29 Jul 2018

एक पाठक की धमकी


मुझे मोबाइल पर किसी ने धमकी दी है। धमकी दी है तो अंजाम भी देगा। सोचा मिली धमकी की सूचना पुलिस को इतला कर दूं,क्‍योंकि जान है तो जहान है।बिना समय गवाए पुलिस थाने पहुँच गया। थानेदार साहब से घबराते हुए बोला, ‘साहबअब आप ही कुछ कीजिए। वरना ज़िंदगी की पिच पर बिना रन लिए ही आउट हो जाऊंगा। यह सुनकर थानेदार साहब ने कहा कि घबराईए मत। आहिस्‍ता-आहिस्‍ता बताइए,आखिरकार हुआ क्‍या है,तबी हम कुछ कर पाएंगे।
मैं बोला,साहब! सुबह-सुबह भगवान का स्‍मरण कर रहा था। तबी मोबाइल थरथराया। भगवान से स्‍मरण टूटकर मोबाइल से स्‍मरण जुड़ा। कॉल रिसीव की,स्‍मरण मरण में बदल गया।
अच्‍छा तो पहले यह बताओं कि तुम करते क्‍या हो?
साहब! मैं तो एक अदना सा लेखक हूँ। यदा-कदा लिखता हूँ। पत्र-पत्रि‍काओं में लगभग रोज छपता हूँ।
यदा-कदा लिखते हो तो रोज कैसे छपते हो। 
साहबवह क्‍या है कि सप्‍ताह में एक रचना लिखता हूँ और वही ही किसी ना किसी अखबार में रोज सप्‍ताह भर छपती रहती है। इसलिए रोज छपता हूँ। 
जरूरी तुम्‍हारी सम्‍पादकों से सांठगांठ होगी। 
नहीं साहब! सांठगांठ नहीं हैं। उनकी ईमेल आईडी हैं। जिन पर रचना प्रेषित कर देता हूँ। अगले दिन छप जाता हूँ। अगले दिन नहीं,तो उससे अगले दिन छप जाता हूँ। उससे भी अगले दिन नहीं छपु तो अन्‍यत्र भेज देता हूँ। लेकिन सम्‍पादक की ओर  से कोई रिप्‍लाई नहीं आती।
जरूर तुमने किसी के खिलाफ उल्‍टा-सीधा लिखा होगा।
साहबउल्‍टा-सीधा का क्‍या मतलब? मैं तो सीधा लिखता हूँ। आप चाहे तो मेरी हैंड राइटिंग देख सकते है।
अरेमूर्ख मैं हैंड राइटिंग की बात नहीं कर रहा। किसी लेख-वेख में उल्‍टा-सीधा तो कुछ नहीं लिखा ना। 
साहब!लेख तो मैं लिखता ही नहीं हूँ।
थानेदार साहब! झुंझलाते हुए बोले, ‘अबे तो तून अभी कहा ना मैं लेखक हूँ। लेखक लेख नहीं लिखता तो ओर क्‍या लिखता है? भजन लिखता है क्‍या? साहब मैं तो व्‍यंग्‍यलिखता हूँ। 
तो किसी व्‍यंग्‍य में उल्‍टा-सीधा लिख दिया होगा। 
साहबव्‍यंग्‍य सीधा-सीधा थोड़ी लिखा जाता हैं। व्‍यंग्‍य तो उल्‍टा-सीधा ही लिखा जाता है।
अब आया ना ऊॅट पहाड़ के नीचे। जरूर तुने सरकार के खिलाफ व्‍यंग्‍य कसा होगा। 
नहीं साहब! 
