मोहन लाल मौर्य
जिस तरह भूखे पेट भजन
नहीं होता। उसी तरह गुटखा खाए बगैर दिमाग की बत्ती नहीं जलती। जब दिमाग की बत्ती
जलती है तो ज्ञान प्रवाह अविरल बहता है। अविरल बहती ज्ञान गंगा की गति को गतिमान
रखने के लिए गुटखा चबाना पड़ता है। जब तक मुंह में गुटखा है। तब तब ज्ञान और काम
कि गंगा की गति गतिमान रहती है। ज्यों ही मुंह गुटखे से खाली हुआ। दिमाग की बत्ती
गुल हो जाती है। पीकधारा से बनने वाले भित्तिचित्र अधबना रह जाते हैं। फिर अधबना
भित्तिचित्र इस ताक में रहता है कि कब पीकधारा आए ओर मुझे पूर्ण करें। यह अपुन का
वक्तव्य नहीं है। यह तो पीकधारा से प्रभावित पीकू का है।
पीकू ने बताया कि एकदम से
गुटखा त्यागना पीक संस्कृति के खिलाफ है। गुटखा सेवन कर्ता ही तो है,जो पीक संस्कृति
को बचाए हुए हैं। अन्यथा कब की विलुप्त हो गई होती। आज पीक भित्तिचित्र शैली खोजने
से भी नहीं मिलती। पीक भित्तिचित्र शैली से तो सार्वजनिक पेशाबघरों की शोभा बढ़ती
है। पेशाबघर की हर भीत पीक भित्तिचित्र शैली से रंगी हुई होती है। बस स्टेण्ड,रेलवे स्टेशन,सरकारी अस्पताल
की भीतों पर तो पीक सभ्यता के अवशेष सदैव मौजूद रहते हैं। अवशेष तो उन सरकारी भीतों
पर भी मिल जाते हैं। जिनके पास गुटखा सेवन कर्ता कार्मिक की कुरसी होती है। किंतु
वे अवशेष शेष नहीं रहते हैं। जो शेष रह जाते हैं,वे अवशेष लायक नहीं रहते हैं।
पीकू का मानना है कि
भारतीय संस्कृति में पीक संस्कृति का भी योगदान रहा है। तबी तो गुटखा खाने वालों
का आपसी सौहार्द इतना प्रबल होता है। एक पाउच को दो लोग मिल बांटकर खा लेते हैं।
कई दफा तो एक पाउच का दो से चार में भी बांटवारा हो जाता है। वह भी बिना हुज्जत
किए। ऐसी भाईचारे की प्रतीक संस्कृति पर विराम लगाना पीक संस्कृति की तौहीन है।
गुटखा बिरादरी पर कीचड़ उछालना है। जब किसी पर कीचड़ उछलता है तो उसके दामन पर दाग
नहीं लगते। बल्कि दामन ही दागदार हो जाता है। एक बार दामन का दाग दागदार होने पर
फिर किसी भी वॉशिंग पाउडर से नहीं धुलता है। भले ही कितने भी टीवी पर आने विज्ञापन
देखकर कोई सा भी वॉशिंग पाउडर खरीद लो कुछ असर नहीं होता है।
अगर किसी दिन पीक
भित्तिचित्र शैली में पुरस्कार देने की घोषणा हुई। मुझे तो पूर्ण विश्वास है कि
प्रथम प्राइज पीकू को ही मिलेगा। क्योंकि पीकू के घर की हर भीत पर बने पीक
भित्तिचित्र अपने ओर आकर्षित करते हैं।जिन्हें देखकर आप भी नाक चढ़ा लेगे। पीकू
तो कहता है कि भाई! मुंह में गुटखा है तो जुगाली है अन्यथा मुंह खाली है। खाली
मुंह किसी काम नहीं है। मुंह में कुछ ना कुछ होना चाहिए। कुछ लोग च्यूंगम मुंह मं
चबाते रहते हैं, लेकिन च्यूंगम चबाने को हेय दृष्टि से देखने का चलन नहीं है।
लेकिन फिर भी मुंह में कुछ तो होना चाहिए,गुटखा भी हो सकता है।
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