देखा भाई! कमाल
हो गया। कल का छोरा सब पर भारी हो गया। रामदुलारी भी पढ़-लिखकर कुछ ना कर पाई। जो
उस छोरे ने कर दिखाया है। उसे देखकर मेरी तो आँखे ही फटी की फटी रह गई। इत्ती सी
उम्र में इत्ता नॉलेज। वह भी बिना गए कॉलेज। और एक तुम हो जिससे कॉलेज पास आउट
होने के बाद भी नॉलेज नहीं आई।
‘जरा हमें भी तो बताए रामदुलारी के बापू। किसने? राई के नौ पहाड़ कर दिया। जिसका इत्ता बखान कर रहे हो।’ मैंने पूछा। क्या है कि गाँव के छोटे-बड़े ग्यारसी लाल काका को
रामदुलारी का बापू कहकर बुलाते हैं। सबके सामने छोटे-बड़ों से अलहदा आदरसूचक को
काका निरादर ना समझ ले,इसीलिए मैंने रामदुलारी का बापू कहकर
ही सम्बोधित किया। अकेले में तो काका कहकर
ही सत्कार करता हूँ।
‘अरे! क्या बताए बेटा और क्या
ना बताएं? अरे! वह
लल्लू का छोरा नहीं है क्या? उसकी उम्र में हमें तो ढंग
से चड्डी भी नहीं पहनी आती थी। अर्धनग्न घूमते थे और दिनभर खेलने में मगन रहते
थे। और उसे देखों! दुनिया भर के गेम
बैठे-बैठे ही ऐसे खेल लेता है जैसे साँप सीढ़ी खेल रहा हो। वह जो गेम खेलता हैं।
अगर वे ओलंपिक में होते तो अब से पहले सारे मेडल उसकी झोली में होते तथा गोल्ड
मेडल तो उसी के नाम होता।’
यह सुनकर
मैं बोला,‘काका! क्यूँ
मासूम बच्चे को झाड़ पर चढ़ा रहे हो? वह और गेम। उसे तो ढंग से
गेमों का नेम भी नहीं पता। क्रिकेट,फूटबॉल,बॉलीवाल,बैंडमैंटिन,खेल है या
मनोरंजन के साधन। ये भी नहीं जानता। वह तो घर की देहरी ही नहीं लांघता। लक्ष्मण
रेखा के अंदर ही बंदर की तरह उछलता रहता है।’
‘उसे बंदर समझकर परिहास का पात्र मत समझए। रावण ने भी हनुमानजी को बंदर
समझा था। लेकिन जब हनुमानजी ने लंका में डंका बजाया तो सबके तोते उड़ गए थे। ये
बंदर भी ना अंदर ही अंदर मोबाइल में किसी ना किसी गेम का गेम बजा रहा होता है।’
काका के
मुँह से यह सुनकर मेरी हँसी नहीं रुकी। मुश्किल से नियंत्रण करते हुए बोला,‘काका तुम भी ना कमाल करते हो।’
काका बोला,‘मैंने क्या कमाल कर दिया? मैंने तो आँखों देखी लाइव का
टेलिकास्ट किया है।’
‘मुझे लगता है,काका! तुम्हारे पास आज का संगी-साथी स्मार्टफोन नहीं है। होता तो तुम्हें
ज्ञात होता।’
‘अरे! मोबाइल तो मेरे पास
एंड्रॉइड है,पर मुझसे तो ससुरे का लॉक भी दूसरे प्रयास में
खुलता है।’
‘तभी तो आपको इल्म नहीं है। लल्लू का छोरा तो फिर भी अनाड़ी है। लक्ष्मी
की छोरी और मांगेलाल का छोरा तो मंजे हुए खिलाड़ी
हैं। आपको क्या पता?अपने मोहल्ले के अक्कू-नक्कू,चिंटू-पिंटू,रिया-दिव्या,बंटी-बबली तो इनके भी बाप हैं। ये तो मोबाइल में गेम नहीं बल्कि अपलोड से
लेकर डाउनलोड तक करने में उस्ताद हैं।’
‘बाप रे बाप! तुने तो मेरे आँखे खोल दी।
मैं तो अनभिज्ञता में उसकी प्रशंसा का झंडा लहरा रहा था। मैं समझा लल्लू के छोरे
में ही टैलेंटे है। मुझे क्या पता?आज के बच्चे स्मार्टफोन की तरह स्मार्टनैस हैं। मल्टी टैलेंटेड हैं।’
‘काका! आजकल के बच्चें कच्चे
नहीं हैं। पक्के पकाए आम हैं। मोबाइल चलाने में तो परचम लहराए हुए हैं। जो बच्चे
उठते-बैठते,सोते-जागते,खाते-पीते