तो किसी राजनेता के खिलाफ...या किसी भू माफिया के खिलाफ... या किसी डॉन या चोर उचक्‍के के खिलाफ...।
 नहीं साहब! 
जरूर किसी वरिष्‍ठ या गरिष्‍ठ साहित्‍यकार के खिलाफ व्‍यंग्‍य कसा होगा। 
नहीं साहबव्‍यंग्‍य तो विसंगतियों पर लिखा जाता है। 
तो तुझे अभी मैंने जो बताए उनमें विसंगतियां नहीं दिखती?
दिखती है ना साहब! तो लिखता क्‍यों नहीं? लिखता हूँ, ना साहब!
अबे मुझे क्‍यूं कंफ्यूज कर रहा है। कभी कहता है नहीं लिखता हूँ,साहबकभी कहता है लिखता हूँ,साहबखैर छोड़। यह बताओं धमकी देने वाले ने क्‍या कहा था?
साहबठीक से याद नहीं,पर इत्‍ता जरूर याद है कि उसने यह कहा था कि अपने मन के मुताबिक मत कर वरना अंजाम बहुत बुरा होगा।
तो तुमने क्‍या बोला?
मैंने उससे कहा कि मैंने क्‍या गुनाह किया है? फिर वह क्‍या बोला? थानेदार साहब ने यह मुझसे पूछा। बोला क्‍या? कॉल कट गई या काट दी गई।
थानेदार साहब! ने अपने मुखबिर को सूचित किया। एक घंटे बाद मुखबिर ने धमकी देने वाले का नाम,पता बता दिया। थानेदार साहब ने उससे बात की। उसने धमकी की यह वजह बताई, जो उस वक्‍त मेरे समझ में नहीं आ रही थी। थानेदार ने मुझसे कहायह तुम्‍हारा प्रिय पाठक है। लो इससे बात करों।’ 
मैंने फोन लियाहैलों...लेखकजी मैंने धमकी नहीं हिदायत दी थी कि तुम जब भी लिखते हो अपना की रोना रोता रहते हो। कभी हमारी भी सुन लिया करों। रोजी-रोटी,रोजगार,महामारी,महंगाई,भ्रष्‍टाचार,की बात कर लिया करों। तुम्‍हें अपने रोने-धोने से,पुरस्‍कार पाने से, साहित्‍यक राजनीति से फुर्सत मिले तो कभी हमारें गाँव आकर देखना। हमारें यहाँ पर पानी नहीं। बिजली नहीं। सड़क नहीं। अस्‍पताल नहीं। बैंक नहीं। स्‍कूल नहीं। आवागमन के लिए बस नहीं। गरीबी,भूखमरी,तथा बेरोजगारी से जनता त्रस्‍त और सरकार मस्‍त हैं। लेकिन तुम तो पुरस्‍कार के लिए लड़ते हो। अध्‍यक्षता के लिए भिड़ते हो। वरिष्‍ठता का बखान करते हो। कलम सिर्फ कागज पर घिसने के लिए नहीं होती। इसे संगीन बनाओं तो ही असर करती है। कहकर उसने फोन काट दिया।
उसकी बातें सुनकर मैं थाने से वापस आ गया। तब से मैं यह सोच-सोचकर कोमा में हूँ कि अगर सारे पाठक ऐसे ही लेखकों को धमकाने लगे,उन्‍हें सच का आईना दिखाने लगे तो हम लेखकों का क्‍या होगा?

