कई लोग इत्ते भरोसे के साथ यकीन दिलाते हैं कि आपका अमुख कार्य। अमुख तारीख को
सुनिश्चित हो जाएंगा। यह सुनकर हम भी सुनिश्चित की चादर ओढ़कर सो जाते हैं।
सुनिश्चित की अवधि समीप आने पर हमारी आंखे खुलती हैं तो सुनिश्चित की चादर
अनिश्चित में समेटी हुई मिलती है। अनिश्चित में समेटी हुई चादर को आप हम तो दोबारा
ओढ़ना मुनासिब नहीं समझते। पर मित्र ! रामभरोस अनिश्चित में समेटी हुई चादर को भी
फैलाकर दुबारा ओढ़ लेता है। अब रामभरोस को कौन समझाए?
वह किसी कि मानता भी तो नहीं। कहता है,बेचारे की कुछ मजबूरी रही होगी। वह तो तकरार में भी इनकार
नहीं करता। इनकार ही किया है। इकरार तो यथावत है। इकरार है तो भरोसा भरसक है। इसे
क्या मालूम? ऐनवक्त पर मना करने पर वहीं स्थिति होती है। जो चुनाव में नेताजी की ऐनवक्त पर
टिकट कटने पर होती है।
रामभरोस का भरोसा रामभरोसे
रामभरोस का भरोसा रामभरोसे
कहते है कि जिस पर भरोसा होता है। वहीं मुसीबत में काम आता है। लेकिन भरोसा
देकर ऐनवक्त पर टालमटोल कर जाना। मुसीबत में एक ओर मुसीबत झेलना मजबूर करना है।
फिर एक ओर एक मुसीबत मिलकर ग्यारह का काम करती हैं। मौका मिलने पर काम भी तमाम कर
देती है। मुसीबत यहां तो आती नहीं और आती है जल्दी सी जाती नहीं। खुद तो आती है,जो आती है,अपने संग मानिसक तनाव और गृहक्लेश भी साथ लाती है। जेल से
कैदी का बाहर निकलता आसान है पर मुसीबत से
निकलना मुश्किल है। मुसीबत तो मुसीबत है।
रामभरोस का जिस पर भरोसा कायम है। उसे रामभरोस के नाम में,जो ‘राम’ है उसमें मर्यादा पुरुषोत्तम ‘राम’ तो नजर आता
है। पर राम के पीछे जुड़ा ‘भरोस’ में भरोसा दिखाई नहीं देता। वह सोचता होगा। जिसका
नाम ही राम के भरोसे है यानी रामभरोस है। उस पर क्या भरोसा करें?
विश्वास कुमार होतो। कम से कम नाम पर तो विश्वास रहता है।
फिर चाहे वह नाममात्र का ही विश्वास कुमार क्यूं ना हो। इसमें रामभरोस का दोष
थोड़ी है। मां-बाप दोषी है। जिन्होंन ऐसा नाम रखा। मां-बाप भी क्यूं दोषी है?
दोषी तो ज्योतिषी है। ज्योतिषी भी क्यूं दोषी?
वह तो पंचाग के मुताबिक चलता है। दोषी तो ग्रह है जिसमें
इसका जन्म हुआ था। ग्रहों का भी क्या दोष है? दोष तो तुला राशि का है जिसने यह नाम प्रदान किया। इसमें
तुला राशि का भी क्या दोष है? तुला राशि ने थोड़ी कहा था कि रामभरोस ही नाम रखना। तुला
में रामभरोस के अलावा ओर भी अनेकानेक नाम थे। उनमें से भरोसा लायक नाम रख लेते।
खैर,छोड़ों।
रामभरोस ऐसा क्या करें? उसका जिस पर भरोसा है। वह भी उस पर भरोसा कर ले। आप ही कोई
सुझाव दीजिए। हो सकता है,आपका सुझाव। उसके दिमाग में घुस जाए और वह भरोसा कर ले। एक
भाई साहब! ने बहुत अच्छा सुझाव दिया। भरोसा तो भरोसा है। करें ना करें उसकी मर्जी।
इसमें आप-हम क्या कर सकते है सरजी। आप भी किसी के भरोसे आश्वस्त है तो जान लीजिए
भाई साहब का सुझाव शाश्वत है। इसके बावजूद भी भरोसा करते हैं तो जिम्मेवारी खुद की
होगी। एक दूसरे भाई साहब ने सुझाव दिया- भरोसे पर दुनिया कायम है। भरोसा है तो सब
कुछ है। अन्यथा कुछ भी नहीं। सुझाव तो इनका भी वाजिब है। ऐतबार ही है,जिसकी बुनियाद पर रिश्तों की इमारत टिकी हुई है। अन्यथा कब
की ध्वस्त हो गई होती। ऐतबार नहीं होता तो प्रेमी-प्रेमियों में प्रेम ही नहीं
होता। प्रेम नहीं होता तो प्रेमी-प्रेमिका नहीं होती। ऐतबार है तो प्रेम है और
प्रेम है तो प्रेमी-प्रेमिका है।
रामभरोस जिस पर अटूट भरोसा करता है। उसने मुझे बताया कि अधुनातन में भरोसा रहा
ही कहां?
जो निहायत कम बचा हुआ है। उसके भी स्वार्थ की दीमक लग गई
है। जो भरोसे को धीरे-धीरे चट कर रही है। जिस पर खुद से ज्यादा विश्वास है। वहीं
विश्वास का गला दबा रहा। इसीलिए तो भाई भाई से आंखे नहीं मिला रहा है। उसी ने आगे
बताया कि भाई साहब ! होने को तो भरोसा तो भरसक होता है। लेकिन जिस पर भरोसा होता
है। वहीं विश्वासघात निकल आए तो इसमें भरोसा भी क्या करे?
रही बात रामभरोस की,जिसका नाम ही रामभरोस है। उस पर भरोसा करना भी रामभरोसे ही
है।