मोबाइल के उँगली करते रहते हैं,वे तो मोबाइल के हर एक एप्प
को अच्छी तरह से चेकअप ना करले उससे पहले सुपुर्द नहीं करते। डिसचार्ज अवस्था
में भी उससे छेड़छाड़ करे बिना नहीं रहते हैं। क्योंकि वे जानते है कि अभी तो
सांस चल रही है। और जब तक मोबाइल में सांस है तब तक आस है।’
‘अच्छा तो इसीलिए लल्लू छोरे को मोबाइल चलता देखकर प्रमुदित होता है।’
‘काका! बच्चे को सारे दिन मोबाइल
में उँगली करता देखकर माँ-बाप का खिलखिलाना। बच्चे के बचपन पर कुठाराघात करना है।
सुरम्य सृष्टि को निहारने वाली दृष्टि को समय से पूर्व चश्में में गिरफ्त करना
हैं। मोबाइल से होने वाली नोमोफोबिया जैसी बीमारियों को न्योता देना हैं।’
यह सुनकर
काका हँसने लगा। ‘भला मोबाइल से भी बीमारी होती है क्या? मोबाइल में तो दुनिया समाई हुई हैं। जिसे लोग तो दिनभर गर्दन झुकाकर टकटकी
लगाए देखते रहते हैं। परसों ही गुलाब की लुगाई की लोकेशन मोबाइल ने ही बताई थी।
जिसके साथ गुल खिलाने के लिए भागी थी उसको साथ में पकड़वाया था। जो सबकी खोज-खबर
रखता है। भला उससे बीमारी कैसे होगी?’
मैंने
बोला,'अब तुम्हें कैसे समझाऊं? मोबाइल की बीमारी तो रामदुलारी ही बता देगी।’
ये सुनकर
काका फिर से हँसने लगे। ‘रामदुलारी ओर उसे मोबाइल
की जानकारी। उसे जानकारी होती तो वह मुझे जरूर बताती। पहले प्रयास में लॉक खोलने
का हुनर सीखाती। वह पारंगत होती तो मैं लल्लू को देखकर किंकर्तव्यविमूढ़ क्यों
होता? लल्लू की मानिंद प्रमुदित होता।’
‘अरे,काका! तुम ना मजे ले रहे हो। रामदुलारी ओर उसे ना हो मोबाइल की जानकारी। ये तो
सरासर झूठ है। उसने तो फेसबुक पर मचा रखी धूम है। फेसबुक की दीवानी को यूं ना कहों
अज्ञानी। बुरा मान जाएंगी रामदुलारी। लाड़ली है तुम्हारी। सच में कमाल तो
रामदुलारी ने किया है। रोज मिलनी वाली वन जीबी का हर रोज पूरा इस्तेमाल किया है।
जिस दिन वन जीबी से भी पार नहीं पड़ी तो हॉटस्पॉट से उधार लिया है। अब तो आपका
सीना गर्व से फूल गया होगा। और एक पते की बात और बताओं काका! दरअसल
में रोज मिलनी वाली वन जीबी ने तो अज्ञानी को भी ज्ञानी बना दिया है।’
इस बार
काका गंभीर होते हुए बोले,‘तुम्हारे मुताबिक रामदुलारी
को जानकारी होते हुए भी मुझे कुछ ना बताई। यहाँ तक की लॉक खोलना भी नहीं सिखाई। आज
उसकी खैर नहीं। लेकिन मोबाइल से होने वाली यह
नोमोफोबिया कौनसी बीमारी है? इसके बारे में आज से पहले कभी
नहीं सुना। क्या टीबी,कैंसर से भी
खतरनाक है। यह नोमोफोबिया है क्या भला? ’
काका को
समझाना तो टेढ़ी खीर है। फिर भी प्रयास किया। मैंने उनसे पूछा ‘ काका! तुम
मोबाइल के बगैर कितनी देर रह सकते हो।’
काका बोला,‘ मोबाइल के बिना तो एक पल भी जीना मुहाल लगता है। मैं तो रात को भी बगल में
रखकर सोता हूँ। बाथरूम भी जाता हूँ तो साथ ले जाता हूँ। आज के युग में मोबाइल ही
तो सुख-दुख का संगी-साथी है। जैसा कि कुछ देर पहले तुमने ही बताया था।’
इतना
सुनते ही मेरे मुँह से तत्काल से निकल गया।‘ जो तुमने बताया वे
नोमोफोबिया के ही लक्षण है।’ यह सुनकर काका चलते बने।