24 Jul 2018

घर बैठे समस्या का समाधान

आजकल सबको घर बैठे-बिठाए समाधान चाहिए। खर्चा-पानी भले ही चार गुना लग जाए। लेकिन समस्या का समाधान घर बैठे ही होना चाहिए। रोज व्यक्ति को अनेकानेक समस्याओं से लड़ना पड़ता है। इस दौरान कभी चारों खाने चित तो कभी हार का मुंह देखना पड़ता है। इस हार-जीत से छूटकारा पाने के लिए,वह घर बैठे समाधान चाहता है। घर बैठे समस्या का समाधान 

आजकल घर बैठे समाधान करने वाले भी,हर जगह दुकान खोले बैठे हैं। इन्‍होंने अपना कारोबार ऑनलाइन से लेकर ऑफलाइन तक फैला रखा है। इनकी दुकान कस्टमर को पटाने के तमाम नायाब तरीकों से खचाखच भरी हुई रहती है। एक बार जो कस्टमर आ गया। वह समाधान खरीद कर ले ही जाएगा। यह समस्या का समाधान गारंटी के साथ करने का दावा भी करते हैं।

मसलन, गृह-क्लेश,आपसी मनमुटाव,पति-पत्नी में अनबन, गुप्त रोगी आदि इत्यादि समस्याओं का गारंटी के साथ घर बैठे समाधान। श्रीश्री गुरुजी द्वारा तैयार किया कवच मंगवाए। उसे पहनिए और समस्याओं से छूटकारा पाए। समस्या का समाधान नहीं हो तो पूरे पैसे वापस। तो देर किस बात की मोबाइल उठाइए और नीचे दी गई स्क्रीन पर दिए गए नंबरों पर लगाइए और घर बैठे हमारा प्रोडक्ट मंगवाए। जब टीवी स्क्रीन पर इस तरह का विज्ञापन बार-बार आता है तो लोग उसे ललचाए निगाहों से देखते हैं। और देखते-देखते ही ऑडर कर देते हैं। 

चाचा ग्यारसी लाल कई दिनों से किसी समस्या से जूझ रहे थे। चाचा ने लगा दिया फोन। एक सप्ताह उपरांत आया पार्सल। चाचा ने पार्सल खोला। पार्सल में घास-फूस और एक चिट्ठी थी। जिस तरह बस में लिखा हुआ होता है,‘सवारी अपने सामान की रक्षा स्वयं करें।’ उसी तरह चिट्ठी में लिखा हुआ था,‘अपनी समस्या का समाधान स्वयं करें।’ यह पढ़कर चाचा अपना सिर पीटने लगे। मैंने कहा, ‘चाचाश्री! सिर  पीटने से अब कुछ नहीं होगा। ऐसे समाधान होने लगे तो पता है न आपको देश में कितनी समस्याएं हैं। गिनाने लगे तो सुबह से शाम हो जाएगी। अगर ऐसे समाधान होते तो हमें दुश्मन से लड़ने की जरूरत ही नहीं होती। समस्याओं का ऐसे समाधान होने लगता तो मुल्क में भ्रष्टाचारमहंगाईबेरोजगारी, ऐसे खुलेआम नहीं घूमती। हमारे यहां तो टोल फ्री हेल्प लाइन पर समस्याओं का समाधान नहीं होता। सौ बार फोन लगाओं तो बड़ी मुश्किल से एक बार लगता है। जब तक पूरी जन्‍म कुण्‍ड़ली नहीं जान लेंगे उससे पहले शिकायत दर्ज नहीं करते। शीघ्र आपकी समस्‍या का समाधान कर दिया जाएंगा। यह कहकर पूरी बात सुनने से पहले फोन काट देते हैं।’  
चाचा बोले,‘बेटे मेरे तीन हजार रुपए का क्या होगा?’ मैंने चाचा को सांत्वना देते हुए कहा,‘जिस तरह श्मशान में गई हुई लकड़ी वापस नहीं आती। उसी तरह उनके पास गए हुए पैसे वापस नहीं आते।’
मेरा पड़ोसी भी एक बार झांसे में आ गया था। उसके घर पर चूहों ने हमला बोल दिया था। एक व्यक्ति चूहे मारने की दवा बेच रहा था। उसने उससे दस पैकेट खरीदे। घर आकर खोले तो हर पैकेट में एक ही बात लिखी हुई थी,चूहे पकड़िए और मारिए। आप भी ऐसे समाधानों से दूर रहेंगे तो बेहतर है। 

12 Jul 2018

चार लोग क्या कहेंगे!


