पड़ा था। मोहित को देखकर सजना अवाक रह गई। सजना जैसे-तैसे कर मोहित को घर लेकर आई। उसका पूरा शरीर किचड़ में सनदा हुआ था। सजना ने दो चार पानी की बाल्टी डाली। तब मोहित को होश आया। सजना का दर्द फूट पड़ा। आंखों से आंसू थम नहीं रहे थे। कुछ कहना चाहती थी। पर मुंह से कुछ नहीं निकल रहा था।
सजना ने मोहित से कहा,मैंने और तेरे पापा ने तूझे पाने के लिए,क्या नहीं किया?तूझे पता भी है। बाबाओं के आगे मन्नत मांगी। डॉक्टरों को दिखाया। तब जाकर तू पैदा हुआ। आज तेरे पापा जिंदा होते तो मुझे यह दिन नहीं देखने पड़ते। तूने मेरी कोख को ही लज्जित कर दिया। इसे अच्छा तो मैं बिना बेटे के ही रह जाती। इतना कहते -कहते सजना जोर-जोर से विलाप करने लगी। पहले तू नहीं हुआ था। इसकी चिंता में डूबी रहती थी। बिना संतान की सुखमय थी। अब तू शराब पीता है। इसकी चिंता मुझे जीते जी ही जला रही है। सजना साड़ी के पल्लू से बार-बार आंसू पोंछती हुई यह सब कह रही थी। सजना की आंखों से आंसूओं का सैलाब बह रहा था। सजना के आंखों से इतने आंसू तब भी नहीं गिरे थे। जब शम्भू की मौत हुईथी। मोहित कमरे में जाकर सो गया। सुबह उठा तो मोहित का चेहरा शर्मिंदगी से भरा हुआ लग रहा था। पछतावे के आंसू बह रहे थे। मां के आश्लिष्ट होकर मोहित रोने लगा। रोते रोते कह रहा था। मां मुझे क्षमा कर दो। मैं संगत की संगति में बह गया था। मां तूम सदैव दुखों के पहाड़ की अधोभूमि के तले ही दबी रही। इतना सुनकर मां के कलेजे को ठंडक पंहुची। मां मोहित के सर पर हाथ रखकर कहीं बेटा संगत की संगति होती ही बुरी है। आज तेरा बाप जिंदा होता तो वह कितना प्रसन्न होता। अब मोहित बचपन वाला मोहित बन गया। मां-बेटे स्नेह आंसूओं के साथ बह रहा था। मोहित ने शराब नहीं पीने की कसम खाई,तब मां की ममता भर आई। बेटे जो दुख,दर्द मैंने देखे। वे तेरी जिंदगी में कभी नहीं आए। इतना कह कर सजना रसोई में चल गई।