आप भले ही उसे मूर्ख
समझते होंगे। वह तो अपने आपको समझदार समझता है। समझता क्या है? समझदार है। आप
भूल से भी उसे मूर्ख मत समझ लेना। हां,वह भाव-भंगिमा से मूर्ख प्रतीत होता है। रंगमंच पर उसका
अभिनय देख,आप मूर्ख समझ
बैठते हैं। जबकि वह मूर्खता के नेपथ्य में अभिनयचातुर्य है। उसकी मूर्खता ही उसका
पेशा है। वह अपने पेशे में सिद्धहस्त है। वह क्या? आप भी तो अपने पेशे में सिद्धहस्त है। वह मूर्ख
प्रतीत तो होता है। आप तो प्रतीत भी नहीं होते। आप तो अपने क्षेत्र में मंजे हुए
खिलाड़ी है। खिलाड़ी तो वह भी है पर वह राष्ट्रीय स्तर का नहीं है। आप ठहरे
राष्ट्रीय खिलाड़ी। किंतु आप भूल कैसे गए? खिलाड़ी जिला स्तरीय हो,चाहे राष्ट्रीय स्तरीय,खिलाड़ी तो खिलाड़ी होता है। दाव लगते ही चारों खाने चित
लाता है। भलाई इसी में है कि अपनी समझदारी अपने पास ही रखिये। कहीं ओर काम आएंगी।
यहां ही व्यर्थ कर दी तो कहीं ओर किससे काम चलाओंगे। समझदार होना तो बनता है पर
समझदारी दिखाना कहां चलता है। जहां चलता है वहां चलाए। किंतु देखकर चलाए,कहीं कोई चालान
नहीं कर दे।
आप उसे मूर्ख कहकर
लताड़ते रहते हो। वह निरुत्तर रहता है इसलिए। उसके निरुत्तर में प्रत्युत्तर होता
है,पर वह देना नहीं
चाहता। आप सोच रहे होंगे। क्यों नहीं देना चाहता? वह आपको ही मूर्ख समझता है। एक दफा उसने मुझे
बताया था कि उस मूर्ख से तर्क करना समझदारी नहीं बेवकूफी है। यह सुनकर एक बार तो
मैं अवाक रह गया। आपकी नजर में वह बेवकूफ है और उसकी निगाह में आप बेवकूफ है।
पेचीदा प्रश्न यह है कि आप दोनों में से मूर्ख कौन है? वह या आप। वह
लगता नहीं और आप होंगे नहीं। आप अपने आपको समझदार जो मान बैठे हो। आपको मूर्ख
घोषित करना भी उचित नहीं। मैंने घोषित कर दिया तो इल्जाम मेरे सिर पर आ जाएंगा।
फिर कोट-कचहरी के चक्कर लगाने पड़ेगे। ऐसा गुनाह मैं करना नहीं चाहता।
कहीं आप मुझे भी तो मूर्ख
नहीं समझ रहे है। कुछ लोग मूर्खो की वार्ता करने वालों को भी मूर्ख समझ लेते हैं।
लोगों के मुंह से आपने सुना भी होगा,देखों कैसी मूर्खो जैसी बात कर रहा हैं। इसलिए कह रहा हूं।
आप मुझे भी मूर्ख समझ रहे है तो ठीक ही समझ रहे है। हो सकता है,मैं भी मूर्ख
हूं। अगर मैं मूर्ख हूं तो मेरे लिए तो गर्व की बात है। अब आप कहेंगे इसमें गर्व
वाली बात कहां से आ गई,जो आप गर्व कर
रहे हो। मैं गर्व इसलिए कर रहा हूं कि मूर्खता में जो सुख-चैन है। वह भला समझदारी
में कहां है? मूर्ख से कोई
उलझता नहीं है। उलझता है तो गुत्थी झुलझती नहीं। खैर,मेरे संदर्भ में
आप जो चाहे सोचों। मैं क्या कर सकता हूं। दिलोदिमाग आपका है। सोचना भी आपको है और
करना भी आपको है।
कहां आप हम में उलझ गए।
मुद्दे पर आते है। आप जिसे मूर्ख समझ रहे हैं वह आपसे डेढ़ गुणा समझदार है। आप सोच
रहे होंगे। वह समझदार ही नहीं है। डेढ़ गुणा समझदार कैसे होगा? यही आपकी गलतफहमी
है। इस गलतफहमी के चश्मे को उतारकर,अपनी नंगी आंखों से देखिए। अपने आप आभास हो जाएंगा। चलों
कुछ देर के लिए उसे मूर्ख मान लेते है और आपको ज्ञानवान। पहले तो आप यह बताए कि वह
मूर्ख क्यूं है? संभवत: आपका वहीं
जवाब होगा,जो मैं पहले ही
बता चुका हूं कि वह हाव-भाव से मूर्ख प्रतीत होता है। आप उसके भाव-भंगिमा पर न
जाकर उसकी विवेक शक्ति का अवलोकन कीजिए। वह जानबूझकर मूर्खता का अभियन करता है और
नेपथ्य में रहकर,वे कृत्य कर लेता
हैं,जो आप समझदार
होकर भी नहीं कर पाते है। उसे शर्म नहीं आती है। जहां आप नहीं आते-जाते वहां वह
चला जाता है। अपने कार्यों को अंजाम देना उसे आता है। आपसे अपना स्वार्थ
नि:स्वार्थ करवाना उसकी फितरत है। चेहरे पर भोलापन और जुबान में मिठापन नैसर्गिक
लगे ऐसे बोल बोलता है,जो उसका हुनर है।
अजीबोगरीब वार्ता कर अपना उल्लू सीधा करना उसकी मर्खता नहीं,चालाकी है। अब तो
आप मान गए होंगे। मूर्ख नहीं डेढ़ गुणा समझदार है।
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