व्यक्ति चार लोगों से डरता है। इन चार का न हो तो मनुष्‍य क्या से क्या कर डाले। कभी ना कभी इन चार से आपका भी पाला पड़ा होगा क्‍योंकि ये ‘चार लोग आप हम में से ही होते हैं। जरूरी नहीं पुरूष ही हो। महिलाएं भी हो सकती हैं,बल्कि महिलाएं ज्‍यादा होती हैं। ये चारों नारदीय गुणों से युक्‍त होते हैं। राई का पहाड़ और बात का बतंगड़ बनाना इनका ‘ऑल आइम फेवरेट’ काम होता है। ये किसी के फटे में ही टांग नहीं अड़ाते, बल्कि कई बार तो अच्‍छे-भले को पहले खुद फाड़ते हैं,फिर उसमें टांग अड़ाकर उसे चीर ही डालते हैं। ये पुराने से पुराने और नए से नए में भी अपनी टांग फंसाने हा हुनर रखते हैं। ये चरित्र से लेकर इज्‍जत और अफवाह से लेकर कानाफूसी तक को उछालने,उड़ाने और हवा देने में गजब के माहिर होते हैं। चार लोग क्या कहेंगे!
यदि आप यह सोच रहे हैं कि ‘ये चार’ कहां पाए जाते हैं,तो ज्‍यादा दूर जाने की जरूरत नहीं। आप नजरें उठाकर देखिए,‘ये चारों’ आपको आपपास ही मिल जाएंगे। यदि चार न दिखकर तीन ही दिखें तो भी चिंतित मह होइए,क्‍योंकि कभी-कभी तो आप स्‍वयं भी इन्‍हीं चार में से एक होते हैं।
दरअसल, ये चार लोग अपनी शातिर निगाहों से चलते-चलते कब अपने मतलब की बात ताड़ जांए, खुद उन्‍हें भी पता नहीं चलता। शास्‍त्रों में ‘ताड़न के अधिकारी’ इन्‍हें ही कहा गया है,क्‍योंकि ‘ताड़ जाने पर इनका खासा अधिकार होता है।’
    
कौन कब घर आ रहा है, कब जा रहा हैकहां से आ रहा है,कहां जा रहा हैकिसके नल में ज्यादा पानी आता है, किसके में कम? रामू के घर में क्या चल रहा हैश्यामू की बीवी बेलन से उसकी रोज मरम्‍मत क्‍यों करती हैमदन की बीवी अपनी पड़ोसिनों कमला और विमला से क्‍या कानाफूसी करती हैजेठाराम का लड़का किसकी लड़की से नैन मटक्‍का कर रहा हैइन सब बातों की भनक लगते ही ‘ये चार’ इन रहस्‍यों को किसी सैटेलाइट की तरह अफवाह की कक्षा में प्रेक्षपित कर देते हैं। बाकी का काम ‘मोहल्‍ले का सौरमंडल’ कर देता है।
इनकी पहली शर्त होती है देख, तुझे बता रहा हूं, किसी से कहना मत।’ यदि आप कह भी दें कि ‘मैं तो बताऊंगा’, तब भी इनके पेट में कुछ टिकेगा नहीं, ये आपको सब बताकर ही चैन लेंगे। वस्‍तुतः इन चारों की पाचन शक्ति बहुत कमजोर होती है। इन्‍हें कोई बात बताकर भले ‘कसम का चूर्ण’ खिला दो, बात पचेगी नहीं। मरोड़ उठेगी और ये तुंरत किसी के कान में उल्‍टी कर देंगे।
लोग सलाह देते हैं कि समाज में इज्‍जत और शांति से रहना है तो इन चार लोगों से बचों, लेकिन सलाह देने वाला भी तो इन चार में से एक होता है। अब उससे कैसे बचें?

