29 Nov 2019

जिसका बहुमत,उसकी सत्ता सुंदरी


एक माह से चल रहा महाराष्ट्र का महानाटक इस तरह से संपन्न होगा। यह किसी ने स्वप्न में भी नहीं सोचा होगा।समापन का पार्ट संपन्न होने वाला ही था कि एकाएक मुख्य पात्र बदल गए। किरदार निभा रहे पात्र भी आश्चर्यचकित हैं। पात्र बदल कैसे गए। वो भी एक ही रात में। जो सुबह सुहावनी होनी थी। वह सुनामी में बदल गई। बगैर ढोल नगाड़े बजे ही शपथ ग्रहण समारोह हो गया। मुख्यमंत्री की भूमिका निभानी किसी और को थी और निभा ली किसी और ने। जिसने निभानी थी वह तो चादर तानकर सो गया और जिसने अलसुबह ही शपथ लेकर निभा ली,वह पूरी रात जागकर यह बता दिया कि जो सोवत है। वह खोवत है।

जिसने उपमुख्यमंत्री की भूमिका निभाई,उसने तो कमाल ही कर दिया। सगे चाचा को ही गच्चा देकर यह बता दिया है कि अब मैं कोई दूध पीता बच्चा तो हूं नहीं। जो कि सियासत का खेल खेलना नहीं जानता हूं। मुझे सियासी खेल खेलना अच्छी तरह से आता है। समय और मौके का फायदा उठाना गद्दारी नहीं। राजगद्दी पर बैठने की समझदारी है। मैंने मौके पर जो चौका मारा है,उससे चौंकिए मत। सोचिए,मौके पर चौका इसी तरह से मारा जाता है। माना कि आप मंजे हुए खिलाड़ी हैं। पर कब और कैसे पलटी मारनी है। यह मुझसे से सीखिए। भविष्य में काम आएगी। हमेशा राजनीतिक तजुर्बा ही काम नहीं आता है। कई बार अपना सरनेम भी पावर क्या होती है दिखा देता है। अपन दोनों का एक ही  सरनेम होने के बावजूद भी उसका इस्तेमाल नहीं कर रहे थे। इसलिए मैंने इस्तेमाल करके सरनेम को अखबारों की हेडलाइन बना दिया। जो कि हेडलाइन बनने के लिए कब से मचल रहा था। सुर्खियां बटोरने के लिए भी गठबंधन का जोड़-तोड़ करना पड़ता है। बगावत करनी पड़ती है। पाला पलटना पड़ता है। विरोधियों से हाथ मिलाना होता है। तब कहीं जाकर सुर्खियां प्राप्त होती हैं।

लेकिन यहां पर चाचा भी कमतर नहीं है। उसने भी होटल में शक्ति प्रदर्शन करके दिखा दिया कि यह देखिए बहुमत। पूरे एक सौ बासठ हैं। यह देखकर भतीजा भौंचक्का रह गया। उसे इस्तीफा देना ही पड़ा। साथ में जितने शपथ ली थी उसे भी देना पड़ा। अब उसके अच्छी तरह से समझ में आ गई होगी कि चाचा चाचा ही होता है। लेकिन तीन तिगड़ा और काम बिगाड़ा वाली कहावत चरितार्थ होती है या नहीं। यह समय के गर्भ में है।

सियासत में कुर्सी से बढ़कर कोई रिश्ता नहीं है। कुर्सी है तो रिश्ते तो थोक के भाव में मिल जाते हैं। जिन्हें जब तक मन करे निभाओ और जब मन करे तोड़ डालो। कोई बुरा नहीं मानता है। अगर कोई बुरा मान भी जाए तो अवसर पड़ने पर उसे प्रलोभन देकर मना लो। कोई प्रलोभन से भी नहीं माने तो उसके सामने कुर्सी का प्रस्ताव रख दो। फिर देखिए,वह अपनों को छोड़कर गैरों के पास कैसे दौड़ा चला आता। क्योंकि कुर्सी है तो सत्ता सुंदरी है। सत्ता सुंदरी के साथ भला कौन नहीं रहना चाहता है। हर किसी की इच्छा होती है कि सत्ता सुंदरी मेरी हो जाए। लेकिन यह होती उसी की है जिसके पास बहुमत होता है। फिर चाहे वह अकेली पार्टी का हो या गठबंधन द्वारा हो। जोड़ तोड़ कर किया हो या खरीद-फरोख्त के द्वारा हो। पर होना होना चाहिए पूरा बहुमत। आधे अधूरे से तो यह हाथ भी नहीं मिलाती है। इसने सबको अपने संग रहने का बारी-बारी से मौका दिया था। पर बहुमत नहीं होने के कारण मौका नहीं ले पाए।
मोहनलाल मौर्य

