मैं कई दिनों से अपने नाम को लेकर हैरान हूं। हैरान इसलिए हूं कि एक दिन एक
मित्र ने यह कह दिया-अपना नाम बदल लीजिए। मैंने उससे पूछा- नाम बदलने से क्या होगा?
उसने जवाब दिया-एक बार नाम बदलकर तो देखिए। फिर देखना होता
क्या है?
दरअसल उसने ही बताया कि आपका नाम यानी की मेरा नाम मेरे
मुताबिक जम नहीं रहा है। मैंने सुना है कि मित्र का मंतव्य ही गंतव्य तक पहुंचाता
है। इसलिए मैंने अपना नाम बदल लिया। बदले नाम से एकाध रचना भी प्रकाशित करवा ली।
मन में उत्कंठा उत्पन्न हुई कि,जो मूल नाम से यश-कीर्ति प्राप्त नहीं हुई। हो सकता है
परिवर्तन नाम से हो जाए। यहीं सोचकर मैंने अपने नाम में से मध्यम हटा दिया। प्रथम
और अंतिम रख लिया। सम्पूर्ण परिवर्तन तो कर नहीं सकता। सम्पूर्ण परिवर्तन करने का
अभिप्राय है अपना जो अस्तित्व है उसे विलुप्त करना।
सुना है कि नाम की बड़ी महत्ता होती है। यह अलग बात है कि कईयों कि नाम के
विपरीत मनोदशा होती है। जैसे कि नाम तो रोशन लाल है,पर रहता बेचारा अंधेरे में है। इसी तरह नाम तो शमशेर बहादुर
सिंह है,पर मरे ना चूहा भी। कद का ठिगना है,पर नाम लम्बरदार है। रंग का काला है,पर नाम सुन्दरलाल और रंग का गोरा है,पर नाम कालूराम है। देह दुबली पतली है और नाम मोटूराम है।
अष्ट-पुष्ट,लम्बी-चौड़ी कद-काठी है,पर नाम छोटूराम। कई होते तो मर्द हैं,पर उनके नाम में औरत का नाम पहले आता हैं। जैसे कि
दुर्गाप्रसाद,लक्ष्मी नारायण,सीताराम,आदि-इत्यादि। कईयों के नाम बड़े-अटपटे होते हैं,पर उनका नाम बड़ी इज्जत से लिया जाता है और कईयों के नाम
भगवान के नाम पर होते हैं,फिर भी उन्हें आधे-अधूरे नाम से सम्बोधित किया जाता है।
मसलन,नाम तो है ‘हनुमान’ और बुलाते है ‘हड़मान’।
मैंने अपना नाम परिवर्तन क्या किया? अड़ोसी-पड़ोसी आपत्ति जताने लगे। जबकि नाम मैंने परिवर्तन
किया है और आपत्ति वे जता रहे हैं। पड़ोसी गंगाराम ने बताया कि भाई नाम परिवर्तन
से कुछ नहीं होता। नाम तो काम से होगा। नाम तो मुंबई,कोलकाता,चेन्नई,वाराणसी,सहित कई शहरों के भी बदले गए है। लेकिन हुआ क्या?
क्या वे शहर इधर से उधर हो गए?
यहां फिर उनके पंख लग गए,जिधर मन किया उधर की उड़ चले। वे वहीं स्थित हैं,जहां थे। हां,उनका आकार-विकार जरूर बढ़ता रहता है। आकार-विकार का क्या है?
वह तो बगैर नाम परिवर्तन के भी घटता-बढ़ता रहता है। पड़सोसियों
कि ओर से इस तरह के सुझाव सुनकर मैं असमंजस में हूं। इस सोच में डूबा हुआ हूं कि
मित्र ने भी कुछ ना कुछ उधेड़बुन कर ही ऐसी राय दी होगी। अन्यथा आज के युग में भला
ऐसी राय कौन देता है।
एक पड़ोसी ने तो यह तक कह दिया-भाई! नाम अमरसिंह रखने से कोई अमर नहीं हो
जाता। उसे भी मरना तो पड़ता ही है। लक्ष्मी नाम है तो इसका मतलब यह थोड़ी है कि
कुबेर का खजाना उसी के पास है। नाम सत्यप्रकाश है तो यह जरूरी थोड़ी है कि वह झूठ नहीं बोलेंगा। इसी तरह नाम दयाशंकर है तो
इसका मतलब यह नहीं कि उसे क्रोध नहीं आएंगा। भाई! नाम तो नाम होता है। नाम चाहे
बड़ा हो। चाहे छोटा हो। उसके काम के अनुरूप ही उसका नाम बड़ा होता है।
इत्ती सी बात मेरे समझ में कैसे नहीं आयी और पड़ोसी ने चंद
नामों के जरिए ही समझा दिया। लेकिन एक बात अब भी समझ में नहीं आयी। मित्र ने नाम
परिवर्तन का सुझाव क्यों दिया? खैर छोडि़ए। कई दिनों से जो उलझन बनी हुई थी वह सुलझ गई और
नाम की महत्ता का भी ज्ञान हो गया।
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