3 Jun 2018

मंत्रीजी तो बिजी है


माननीय के मंत्री बनने की अभी घोषणा ही हुई है। अभी तो शपथ भी नहीं ली। पदभार भी नहीं संभाला। आप चले आए मंत्रीजी से मिलने। न गुलदस्‍ता लाए और न मिठाई। खाली हाथ बधाई देकर श्रीगणेश करेंगे तो अशुभ होगा श्रीमानजी! ये तो मंत्रीजी है। खाली हाथ मिलेंगे तो दुआ-सलाम भी कबूल नहीं होगी। आश्‍वासन का तो सवाल नहीं। जो मिल जाएंगा।
‘आप कौन है भाई साहब!’ मंत्रीजी तो बिजी है
‘मैं मंत्रीजी का निजी सचिव हूं और अभी बहुत बिजी हूं। आज तो मंत्रीजी भी बिजी हैं। कल शपथ लेंगे। परसों पदभार संभालेंगे। उसके बाद से कार्यकर्ता व नागरिकों की ओर से जगह-जगह अभिनंदन समारोह होंगे। समारोह भी क्षेत्रीय तथा गैर क्षेत्रीय होंगे। अब मंत्रीजी क्षेत्रीय नहीं रहे। प्रादेशिक हो गए हैं। राजनैतिक समारोह तो होंगे ही। समाज स्‍तरीय भी होंगे। नेताजी मंत्री बनने से पूर्व अपने समाज के उच्‍चस्‍तरीय नेता रहे है। उनके समाज वाले भी तो मंत्रीजी का मंत्री स्‍तरीय सम्‍मान करेंगे न। अभी तो कई दिनों तक मंत्रीजी फूल मालाओं से लदे रहेंगे। बाजे-गाजे से चलेंगे। चलते-चलते ही दोनों हाथ जोड़कर अभिवादन करेंगे। लोगों से मिलेंगे-जुलेंगे। कोई हाथ मिलाएंगा,कोई गले लगेगा। कोई दूर से ही हाथ हिलाकर बधाई, शुभकामनाएं प्रेषित करेंगा। जनसभा स्‍थल पर सम्‍बोधित करेंगे, वादे करेंगे। तालिया बजेगी। जय-जयकार होगी। जिंदाबाद के नारे लगेंगे। कार्यकर्ता सेल्‍फी लेंगे। सेल्‍फी फेसबुक पर टांक कर लाइक कमेंट्स बटोरेगे। ये देखकर मंत्रीजी मन ही मन प्रमुदित होंगे। ऐसा कीजिए श्रीमानजी! अब तो आप जाए और फिर कभी आइएंगा। अब तो मंत्रीजी से मिलने-जुलने का सिलसिला चलता ही रहेगा। और हां मेरी बात का बुरा मत मानिएंगा। मैं तो मंत्रीजी के आदेशों की अनुपालन कर रहा हूं। अनुपालन करना ही मेरी ड्यूटी है। मैं अपनी ड्यूटी में जरा सी भी कोताही नहीं बरता।’
यह सुनकर श्रीमानजी ने औपचारिक रस्‍म-अदायगी में विदाई लेने से अच्‍छा बिना मिले-जुले ही घर आना ही मुनासिब समझा। वे घर चले आए। मंत्रीजी की शपथ,पदभार,अभिनंदन के ढाई वर्ष उपरांत वह फिर जा पहुंचा। रोज मंत्रीजी से ना जाने कि इतने ही मेल-मुलाकात करने आते हैं। किस-किस को याद रखे। कब तक रखे? क्‍यों रखे? जरूरत नहीं। जिन्‍हें जरूरत है वे हमें याद रखें। यहीं सोचकर निजी जी ने परिचय पूछा। ‘मैं मंत्रीजी के क्षेत्र का ही एक वोटर हूं। नेताजी तो मंत्री बनते ही फूल गए और एक वोटर से किए वायदे भूल गए। विकास की राह देखते-देखते गांव के आम रास्‍ते सिकुड़ गए। पेयजल संकट से गले सूख गए। सरकारी अस्‍पताल अभाव में फोड़ा,फुंसी भी घाव बन गए। समय पर इलाज ना होने से कई असमय चल बसे। सरकारी स्‍कूल के अभाव में बच्‍चें अपना उज्‍ज्‍वल भविष्‍य दो कोस पैदल चलकर बना रहे हैं। और निजी स्‍कूल वाले लूटमारी का उत्‍सव मना रहे हैं। जिसमें अभिभावक शिरकत करके लूट रहे हैं। फिर चाहे शिरकत करने के पीछे मजबूरी हो या प्रतिस्‍पर्धा। बिजली के तो पूछिए मत। बिजली तो मनचली हो रही है। इस मनचली बिजली ने किसान को दुखी कर रखा है। अब और क्‍या बताए और क्‍या ना बताए? चुनावीं घोषणा पत्र तो हमें पॉश इलाके का सपना दिखाता हैं। हमारे गांव के तो भाग्‍य विधाता मंत्रीजी ही है। अंदर जाने दीजिए और गांव का भाग्‍य चमकाने में सहयोग कीजिए। ग्रामवासियों की ओर से दुआएं मिलेगी।’
 
