मानसून आ नहीं रहा है।
उसकी प्रतीक्षा में वसुधा का गला सूखता जा रहा है। आंखों से निकलने वाली अश्रुधारा
बह-बह कर सूख गई हैं। अश्रु निकाले से भी नहीं निकल रहे हैं। बार-बार होंठों पर
जीभ फेरी जा रही है। ताकि कम से कम गला तो अधगीला रहे वसुधा अपना गला गीला करने
के लिए बदरा से कह रही है- बदरा भाई! बरस जाओं। मेरा कंठ सूख रहा है। गले में पानी
नहीं गया तो मैं मर जाऊंगी।
बदरा समीर के संग झूमता
हुआ कहता है- देखों,बहिना तरस तो तुम
पर बहुत आ रहा है। पर क्या करू, विवश हूं। मेरे उच्च अधिकारी एक-एक बूंद का लेखा-जोखा रखते हैं।
कहां कितना पानी बरसाना है। यह सब पहले बाकायदा रजिस्टर में दर्ज होता है। उसके
बाद उस क्षेत्र में बारिश होती है। कुछ दिन पहले घनघोर मेघ साहब की गैर हाजिर में
बिना अनुमति के राजस्थान सूबे पर मेहरबानी कर दी। जब साहब आए तो इतनी लताड़ लगाए
कि पूछों मत। एक भी बूंद इधर-उधर नहीं कर सकता। मुझे बूंद-बूंद का हिसाब देना होता
है। तुम कहती हो कि बरस जाओं। मेरी भी नौकरी का सवाल है।
बदरा भाई! कुछ भी करों।
कैसे भी करों। मेरे गले में थोड़ा सा पानी तो डाल दो। अन्यथा मैं मर जाऊंगी। मैं
मर गई तो। सम्पूर्ण पृथ्वी का विनाश हो जाएंगा। पृथ्वी का विनाश हो। ऐसा मैं
कदाचित भी नहीं चाहती।
अरे,वसुधा बहिना तुम
समझती कैसी नहीं। अब तुम्हें कैसे समझाऊं? जिनके लिए तू बूंद-बूंद के लिए तरस रही हैं। उन्हीं तेरे
बांशिदों ने तेरा विदोहन किया है। जिनसे तेरी हरीतिमा है। उन पेड़-पौधों से
सम्मोहित होकर मैं बरसने को मजबूर हो जाता हूं। वे उन पर ही स्वार्थलिप्सा की
कुल्हाड़ी चला रहे हैं। जिससे तेरे पर ही नहीं। अपितु हमारे समूचे बदरा समुदाय पर
भी काले बादल मंडरा रहे हैं।
बदरा भाई! तेरी बात कटू
शाश्वत है। प्राकृतिक आपदाओं के माध्यम से मैं भी इन्हें समझाने की कोशिश करती
हूं। लेकिन इस बार कैसे भी करके मुझ पर रहम कर। मानसून का दौर है। जमकर बरस जा। हो
सकता तेरी मेहरबानी से मेरे बांशिदों का दिल पसीज जाए। उनके ज्ञान चक्षु खोल जाए।
वसुधा की बेबस हालात
देखकर बदरा को तरस आ गया। उसने पूछा बताओं! कहां-कहां बारिश करवानी है। यह सुनकर
वसुधा का चेहरा खिल उठा और उसने वह फाइल सौंप दी जिसमें राज्यवार बारिश की सूची
थी। समीर के माध्यम से फाइल एक बदरा बाबू से दूसरे बदरा बाबू तक पहुंची। दूसरे से
तीसरे तक पहुंची। एक तरफ बारिश फाइल यहां से वहां पहुंच रही थी और दूसरी तरफ घनघोर
मेघ बरसने के लिए आतुर हो रहा था। तबी घनघोर मेघ साहब के पास बारिश फाइल पहुंच गई।
भारत मुल्क की फाइल देखकर घनघोर मेघ काला-पीला हो गया और बरसते-बरसते रह गया और
वसुधा गगन की ओर मुंह करके बारिश के प्रतीक्षा में हैं कि बस,मेघ मेहरबान होने
वाले ही है।
No comments:
Post a Comment