21 Nov 2019

बोतल में सांसे


दिल्ली एनसीआर के वातावरण में घुली जहरीली हवा को देखते हुए अब वे दिन ज्यादा दूर नहीं हैं। जब बोतल बंद पानी की तरह शुद्ध हवा भी बोतल में मिलिया करेगी। बस स्टैंड व रेलवे स्टेशन पर बेचने वाले  कुछ इस तरह से बेचते हुए नजर आएंगे। यह लीजिए मात्र दस रुपए में ताजा शुद्धतम एयर बोतल। हर छोटी-बड़ी दुकान पर पानी की बोतल के समीप एयर बोतल सजी संवरी हुई रखी रहेंगी। जिन्हें देखकर निर्धन भी खरीदे बगैर नहीं रहेगा। क्योंकि दमघोट वायु से राहत पाने के लिए उसे भी चौबीस घंटे एयर बोतल पास में रखनी पड़ेगी। साग सब्जी के भाव-ताव की भाँति ग्राहक कहेगा कि भैया सही-सही लगा लो। दो-तीन बोतल ले लेंगे। दुकानदार कहेगा कि भाई साहब इस पर आप सोच रहे है न जितनी बचत नहीं है। बस एक रुपए का मार्जिन है। चाहे तो आप मार्केट में ट्राई करके देख लीजिए। उसके बाद खरीद लीजिएगा।
एक यात्री दूसरे यात्री से कहेगा भाई साहब आपकी एयर बोतल दीजिए दम घुट रहा है। दूसरा कुछ इस तरह से कहेगा कि यह लीजिए,लेकिन पूरा मत लीजिएगा। मेरे लिए भी बचा कर रखिएगा। या फिर कहेगा सफर करने से पहले साथ लेकर क्यों नहीं चलते हो। तुम्हें मालूम नहीं है कि पानी बगैर रह सकते हैं। लेकिन एयर बोतल बगैर कदाचित नहीं रह सकते हैं।
जिस तरह से स्कूल जाने वाले छोटे बच्चे के बैग में परिजन पानी की बोतल रखना कभी नहीं भूलते हैं। उसी तरह से एयर बोतल भी रखना कभी नहीं भूलेंगे। अपने बच्चे को स्कूल छोड़ने से पहले कहेंगे बेटा जब भी दम घुटने लगे तो बोतल में से एयर ले लेना। बोतल का ढक्कन नहीं खुले तो सर से खुलवा लेना। लेकिन एयर लिए बगैर मत रहना। स्कूल वाले भी दाखिले के दौरान अपनी उत्तम व्यवस्थाओं में एयर की व्यवस्था को सबसे पहले बताएंगे। हमारी स्कूल में शुद्धतम एयर कूलर हैं।
जिस तरह से धर्मार्थी सार्वजनिक स्थलों पर वाटर कूलर या प्याऊ लगाते हैं। उसी तरह से एयर कुलर लगाएंगे। इसके लिए लोग भामाशाहों से अनुरोध भी करेंगे। फलानी जगह शुद्ध एयर का अभाव है। एक  एयर कूलर लगा दीजिए। आपका भला होगा। यह सुनकर कोई नाम के लिए तो कोई सेवा भाव से लगाने के लिए आगे आएंगे। स्कूल-कॉलेजों के लिए अभिभावक जनप्रतिनिधियों से निवेदन करेंगे कि हमारे बच्चों का शुद्ध एयर के अभाव में उनका दम घुटता रहता है। सही ढंग से पढ़ाई ही नहीं कर पाते हैं। इस समस्या का शीघ्र समाधान नहीं हुआ तो बच्चे बीमार पड़ जाएंगे। लोग अधिकारियों को ज्ञापन देंगे। ज्ञापन में चेतावनी देंगे। इतने दिन में शुद्धतम एयर की व्यवस्था नहीं करवाए तो हम आंदोलन करेंगे। धरने पर बैठेंगे। 
चुनावी सीजन में शुद्धतम हवा का मुद्दा ही सुर्खियों में रहेगा। नेतागण शुद्धतम हवा की उत्तम व्यवस्था के लिए एक से बढ़कर एक वायदे करेंगे। कोई कहेगा इसकी आप बिल्कुल भी चिंता मत कीजिए,मैं जीत गया तो  एयर टंकी बना दूंगा। वहां से पाइपलाइन दबाकर घर-घर में पानी के नल की तरह एयर नल लगवा दूंगा। कोई कहेगा मैं एयर टैंकर की व्यवस्था करवा दूंगा। रोज आपके द्वार पर एयर टैंकर आ जाया करेगा और आप अपनी आवश्यकता अनुसार एयर ले लीजिएगा। यह मेरा आपसे वादा है। वोट मुझे ही दीजिएगा।
मोहनलाला मौर्य

