चार माह
की लंबी निद्रा के बाद देव जाग गए हैं। बैंड-बाजा और बारात का सीजन आरंभ हो गया
है। अब रोज कर्णप्रिय शहनाई की गूंज,बैंड-बाजे की ध्वनि और
कानफोड़ डीजे की आवाज हर गली-मोहल्ले में सुनाई देने लगेंगी। कई दिनों से लोगों के
अंदर ही अंदर हिचकोले मार रहा नागिन डांस बाहर निकलेगा। आज मेरे यार की शादी है
गाने पर दूल्हे का बाप भी नाचता नजर आएगा। छोटे-छोटे भाइयों के बड़े भैया गाने पर
दूल्हे की बहिन-भाभी, देवरानी-जेठानी कमर में लचक होने
बावजूद भी जमकर ठुमके लगाएंगी।
विविध
पकवानों की महक से महकने वाले मैरिज गार्डनों में वीआईपी भी हाथ में प्लेट लेकर
लाइन में लगे हुए दिखेंगे और डायबिटीज वालों के मुंह में भी गुलाब जामुन दिखेगी।
घर पर अक्सर जिन पति-पत्नियों में अनबन होती रहती है, वे
भी एक-दूसरे की प्लेट से व्यंजन का आदान-प्रदान करते दिखेंगे। पड़ोसन की साड़ी पहनकर
आई वह महिला साड़ी पर पनीर गिरते ही लोगों को अपनी ओर किस तरह से आकर्षित करती हैं,
उस तरह के दृश्य भी देखने को खूब मिलेंगे। आधा खाना पेट में,
आधा प्लेट में छोड़कर चलने वाले भी जूतों की पॉलिश करके तैयार बैठे
हैं।
दुल्हन
की बहन का एटीट्यूड देखकर उस पर फिदा होने वाले पिटते भी दिखेंगे और दूल्हे के भाई
को झूम शराबी झूम गाने पर थिरकते देखकर उसे शराबी समझने वाले खुद पव्वा पीकर औंधे
मुंह पड़े दिखेंगे। फीता कटाई और जूता छुपाई की रस्म अदायगी के समय सालियों और
दूल्हे के यार-दोस्तों के बीच होने वाली हंसी-ठिठोली में सत्तर साल के बुड्ढे भी
शामिल हुए बगैर नहीं रहेंगे और ग्यारह हजार का नेग ग्यारह सौ नहीं हो जाए, तब
तक जाएंगे नहीं। पर सुबह विदाई के समय नजर नहीं आएंगे। समधिनों के हाथों में गुलाल
देखते ही जिस तरह से एकदम से बिजली गुल हो जाती है, ठीक उसी
तरह से गुल हो जाएंगे। लेकिन गाड़ी में बैठते समय पीठ पर उड़ेल दिए जाने वाले गुलाल
से वे भी नहीं बच पाएंगे। लगता है, देवता यही रंग
देखने-दिखाने के लिए जागे हैं।
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