सुबह-सुबह ही बुराई और अच्छाई लड़ने लगी। लड़ती-झगड़ती
हाथापाई पर उतर आई। जिन्हें देखकर भीड़ इकट्ठी हो गई। जो उन्हें छुड़ाने के बजाय
खड़ी-खड़ी तमाशा देखने लगी। मैं दोनों के बीच-बचाव में बीच में इसलिए नहीं कूदा कि कहीं बीच-बचाव में एकाध मुक्की मेरे नहीं पड़
जाए। इसलिए मैं भी ओर की तरह भीड़ का ही हिस्सा बनकर ही रह गया। मेरी तरह जो भी आ
रहा था, वह भीड़ का हिस्सा बनकर भीड़ ही बढ़ा रहा था। छुड़ाने के लिए कोई आगे
नहीं आ रहा था।अच्छाई और बुराई की लड़ाई
जो आ रहा था,वहीं जेब से मोबाइल निकालकर वीडियों
बनाने में मशगूल होता जा रहा था। मैंने एक सज्जन से पूछा-भाई ! वीडियों क्यों बना रहें है? देखने के लिए बना रहे है,उसने कहा। मैं फिर बोला-जब लाइव
ही देख रहे हो तो विडियों की क्या जरूरत है,भाई। वह बोला-बस,यूं ही। यूं ही क्यों?मैंने पूछा। तो वह
बोला-फेसबुक पर वायरल करूंगा। तुम्हें आपत्ति है क्या? मुझे भला क्या
आपत्ति है? पर किसी की निजता को मोबाइल में कैद करना अच्छी बात थोड़ी है। जरा सोचिए। वह
बोला-सोचना क्या है? देखना है,जिसे लोग देखेंगे। लोग देखेंगे तो लाइक,कमेंट्स
की भरमार होगी। मैं बोला-भाई! मेरा अभिप्राय यह नहीं है,जो आप समझ रहे है। मेरा अभिप्राय
है कि कल कोई आपकी निजता को भंग करें तो आप क्या सोचेंगे? यह सुनकर वह निरुत्तर
हो गया और मोबाइल जेब में रखकर वहां से खिसक गया।
हालांकि पता तो मुझे भी नहीं है। दोनों किस बात
पर लड़ रही हैं,पर भीड़ में से एक भाई साहब! बता रहे थे कि अच्छाई ने
बुराई को यह कह दिया कि आज रावण दहन के पुतले के साथ तू भी जलकर खाक हो जाएंगी।
बस,यह सुनकर बुराई आग बबूला हो गई और गालियां देने लगी। जब बुराई बुरी-बुरी
गांलिया निकालने लगी तो अच्छाई से रहा नहीं गया तथा उसने उसकी चोटी पकड़कर दो-चार
थप्पड़ रसीद कर दी। फिर क्या था? दोनों में गुत्थमगुत्थी
हो गई। दोनों की दोनों लड़ती-झगड़ती बीच सड़क पर आ गई। इन्हें देखकर आप-हम भी जुट
गए। अफसोस कि अब भी छुड़ाने को कोई आगे नहीं आ रहा है।
लड़ती हुई बुराई कह रही है कि तू अच्छाई होकर
भी क्या कर पाई? मैं देख बुरी होकर भी कहां से कहां पहुंच गई। तू समझती है
कि रावण के पुतले के साथ मैं भी जलकर खाक हो जाती हूं। मूर्ख मैं जलती ही नहीं,साइड
से निकल जाती हूं। यह तो मेरी कला है। जो आंखों में धूल झोंककर निकल जाती हूं। एक
बार तू मुझे छोड़कर देख। फिर बताती हूं। मैं क्या बला हूं। अच्छाई उसे छोड़ी तो
नहीं,पर बोली- तू चाहे जो बला हो। लेकिन मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकती। बुराई तू बुरी
है और बूरी ही रहेंगी और आज मैं तूझे तेरी औकात बताकर ही रहूंगी। बुराई छुड़ाने का
बार-बार जतन तो कर रही थी। लेकिन कामयाब नहीं हो पा रही थी। इसलिए भला-बुरा कही जा
रही थी। जिसका अच्छाई मुंहतोड़ जवाब दे रही थी। यह तो शुक्र है कि वक्त पर अच्छाई
की बहिन भलाई आ गई और बुराई का भाई बुरा आ गया। जिन्होंने आते ही दोनों को
अलग-अलग कर दिया। अन्यथा दोनों एक-दूसरी की जान लेने पर तुली थी। जबकि भीड़
तमाशबीन ही खड़ी थी।
No comments:
Post a Comment