12 Nov 2019

फिर बाहर निकलेगा नागिन डांस



चार माह की लंबी निद्रा के बाद देव जाग गए हैं। बैंड-बाजा और बारात का सीजन आरंभ हो गया है। अब रोज कर्णप्रिय शहनाई की गूंज,बैंड-बाजे की ध्वनि और कानफोड़ डीजे की आवाज हर गली-मोहल्ले में सुनाई देने लगेंगी। कई दिनों से लोगों के अंदर ही अंदर हिचकोले मार रहा नागिन डांस बाहर निकलेगा। आज मेरे यार की शादी है गाने पर दूल्हे का बाप भी नाचता नजर आएगा। छोटे-छोटे भाइयों के बड़े भैया गाने पर दूल्हे की बहिन-भाभी, देवरानी-जेठानी कमर में लचक होने बावजूद भी जमकर ठुमके लगाएंगी।
विविध पकवानों की महक से महकने वाले मैरिज गार्डनों में वीआईपी भी हाथ में प्लेट लेकर लाइन में लगे हुए दिखेंगे और डायबिटीज वालों के मुंह में भी गुलाब जामुन दिखेगी। घर पर अक्सर जिन पति-पत्नियों में अनबन होती रहती है, वे भी एक-दूसरे की प्लेट से व्यंजन का आदान-प्रदान करते दिखेंगे। पड़ोसन की साड़ी पहनकर आई वह महिला साड़ी पर पनीर गिरते ही लोगों को अपनी ओर किस तरह से आकर्षित करती हैं, उस तरह के दृश्य भी देखने को खूब मिलेंगे। आधा खाना पेट में, आधा प्लेट में छोड़कर चलने वाले भी जूतों की पॉलिश करके तैयार बैठे हैं।
दुल्हन की बहन का एटीट्यूड देखकर उस पर फिदा होने वाले पिटते भी दिखेंगे और दूल्हे के भाई को झूम शराबी झूम गाने पर थिरकते देखकर उसे शराबी समझने वाले खुद पव्वा पीकर औंधे मुंह पड़े दिखेंगे। फीता कटाई और जूता छुपाई की रस्म अदायगी के समय सालियों और दूल्हे के यार-दोस्तों के बीच होने वाली हंसी-ठिठोली में सत्तर साल के बुड्ढे भी शामिल हुए बगैर नहीं रहेंगे और ग्यारह हजार का नेग ग्यारह सौ नहीं हो जाए, तब तक जाएंगे नहीं। पर सुबह विदाई के समय नजर नहीं आएंगे। समधिनों के हाथों में गुलाल देखते ही जिस तरह से एकदम से बिजली गुल हो जाती है, ठीक उसी तरह से गुल हो जाएंगे। लेकिन गाड़ी में बैठते समय पीठ पर उड़ेल दिए जाने वाले गुलाल से वे भी नहीं बच पाएंगे। लगता है, देवता यही रंग देखने-दिखाने के लिए जागे हैं।
मोहनलाल मौर्य