‘देखिए वोटरजी! पहले तो जल-पान कीजिए। उसके बाद संवाद कीजिए। सभी वायदे याद हैं। वे तो कब के ही पूरे हो गए होते। बीच-बीच में कभी पंचायतीराज चुनाव,कभी शहरी निकाय चुनाव तो कभी उप चुनाव जो आ जाते हैं। उप चुनाव तो महाचुनाव होता है। इसमें नींद हराम हो जाती है। पार्टी की नाक का सवाल जो रहता है, जिससे बचाने के लिए दिन-रात उसी क्षेत्र में डेरे डाले रहना होता है। अब जल्‍द ही वायदे पूरे होंगे। ऐसा है कि आज तो मंत्रीजी बिजी हैं। कल दौरे पर रहेंगे। परसों मीटिंग में रहेंगे और उसके बाद निजी कार्य से बाहर रहेंगे। इसके बाद कभी भी आइए,स्‍वागत है आपका।’ यह कहकर निजी सचिव मंत्रीजी की कैबिन में चला गया।
वोटरजी मुंह लटकाए चला आया। कुछ समय बाद एक रोज खुद के पुत्र विकास के ‘विकास’ के लिए जा पहुंचा। निजी सचिव जी से बोला,‘पुत्र का शारीरिक एवं मानसिक विकास तो गया है। लेकिन आर्थिक विकास मंत्रीजी की इनायत से हो जाए तो विकास खुद का एवं अपने बाल-बच्‍चों का विकास अच्‍छे से कर लेगा।’ सुनकर निजी सचिव वहीं बोला, जो बोलता आया था, ‘आज तो मंत्रीजी बिजी हैं। अंदर कॉन्‍फ्रेंस चल रही है। कल चुनावीं रणनीति की मीटिंग। परसों से दिल्‍ली जाएंगे। टिकट पर तलवार लटक गई है। परसों के बाद से तो क्षेत्र में रहेंगे। चुनाव नजदीक है। ऐसा कीजिए,वहीं मुलाकात कर लीजिए। और हां चुनाव में मंत्रीजी का ध्‍यान रखिएगा।’
उसके बाद जाने कितने परसों निकल गए मंत्रीजी नहीं आए। लगता है टिकट पर तलवार लटक गई होगी। इसलिए दिल्‍ली में ही अटक गए। अब चाहे अटके, चाहे वोट के लिए दर-दर भटकें। वादे तो कब के ही हवाई किले में कैद हो गए। अब तो कम ही टाइम बचा है।  एक बार फिर से वायदे,घोषणाओं की मुनादी में। अब चाहे निजी जी बिजी रहे या मंत्रीजी। चुनावीं घोषणा और पुत्र विकास का ‘विकास’ तो होने से रहा।
चुनावीं दौर में दौरा करते हुए एक रोज मंत्रीजी वोटर के घर पधारे। गृह प्रवेश से पूर्व निजी सचिव जी ने मंत्रीजी के कान में वोटर जी की शिकवा-गिलवा बता दी। मंत्रीजी ने निजी सचिव जी की कानाफूसी सुनकर जाते ही रूठे वोटर को मनाने के लिए गले लगा लिया। यह देखकर वोटरजी शिकवा-गिलवा भूल गया और मंत्रीजी की पार्टी का झंडा उठा लिया। जिंदाबाद! जिंदाबाद! के नारे लगाने लगा। ताकि अबकी बार दिखाए गए सुनहरे स्‍वप्‍न साकार हो जाए। और गांव का भाग्‍य चमक जाए। गांव का भाग्‍य तो पता नहीं कब चमकेगा। लेकिन एक बार फिर से मंत्रीजी का भाग्‍य चमक गया और वे भारी बहुमत से विजयी होकर मंत्री बन गए। और मंत्री बनते ही पूर्व की भांति बिजी हो गए।

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