14 Apr 2018

रामभरोस का भरोसा रामभरोसे


कई लोग इत्ते भरोसे के साथ यकीन दिलाते हैं कि आपका अमुख कार्य। अमुख तारीख को सुनिश्चित हो जाएंगा। यह सुनकर हम भी सुनिश्चित की चादर ओढ़कर सो जाते हैं। सुनिश्चित की अवधि समीप आने पर हमारी आंखे खुलती हैं तो सुनिश्चित की चादर अनिश्चित में समेटी हुई मिलती है। अनिश्चित में समेटी हुई चादर को आप हम तो दोबारा ओढ़ना मुनासिब नहीं समझते। पर मित्र ! रामभरोस अनिश्चित में समेटी हुई चादर को भी फैलाकर दुबारा ओढ़ लेता है। अब रामभरोस को कौन समझाए? वह किसी कि मानता भी तो नहीं। कहता है,बेचारे की कुछ मजबूरी रही होगी। वह तो तकरार में भी इनकार नहीं करता। इनकार ही किया है। इकरार तो यथावत है। इकरार है तो भरोसा भरसक है। इसे क्या मालूम? ऐनवक्त पर मना करने पर वहीं स्थिति होती है। जो चुनाव में नेताजी की ऐनवक्त पर टिकट कटने पर होती है। 
रामभरोस का भरोसा रामभरोसे
कहते है कि जिस पर भरोसा होता है। वहीं मुसीबत में काम आता है। लेकिन भरोसा देकर ऐनवक्त पर टालमटोल कर जाना। मुसीबत में एक ओर मुसीबत झेलना मजबूर करना है। फिर एक ओर एक मुसीबत मिलकर ग्‍यारह का काम करती हैं। मौका मिलने पर काम भी तमाम कर देती है। मुसीबत यहां तो आती नहीं और आती है जल्दी सी जाती नहीं। खुद तो आती है,जो आती है,अपने संग मानिसक तनाव और गृहक्लेश भी साथ लाती है। जेल से कैदी का बाहर निकलता आसान है पर  मुसीबत से निकलना मुश्किल है। मुसीबत तो मुसीबत है।
रामभरोस का जिस पर भरोसा कायम है। उसे रामभरोस के नाम में,जो ­‘राम’ है उसमें मर्यादा पुरुषोत्तम ­‘राम’ तो नजर आता है। पर राम के पीछे जुड़ा ‘भरोस’ में भरोसा दिखाई नहीं देता। वह सोचता होगा। जिसका नाम ही राम के भरोसे है यानी रामभरोस है। उस पर क्या भरोसा करें? विश्वास कुमार होतो। कम से कम नाम पर तो विश्वास रहता है। फिर चाहे वह नाममात्र का ही विश्वास कुमार क्यूं ना हो। इसमें रामभरोस का दोष थोड़ी है। मां-बाप दोषी है। जिन्होंन ऐसा नाम रखा। मां-बाप भी क्यूं दोषी है? दोषी तो ज्योतिषी है। ज्योतिषी भी क्यूं दोषी? वह तो पंचाग के मुताबिक चलता है। दोषी तो ग्रह है जिसमें इसका जन्म हुआ था। ग्रहों का भी क्या दोष है? दोष तो तुला राशि का है जिसने यह नाम प्रदान किया। इसमें तुला राशि का भी क्या दोष है? तुला राशि ने थोड़ी कहा था कि रामभरोस ही नाम रखना। तुला में रामभरोस के अलावा ओर भी अनेकानेक नाम थे। उनमें से भरोसा लायक नाम रख लेते। खैर,छोड़ों।
रामभरोस ऐसा क्या करें? उसका जिस पर भरोसा है। वह भी उस पर भरोसा कर ले। आप ही कोई सुझाव दीजिए। हो सकता है,आपका सुझाव। उसके दिमाग में घुस जाए और वह भरोसा कर ले। एक भाई साहब! ने बहुत अच्छा सुझाव दिया। भरोसा तो भरोसा है। करें ना करें उसकी मर्जी। इसमें आप-हम क्या कर सकते है सरजी। आप भी किसी के भरोसे आश्वस्त है तो जान लीजिए भाई साहब का सुझाव शाश्वत है। इसके बावजूद भी भरोसा करते हैं तो जिम्मेवारी खुद की होगी। एक दूसरे भाई साहब ने सुझाव दिया- भरोसे पर दुनिया कायम है। भरोसा है तो सब कुछ है। अन्यथा कुछ भी नहीं। सुझाव तो इनका भी वाजिब है। ऐतबार ही है,जिसकी बुनियाद पर रिश्तों की इमारत टिकी हुई है। अन्यथा कब की ध्वस्त हो गई होती। ऐतबार नहीं होता तो प्रेमी-प्रेमियों में प्रेम ही नहीं होता। प्रेम नहीं होता तो प्रेमी-प्रेमिका नहीं होती। ऐतबार है तो प्रेम है और प्रेम है तो प्रेमी-प्रेमिका है।
रामभरोस जिस पर अटूट भरोसा करता है। उसने मुझे बताया कि अधुनातन में भरोसा रहा ही कहां? जो निहायत कम बचा हुआ है। उसके भी स्वार्थ की दीमक लग गई है। जो भरोसे को धीरे-धीरे चट कर रही है। जिस पर खुद से ज्यादा विश्वास है। वहीं विश्वास का गला दबा रहा। इसीलिए तो भाई भाई से आंखे नहीं मिला रहा है। उसी ने आगे बताया कि भाई साहब ! होने को तो भरोसा तो भरसक होता है। लेकिन जिस पर भरोसा होता है। वहीं विश्वासघात निकल आए तो इसमें भरोसा भी क्या करे? रही बात रामभरोस की,जिसका नाम ही रामभरोस है। उस पर भरोसा करना भी रामभरोसे ही है।