9 Jul 2018

झमाझम बारिश का दृश्य


मानसून की मेहरबानी से झमाझम बारिश हो रही है। सड़क जल से लबालब है। उसमें बच्चे कागज की कश्ती तैरा-तैराकर धमाचौकड़ी मचा रहे हैं। मैं खिड़की में से इस नैसर्गिक सौंदर्य को निहार रहा हूँ। रामू काका साइकिल पर चले आ रहे है। वे एकदम से रपटकर इस तरह गिरते हैंजैसे गठबंधन से बनी सरकार एकाएक टूटकर गिर जाती है। यह देखकर बच्चे खिलखिलाने लगते हैं। काका को उठाने के लिए बच्चे हाथ बढ़ाते हैं उससे पहले वह खुद ही लड़खड़ाते हुए चल देता है। इनके पीछे चली आ रही आंटी के हाथ से छाता ऐसे उछल कर गिराजैसे कि उसका भी मन झमाझम बारिश में भीगने को मचल रहा हो। यह तो शुक्र है कि एक बच्चे ने झट से पकड़कर छाता आंटी को सौंप दिया। अन्यथा छाता झमाझम बारिश का पूरा आनंद लेता। इसी तरह सब्जी वाले की रेहड़ी से आलूटमाटर,टिंडे झमाझम बारिश में भीगने के लिए अपने ऊपर रखी खाली बोरी से बाहर निकल रहे थे।
इस दरमियान एक बच्चे की कश्ती डूबने लगती है। वह अपनी डूबती कश्ती को उसी तरह बचाने का पुरजोर प्रयास करता है। जिस तरह लोकतंत्रवादी लोकतंत्र को बचाने के लिए प्रयास करते हैं। उसका प्रयास उसी भाँति विफल हो जाता है,जिस भाँति एक लोकतंत्रवादी का हो जाता है। बच्चा थोड़ी देर तो रोता है। उसके बाद बच्चों के संग नई कागज की कश्ती बनाकर धमाचौकड़ी मचाने में मशगूल हो जाता है।
यहां से मेरी नज़र एकाएक दीनू काका पर जा टिकती हैंजो छत से टपकते पानी से उसी तरह परेशान है। जिस तरह लोग दिन-ब-दिन बढ़ती महंगाई से परेशान हैं। उसके सारे बिस्तर भीग गई गए हैं। और खुद भी भीग गया है। जिस तरह महंगाई का कोई हल नहीं निकल पा रहा है। उसी तरह दीनू काका को इस झमाझम बारिश में छाता नहीं मिल पा रहा है। सीबीआई की तरह घर के सभी सदस्य छाते को खोजने में लगे हुए हैं। छाता है कि किसी कुख्यात अपराधी की तरह न जाने कहां छुपा हुआ है। घर के बीहड़ इलाके तक में ढूंढ लिया पर हाथ नहीं लग रहा। छाता मिल जाए तो छत का जायजा कर आए। जायजा हो जाए तो कुछ ना कुछ जुगाड़ ही कराए।
यहीं से मेरी नजरें उनके पड़ोसी की रसोई पर जा टिकती हैं। भाई साहब जी झमाझम बारिश में इस तरह से कढ़ाई में से गरमा-गरम पकौड़ी निकाल कर भाभी जी को खिला रहे थे। जिन्हें देखकर कर मेरे भी मुंह में पानी आ गया और पकौड़ी खाने के लिए जी ललचाने लगा। लेकिन ललचाता जी उस लड़की को देखकर झूमने लगाजो अपनी बालकनी में से हाथ निकालकर झमाझम बारिश के संग झूम रही थी। बौछारे उसके तन-मन को छूकर इतनी प्रफुल्लित हो रही थी कि धरा पर ही नहीं गिर रही थी। 
खिड़की से दृश्य बदलता है देख रहा हूँ कि मास्टर आनंदीलाल जी कुर्सी पर बरामदे में बैठे हुए हैं और अखबार में देश-दुनिया की सैर पर हैं। देश-दुनिया की सैर सपाटे के बीच-बीच में झमाझम बारिश को इस कधर निहार रहे हैंजैसे की चालान काटते हुए ट्रैफिक हवलदार निहारता है। मास्टरजी के सामने रहने वाली शारदा काकी के घर में भरा बारिश का पानी उसी तरह नहीं निकल रहा है। जिस तरह देश से भ्रष्टाचार नहीं निकल रहा है। वह उसी तरह बारिश के पानी को घर से बाहर निकालने में जुटी हुई है। जिस तरह से एसीबी वाले भ्रष्टाचार को निकालने में लगे रहते हैं। पर वह जितना पानी निकाल रही है उससे ज्यादा घुस रहा है।
मैं खिड़की से देख रहा हूं कि झमाझम बारिश थम चुकी है। लेकिन बच्चें अब भी धमाचौकड़ी में मशगूल हैं। दीनू काका छत पर आ पहुंचा है। मास्टर जी अखबारी देश-दुनिया की सैर कर पलंग पर खर्राटे भर रहे हैं। पकौड़ी वाले भाई साहब जी कढ़ाई मांज रहे हैं और भाभी जी छत पर जाकर सेल्फी दर सेल्फी ले रही है। फेसबुक पर चिपकाने के लिए। बालकनी वाली लड़की बालकनी से गायब है।शारदा काकी सरपंच को कोस रही है। उसने प्रधानमंत्री आवास का आश्वासन दिया था लेकिन बनवाया नहीं। और मैं गरमा-गरम चाय के मजा ले रहा हूँ।