मोहनलाल मौर्य
आप भले ही उसे मूर्ख समझते होंगे। वह तो अपने आपको समझदार समझता है। समझता
क्या है?
समझदार है। उसका अभिनय देखकर मूर्ख समझना आपकी ही मूर्खता
हैं। वह तो मूर्खता के नेपथ्य में अभिनयचातुर्य है। मूर्खता ही उसका पेशा है और वह
अपने पेशे में सिद्धहस्त है। सच में मूर्खता का अभिनय तो कोई उससे ही सीखे। सीखे
नहीं तो देखे अवश्य। किस तरह मूर्खता का अभिनय करता है। मूर्ख नहीं डेढ़ गुणा समझदार
वह निरुत्तर रहता है। लेकिन उसके निरुत्तर में प्रत्युत्तर होता है। अब आप सोच
रहें होंगे प्रत्युत्तर होता है तो देता क्यूं नहीं? क्योंकि वह आपको ही मूर्ख समझता है। इसलिए
प्रत्युत्तर नहीं देता। आपको विश्वास नहीं होगा। एक दफा उसने मुझे बताया था कि
उस मूर्ख के मुंह लगना मूर्खता है। यह सुनकर एक बार तो मैं भी हक्का-बक्का रह
गया। आप उसे मूर्ख समझते है और वह आपको। समझ में नहीं आता कि आप दोनों में से
मूर्ख कौन है और ज्ञानी कौन है? वह या आप। वह लगता नहीं और आप होंगे नहीं। आप अपने आपको
समझदार जो समझते हो। इस असमंजस से मैं खुद असमंजस में हूं। खैर छोडों।
कहीं आप मुझे भी तो मूर्ख नहीं समझ रहे है। कुछ लोग मूर्खो जैसी वार्ता करने
वालों को भी मूर्ख समझ लेते हैं। आपने ज्ञानी जनों से सुना भी होगा। देखों कैसी
मूर्खो जैसी बात कर रहा हैं। आप मुझे भी मूर्ख समझ रहे है तो ठीक ही समझ रहे है। क्योंकि
मूर्ख से कोई जल्दी सी उलझता नहीं है। उलझता है तो गुत्थी झुलझती नहीं। इसलिए
मेरी तो मूर्खता में ही समझदारी है। मूर्खता में समझदारी का फायदा एक नहीं,अनेक
है। एक तो ज्यादा माथापच्ची नहीं करनी पड़ती है। दूसरा अपना काम आसानी से हो
जाता है। और किसी को संदेह भी नहीं होता कि बंदा मूर्ख नहीं समझदार है।
आप जिसे मूर्ख समझते होना उसे ही देख लो। आपसे अपना स्वार्थ नि:स्वार्थ करवाना
उसकी फितरत है। चेहरे पर भोलापन और जुबान में मिठापन नैसर्गिक लगे ऐसे बोल बोलता
है,जो उसका हुनर है। अजीबोगरीब वार्ता कर अपना उल्लू सीधा करना
उसकी मूर्खता नहीं,चालाकी है। अब तो आप समझ गए ना कि वह मूर्ख नहीं है। बल्कि
मूर्खता के नेपथ्य में डेढ़ गुणा समझदार है। अब भी आपको यकीन नहीं हुआ है तो ऐसा
कीजिए खुद ही उसकी मूर्खता की तहकीकात कीजिए। अपने आप ही आभास हो जाएंगा।
आप जैसे समझदार को क्या समझाए? फिर भी एक बात अवश्य ध्यान रखएंगा। जिसमें आपकी भलाई है।
अपनी समझदारी अपने पास ही रखिये। कहीं ओर काम आएंगी। यहां ही व्यर्थ कर दी तो कहीं
ओर किससे काम चलाओंगे। क्योंकि समझदार होना तो बनता है पर समझदारी दिखाना कहां
चलता है। जहां चलता है वहां चलाए। किंतु देखकर चलाए। कहीं कोई चालान नहीं काट दे।
चालान कट गया तो समझ लो जुर्माना भरना ही पड़ेगा। और समझदारी दिखाने का जुर्माना बहुत
महंगा पड़ता है। अब भी आपको समझ में नहीं आई तो कभी आएंगी भी नहीं।
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