4 Apr 2018

मूर्ख नहीं डेढ़ गुणा समझदार


मोहनलाल मौर्य
आप भले ही उसे मूर्ख समझते होंगे। वह तो अपने आपको समझदार समझता है। समझता क्या है? समझदार है। उसका अभिनय देखकर मूर्ख समझना आपकी ही मूर्खता हैं। वह तो मूर्खता के नेपथ्य में अभिनयचातुर्य है। मूर्खता ही उसका पेशा है और वह अपने पेशे में सिद्धहस्‍त है। सच में मूर्खता का अभिनय तो कोई उससे ही सीखे। सीखे नहीं तो देखे अवश्‍य। किस तरह मूर्खता का अभिनय करता है। मूर्ख नहीं डेढ़ गुणा समझदार

वह निरुत्तर रहता है। लेकिन उसके निरुत्तर में प्रत्युत्तर होता है। अब आप सोच रहें होंगे प्रत्‍युत्‍तर होता है तो देता क्‍यूं नहीं? क्‍योंकि वह आपको ही मूर्ख समझता है। इसलिए प्रत्‍युत्‍तर नहीं देता। आपको विश्‍वास नहीं होगा। एक दफा उसने मुझे बताया था कि उस मूर्ख के मुंह लगना मूर्खता है। यह सुनकर एक बार तो मैं भी हक्‍का-बक्‍का रह गया। आप उसे मूर्ख समझते है और वह आपको। समझ में नहीं आता कि आप दोनों में से मूर्ख कौन है और ज्ञानी कौन है? वह या आप। वह लगता नहीं और आप होंगे नहीं। आप अपने आपको समझदार जो समझते हो। इस असमंजस से मैं खुद असमंजस में हूं। खैर छोडों।
कहीं आप मुझे भी तो मूर्ख नहीं समझ रहे है। कुछ लोग मूर्खो जैसी वार्ता करने वालों को भी मूर्ख समझ लेते हैं। आपने ज्ञानी जनों से सुना भी होगा। देखों कैसी मूर्खो जैसी बात कर रहा हैं। आप मुझे भी मूर्ख समझ रहे है तो ठीक ही समझ रहे है। क्‍योंकि मूर्ख से कोई जल्‍दी सी उलझता नहीं है। उलझता है तो गुत्थी झुलझती नहीं। इसलिए मेरी तो मूर्खता में ही समझदारी है। मूर्खता में समझदारी का फायदा एक नहीं,अनेक है। एक तो ज्‍यादा माथापच्‍ची नहीं करनी पड़ती है। दूसरा अपना काम आसानी से हो जाता है। और किसी को संदेह भी नहीं होता कि बंदा मूर्ख नहीं समझदार है।
आप जिसे मूर्ख समझते होना उसे ही देख लो। आपसे अपना स्वार्थ नि:स्वार्थ करवाना उसकी फितरत है। चेहरे पर भोलापन और जुबान में मिठापन नैसर्गिक लगे ऐसे बोल बोलता है,जो उसका हुनर है। अजीबोगरीब वार्ता कर अपना उल्लू सीधा करना उसकी मूर्खता नहीं,चालाकी है। अब तो आप समझ गए ना कि वह मूर्ख नहीं है। बल्कि मूर्खता के नेपथ्‍य में डेढ़ गुणा समझदार है। अब भी आपको यकीन नहीं हुआ है तो ऐसा कीजिए खुद ही उसकी मूर्खता की तहकीकात कीजिए। अपने आप ही आभास हो जाएंगा।
आप जैसे समझदार को क्‍या समझाए? फिर भी एक बात अवश्‍य ध्‍यान रखएंगा। जिसमें आपकी भलाई है। अपनी समझदारी अपने पास ही रखिये। कहीं ओर काम आएंगी। यहां ही व्यर्थ कर दी तो कहीं ओर किससे काम चलाओंगे। क्‍योंकि समझदार होना तो बनता है पर समझदारी दिखाना कहां चलता है। जहां चलता है वहां चलाए। किंतु देखकर चलाए। कहीं कोई चालान नहीं काट दे। चालान कट गया तो समझ लो जुर्माना भरना ही पड़ेगा। और समझदारी दिखाने का जुर्माना बहुत महंगा पड़ता है। अब भी आपको समझ में नहीं आई तो कभी आएंगी भी नहीं।