31 Jan 2018

वसंत अब ऑनलाइन ही मिलेगा

मोहनलाल मौर्य

वसंत वसंतपंचमी को परदेश से आया था। मैंने ही नहीं दीनू काका ने भी देखा था। देखा क्या था,उसने दीनू काका के पैर भी छूए थे। काका ने शुभाशीष भी दिया था-जुग-जुग जियों वसंतराज। यूं ही आते-जाते रहना। सदा यू हीं मुस्‍कराते रहों।वसंत समूचे मोहल्ले वासियों का चेहता हैं। हर साल इन्हीं दिनों में घर आता है। कपड़ों का बैग भरकर लाता हैं। वसंत को पीले वस्त्र बहुत प्रिय हैं। उसका रूमाल तक पीले रंग का होता है। सब उससे मिलना चाहते हैं। पर जबसे आया है, दिखाई नहीं दे रहा है। वसंत कल रामू काका पूछ रहे थे- सुना है वसंत आया हुआ है?’ मैंने कहा-आपने ठिक सुना है।यह सुनकर वे बोले-तो फिर वह कहां है? मैंने तो उसे देखा ही नहीं और ना वह मुझे मिला है।इस पर मैंने उन्हें समझाते हुए कहा-काका! वह आजकल आप से ही नहीं, किसी से भी मिलता-जुलता नहीं है।किसी ओर कि तो क्‍या क्‍यूं? लेकिन अपुष्‍ट खबर है कि जिनका वह अजीज हैं,उनसे ही रूष्‍ट हैं।
रामू काका चौंके-क्या कह रहे हो? वसंत ऐसा लड़का नहीं है। वह तो जब भी आता है, सबसे मिलता है। बड़े-बुजुर्गों का अदब करता। प्यार-प्रेम की वार्ता करता है। जरूर किसी कार्य में व्यस्त होगा। या हो सकता है सर्दी का टाइम हैं खांसी-जुकाम हो गई हो। परदेश का तथा यहां का वातावरण अलग-अलग हैं,सूट नहीं किया हो।काका कि उक्‍त कथ्‍य मेरे गले नहीं उतरा तो मैंने काका से कहा-‘काका! ऐसी बात नहीं। बात कुछ और ही है। ’ यह सुनकर रामू काका बिना किसी वक्‍तव्‍य के ही वसंत की खोज-खबर में वहां से चल दिया। वसंत गोधूली के समय रामू काका वसंत से मिलने उसके घर पहुंचे। पर वह वहां नहीं था। उसके मां-बाप बता रहे थे कि जबसे आया है, फेसबुक पर ही चिपका रहता है। पता नहीं क्या हो गया है? गुमसुम रहता है। पहले तो खेत-खलियान में भी जाता था। सरसों के पीले-पीले फूल बरसाते हुए आता था। सबसे मिलता-जुलता था। पल दो पल ही सही लेकिन सबसे प्‍यार भरी मीठी-मीठी बातें करता था। सबका दिल जीत लेता था तथा दिनभर खुश रहता था। अब तो मुरझाया सा रहता है और दिनभर खाट पर औंधे मुंह करके लेटा रहता हैं। दिनभर पता नहीं मोबाइल में क्‍या देखता रहता हैं। मोबाइल पर से नज़र हटाता ही नहीं है। हमें तो डर कहीं छोरे की दृष्टि कमजोर नहीं हो जाए।  
अगले दिन मैं गया तो वसंत अपने कमरे में बैठा फेसबुक पर लिख रहा था- मैं वसंत हूं। परदेश से तुम्हारे लिए आया हूं। एक खास गिफ्ट लाया हूं। वैलेंटाइन डे पर मिलेगे...।तभी उसे कमरे में मेरे दाखिल होने का भान हुआ। उसने गर्दन मेरी आरे घुमाई और बोला-आप और यहां। कैसे आना हुआ?’
मैंने कहा-भाई! आपसे मिलने आ गया। आप जबसे आए हो, मिले ही नहीं। आपको रामू काका भी पूछ रहे थे और खुशनुमा मौसमी काकी भी पूछ रही थी। सच क्‍यूं तो कईयों को तो यकीन नहीं है कि वसंत आ गया है। आखिरकार बात क्या है?’ वसंत बोला-बात-वात कुछ नहीं है। अभी तुम जाओं। मैं व्यस्त हूं। शाम को फेसबुक पर ऑनलाइन मिलते हैं। वहीं वार्तालाप करते हैं।

मैं मन मसोसकर चला आया। रास्ते में रामू काका मिले। उन्होंने पुन: पूछा-वसंत मिला क्या? नहीं मिला तो कहां मिलेगा?’मैंने कहा-काका,वसंत तो अब फेसबुक पर ऑनलाइन मिलेगा।

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