3 Nov 2019

नियति नहीं,सिर्फ इत्तेफाक


बिल्लू दिल्ली जाने के लिए घर से बाहर निकला ही था कि बिल्ली ने रास्ता काट दिया। अपशगुन हो गया।अपशगुन हो गया तो अनहोनी का भय व्याप्त होना ही था। सो हो गया। जनाब जिन पैरों से बाहर निकला था,उन्हीं से वापस घर के अंदर हो लिया। अब इसमें बिल्ली का क्या दोष है। उसने जान-बूझकर रास्ता थोड़ी काटा था। उसके पीछे एक कुत्ता पड़ा था,जिससे अपनी जान बचाने के लिए उस गली से इस गली में भागकर आ रही थी। रास्ता पार करने के दौरान कोई सामने आ गया तो इसमें बिल्ली की क्या गलती है? बिल्‍लू इसको अपशगुन मान बैठा है।
अपशगुन के कारण जाना स्थगित था,मगर काम ही कुछ ऐसा था कि जाना अत्यंत आवश्यक था। सो दोबारा निकलना चाहा,लेकिन बिल्ली ने फिर से रास्ता काट दिया। इस बार भी उसका कसूर नहीं था। कुत्ता पैर धोकर उसके पीछे पड़ा था। उसे ऐसी सुरक्षित जगह मिल नहीं रही थी,जहाँ पर छिपने के बाद कुत्ते से पिंड छूट जाएं। इसलिए सिर पर पैर रखकरइस गली से उस गली में ही भाग रही थी। 
अभी तक बिल्लू नहीं तो आगे बढ़ा था, नहीं पीछे मुड़ा था। वहीं का वहीं खड़ा था और यह सब देख रहा था। पर बिल्ली की बिल्कुल भी मदद नहीं की। बल्कि,भौं-भौं करके कुत्ते को उकसाने लगा। बिल्ली भी सयानी थी,यह चाल भाँप गई थी। भागकर पोल पर चढ़ गई। चढ़ते ही उसे एक बार तो ऐसे लगा,जैसे कि गढ़ जीत लिया हो। पर जब नीचे देखी,तो होश उड़ गए। कुत्ता नीचे ही खड़ा था। 
बिल्ली,बिल्लू को कोसने लगी और मन ही मन सोचने लगी-मैंने ही थोड़ी रास्ता काटा था। इस कुत्ते ने भी तो काटा था। इसका रास्ता काटना अपशगुन क्यों नहीं? जबकि इसमें और मुझमें कोई खास अंतर नहीं है। इसके भी वही चार पैर हैं,जो मेरे हैं। वहीं आँख और कान है। यह भौंकता हैं और हम म्याऊं करते हैं। बस इसमें और मुझमें यही तो अंतर है। बाकी तो सब समान है,फिर हमारे साथ ही दुर्व्यवहार क्योंयह तो अन्याय हो रहा है। नीचे उतरने के बाद मुझे ही बिल्लियों को एकजुट करके इसके खिलाफ आवाज उठानी होगी। पर यहाँ से यह कुत्ता नहीं गया तो मेरा क्या होगा। कब तक खंभे के चिपकी रहूंगी? यह तो शुक्र है कि उस समय बिजली गुल थी। अन्यथा बिल्ली चिपकी की चिपकी ही रह जाती। कुत्ता यह सोचकर भौं-भौं करके भौंकने लगा कि डरकर नीचे उतर आएगी। पर काफी देर भौंकने के बाद भी नीचे नहीं उतरी तो मन मसोसकर चल दिया। यह  देखकर बिल्ली तत्काल नीचे उतर आई। 
लेकिन जो मन में सोचा था, वह तो नीचे उतरते ही भूल गई। क्योंकि उसे भूख लग गई थी। भूख के समय भोजन के अलावा कुछ भी याद नहीं रहता है। बिल्ली भोजन की तलाश में उस घर में घुस गई, जिसमें दूध का ग्लास रखा था। मगर उसके नसीब में दूध नहीं लिखा था। उस घर की मालकिन ने दूध के ग्लास के पास पहुँचने से पहले ही उसे जूता फेंक कर मारा। डरकर बेचारी भाग रही थीकि एक सज्जन आ गए। बिल्ली ने उसका रास्ता काट दिया। किसी का भी रास्ता काटना बिल्ली की नियति नहीं,सिर्फ इत्तेफाक है।