14 Jul 2016
2 Jul 2016
महंगा टमाटर और तू-तू,मैं-मैं - दैनिक जनवाणी
महंगा टमाटर और तू-तू,मैं-मैं
जब से टमाटर के भाव बढ़े है। तब से श्रीमतीजी का व्यंग्य प्रहार आरंभ है। रोज कहती है-'अजी! आज मत भूल जाना। चाहे
दो ही टमाटर लेकर आना। लेकिन लेकर जरूर आना। आज नहीं लेकर आए तो देख लेना...।‘श्रीमतीजी के मुंह से यह सुनकर। एक बार तो मैं टमाटर की तरह लाल-पीला हो जाता हूं। लेकिन श्रीमतीजी को देखते ही चेहरे पर झूठी मुस्कुराहाट बना लेता हूं। ताकी कुछ देर पूर्व चेहरे पर आयी लाल-पीला की छाया अदृश्य हो जाए।
02 जुलाई 2016 दैनिक जनवाणी में |
मैं सब्जीवाले से सब्जी तो खरीद लेता हूं। पर,टमाटर को देखते ही श्रीमतीजी के बोल मेरे सम्मुख गोल-मोल होने लगते हैं। टमाटर लिया तो मरा और नहीं लिया तो मरा। यह प्रश्न मेरे लघुतम दिमाग में खलबली मचा देता है। कोई निर्णय लेने से पूर्व सब्जीवाला बोल देता है-'भैया टमाटर कितना देना है।‘ यह सुनते ही मैं इधर-उधर झांकने लगता हूं। तन-बदन में आग सी लग जाती है। मन तो करता है दो-चार टमाटर उठाकर इसके मुंह पर मार दू। लेकिन मन मसोस कर रह जाता हूं। क्योंकि इत्ते महंगे भाव के टमाटर खरीदने की मेरे बिसात नहीं।
इससे पहले प्याज ने अश्रु निकाले। अब टमाटर आंसूओं का जूस निकाल रहा है। दाले तो भाव खा रही हैं। आलू भी भाव खाने पर उतर आया है। अब तो सब्जियों में भी भाव खाने की प्रतिस्पर्धा होने लगी हैं। कल तक जो टमाटर हरा था। वह पड़ा-पड़ा लाल हो रहा है। किसी घर की सब्जी के टोकरी में जाने से पूर्व ही हलाल हो रहा है। बढ़ते भाव का मलाल हो रहा है।
जब मैं सब्जीवाले से सहमता हुआ घर पहुंचता हूं तो श्रीमतीजी सर्वप्रथम सब्जी में टमाटर ढूंढ़ती है। टमाटर नदारद मिलते ही वह लाल-पीली हो जाती है। बगैर बादल छाये ही तू-तू,मैं-मैं की बरसात हो जाती है। यह बरखा तब तक जारी रहती है। जब तक में अच्छी से तरह से सराबोर नहीं हो जाऊ। टमाटर के भाव क्या बढ़े? श्रीमतीजी के दृष्टि में मेरे भाव घट गए। मेरी बिसात पर पानी फिर गया। टमाटर के बढ़ते भाव ने हम दोनों के मधुर संबंधों में टर्र-टर्र कर रखी है। बढ़ती महंगाई ने मुझ जैसे उस आम आदमी को अपनी पत्नी के सम्मुख निरूत्तर खड़ा कर रखा है। जिसकी आमदनी अठ्ठनी खर्चा रूपया है।
कल श्रीमतीजी ने उंगली दिखाते हुए साफगोई शब्दों में कह दिया है-'अगर अबकी बार टमाटर नहीं लाए,तो घर आने से पूर्व एक बार सोच-विचार अवश्य कर लेना।‘ श्रीमतीजी के मुंह से यह सुनकर एक बार तो मैं सहम गया। फिर हिम्मत जुटाकर,बेमन से बोला-'ले आऊंगा जी।‘ मैं अगले दिन सब्जी लेने से पूर्व टमाटर के भाव पूछा। पूछताछ इसलिए की शायद एकाध दिन में भाव घट गए हो। सप्ताह भर से ज्यादा हो गया भाव बढ़े। जब उसने भाव बताया। मेरे अंदर करंट सा दौड़ा। एकदम से जोर का झटका सा लगा। जैसे किसी ने बिजली का तार लगा दिया हो। लेकिन इस बार मुझे टमाटर तो खरीदने ही थे। श्रीमतीजी ने उंगली,जो दिखाई थी। इसलिए धीरे से टमाटरों की ओर हाथ बढ़ाया। दो टमाटर उठाया। उनको अच्छी तरह से निहारा। कहीं सड़े गले तो नहीं। इत्ते में ही सब्जी वाला बोल पड़ा-'भैया ऐसे क्या देख रहे हो। टमाटर बहुत बढिय़ा है। देखने की जरूरत ही नहीं। लाओं इधर दो। तौल देता हूं।‘ मैंने दो टमाटर उसके हाथ में सौंप दिया। उसने झट से तौल दिया। थैली में दो हरी मिर्च और थोड़ा सा हरा धनिया डालकर। मेरे को थैली सौंप दी। मैं सब्जी के साथ दो टमाटर लेकर घर पहुंचा। श्रीमतीजी दो टमाटर देखकर फिर लाल-पीली हो गई। पहले दो टमाटर के लिए कहती थी। अब कहती है दो टमाटरों से क्या होगा। फिर वहीं तू-तू,मैं-मैं शुरू हो जाती है। अब आप ही बताएं।
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