29.04.2016 हरिभूमि में. |
मैं वहीं हैंडपम्प हूं।
जिसके पनघट पर जमघट लग रहता था। पनिहारी 'मन की बात’ करती थी। मोहल्ले के
कच्चे चिट़ठे यहीं खोलते थे। सुख-दुख
की वार्तालाप होती थी। तू-तू,मैं-मैं होती थी। पानी भरने पर। कतार पर। नम्बर पर। मैं अपना
ठण्ड़ा पेयजल पिलाकर,इनको शांत कर देता था। मेरे समीप मेरा जल गर्त भरा रहता था। जिसमें
पशु-पक्षी अपनी प्यास बूझाते थे। मेरे प्रादुर्भाव पर ग्राममुखिया ने गुड़ बांटा
था। पूरे मोहल्ले में मुनादी हुई थी। सरकारी हैंडपम्प का जल पेयजल है। लोग
प्रफुल्लित थे। मैंने कभी भी मोहल्लेवासियों को धोखा न दिया। सदैव उनकी सेवा में
तत्पर रहा। यह भी मेरा पूरा खयाल रखते थे। समय-समय पर मेरी सर्विस-वर्विस करवाते
रहते थे। मेरा और मोहल्लेवासियों का अटूट संबंध था। जब से मेरी जलपूर्ति बंद हुई
है। तब से संबंध टूट गया। अब तो मोहल्लेवासी मेरी ओर झाकते भी नहीं। इनसान कित्ता
खुदगर्ज है,जब मैं इनकी जलपूर्ति
करता था,तो मेरा गुणगान करते थे।
अब कोई मेरा हाल भी नहीं पहुंचने आता। धरा में जल ही नहीं है,तो मैं कहां से खींचकर
लाओं?जल रसातल में चल गया है।
वहां तक मेरी पहुंच असंभव है। मैं दलाल तो हूं नहीं,जो जुगाड़ करके पहुंच जाओं। रिश्वत देकर जल ले
आऊं। लेन-देन का कार्य तो इनसान करता है। वैसे भी भारतीय मानव जुगाड़ करने में
अग्रणी हैं। इन्होंने तो जल बचाने का ही जुगाड़ नहीं किया। जब तो चार-चार बाल्टी
उड़ेलते थे। नहाने-धोने में। पशुओं को लहलाने में। वाहन साफ करने में। अब
बूंद-बूंद के लिए तरस रहे हैं। सरकार को कोस रहे हैं। जल सरकार की मुट्ठी में थोड़ी है,जो भींच कर बैठी है।
देने से नकार कर रही है। सरकार अपील कर सकती है। जल बचाने की। जलमंत्री को भेज
सकती है। सूखाग्रस्त इलाकों में। जायजा लेने। सेल्फी लेने। एक पत्रकार बंधु इधर से
गुजर रहा था। उससे मेरी हालत देखी नहीं गई। इसलिए छाप दिया अखबार में। मैं अखबार
में क्या छपा?स्थानीय नेताओं में होड़
मच गई। मुझे दुरूस्त करवाने की। श्रेय लेने की। वोट बटोरने की। इनके भी अखबार में
छपने के बाद ही चक्षु खोले। जबकि मैं तो इनके नाक तले ही था। खैर,छोड़ो। नेताओं को मुद्दा
चाहिए,सो मिल गया। ग्रामसचिव
से बीडीओं तक। ग्राम पंचायत से पंचायत समिति तक। मुझे घसीट ले गए। मुद्दा बनाकर।
इनको,जलसंकट में। सूखे में।
मेरा मुद्दा क्या मिल गया?अखबारों की कटिंग काट-काट कर सोशल मीडिया पर चस्पा कर रहे हैं।
सुर्खियां बटोर रहे हैं। एक सरकारी हैंडपम्प की इज्जत उछाल रहे हैं। दरअसल असर यह
हुआ कि जलदाय विभाग का कर्मी आया। मुझे देख बुदबुदाया। जो पहले से दुरूस्त है। उसे
क्या दुरूस्त करों? इत्ती दूर से आया हूं। कुछ करके ही जाऊंगा। ओर वह मेरे मेरे कुछ
नये अंग लगाकर चला गया। उसे भी ज्ञात है। मुझे भी ज्ञात
है। लोगों को भी ज्ञात है। जल जलस्तर तक नहीं रहा। यह जल बर्बाद करने का नतीजा है।
अब तो मुझे मानसून ही दुरूस्त कर सकता है। वहीं मेरे पनघट पर फिर से जमघट लगा सकता
है।
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