29 Jan 2018

मां आखिर मां होती है!

मोहनलाल  मौर्य
बच्चा ठोकर खाकर गिर जाए तो मां सौ काम छोड़कर उठाने दौड़ती है। भागकर उठाती है और सीने से लगा लेती है। देखती है कहीं चोट तो नहीं आई। संतान के खरोंच भी आ जाए तो मां का दिल दहल उठता है। मां की ममता निर्मल है। दया,करूणा की सागर है। मां आखिर मां होती है। चाहे सौतेली मां हो। चाहे धरती मां हो। मां का वात्सल्य अपनी संतान पर सदैव न्यौछावर रहता है। मां आखिर मां होती है
धरती मां भी धरती पुत्र से अगाथ प्रेम करती है। जिस तरह मां बच्चे को नौ महिने कोख में पालती है और जन्म देती है। उसी तरह धरती मां भी धरती पुत्र की फसल को अपनी कोख में पाल-पोसकर बड़ी करती है। धरती मां फसल बुवाई से लेकर कटाई तक। फसल की उसी तरह देखभाल करती है। जिस तरह एक मां अपने नवजात बच्चे की करती है। जब बच्चा रोता है तो मां उसे स्तनपान कराती है। उसे लोरी सुनाती है और जब बच्चा सो जाता है तो अपने गृहस्थी के कार्यों में जुट जाती है। इसी तरह धरती मां फसल को प्यास लगती है,तो पानी पिलाती है। भूख लगती है,तो खाद पदार्थ से पेट भरती है। आड़ी-तिरछी पड़ जाती है,तो आहिस्ता-आहिस्ता उठाती है और अपने आंचल में लपेटकर रखती है। मां के आंचल तले फसल भी को भी सुकून का अहसास होता है।

लेकिन जब अतिवृष्टि,ओलावृष्टि,अकाल से फसल चौपट होती है। तब धरती मां का कलेजा मुंह में आ जाता है। अपनी आंखों के सामने चौपट होती फसल और पुत्र की हालात देखकर धरती मां भी,अपनी मां की तरह विलाप में डूब जाती है। धरतीपुत्र चौपट हुई फसल की खातिर मुआवजे की मांग करता है,तो या तो गोली खानी पड़ती है या फिर लाठी चार्ज से भेंट होती है। यह देखकर मां पर क्या बीतती है। यह तो मां ही जानती है। मां आखिर मां होती है। मां आखिर मां होती है
अपने आंखों के सम्मुख पुत्र को तड़फता देखकर किस मां का कलेजा नहीं फटेगा। फिर यह तो धरती पुत्र है,जो कड़ी मेहनत करके हमारे लिए अनाज पैदा करता है। बेचारा दिन-रात जागता है और फिर भी फसल का भाव न्यूनतम मिलता है। न्यूनतम भाव से खुद की पूर्ति नहीं होती। सेठ-साहूकार और बैंक का कर्ज कैसे चूकता करें। ऐसी स्थिति में साल दर साल कर्ज पर कर्ज चढ़ता रहता है और एक दिन धरती पुत्र कर्ज तले दब जाता है। कर्ज तले दबे पुत्र को मां निकल नहीं पाती है। यह मलाल मां के सीने में ताउम्र दबा रहता है।

धरतीपुत्र भी खुशहाल जिंदगी जीना चाहता है। पर कर्ज का भार उठा नहीं पाता है। खुदकुशी का रास्ता जब वह अपनाता है। तब धरती मां खून की आंसू रोती है। मां की सेवा-सत्कार करने वाला बेटा,जब आत्महत्या करता है या कर्ज तले दबकर मरता है,तो उस मां पर क्या गुजरती है। उस मां से बेहतर कौन जानता होगा। मां आखिर मां होती है।

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