पंखा गर्म हवा देने लगा है। जिसके नीचे लेटना तो दूर बैठ तक
नहीं सकते। तुम हो कि सुनते ही नहीं। सुनकर अनसुनी कर जाते हो। क्या तुम्हें गर्म
हवा नहीं लगती? बताइए? बहरे हो क्या? या फिर जान-बूझकर बन गए हो। जो
कि बता भी नहीं रहे हो। गूंगा-बहरा बनने से पार नहीं पड़ेगी। मैं कोई आभूषण तो
लाने के लिए कह नहीं रही हूं। न हाथी घोड़ा। न हवाई जहाज के लिए कह रही हूं। बस एक कूलर के लिए कह रही हूं। जो कि कोई लाख दो लाख का तो आएगा नहीं। यही
कोई पांच-सात हजार रुपए का आएगा।’
जब मेरी जीवनसंगिनी मुझसे यह कहा तो मैंने उसे
समझाते हुए कहा,‘पंखा गर्मी की वजह से गर्म हवा
फेंक रहा है। वरना यह पंखा इत्ती ठंडी हवा देता है कि इसके आगे तो एसी भी फेल है।
कूलर की तो बिसात ही क्या है?’
यह सुनकर पत्नी बोली,‘उपलब्धि मत गिनाओं। तुम तो यह बताओं। कूलर लाना है या नहीं।’
‘कूलर लाकर करेंगे क्या? एक बार बरसात हो जाने दे। फिर देखना,यह पंखा ही कूलर
बन जाएगा। इसे ही मीडियम पर चलाना पड़ेगा। चद्दर और
ओढ़नी पड़ेगी।’
यह मैंने पत्नी से कहा तो वह भृकुटी चढ़ाते हुई बोली, ‘इस खटारे पंखे की ज्यादा महिमामंडित मत करिए,वरना
नीचे उतारकर कबाड़ी को बेच दूंगी।’
‘तुझे पता भी है। यह पंखा कितना पुराना है। अब तक सिर्फ दो बार ही खराब
हुआ है।’
यह मैंने कहा तो वह गुस्से से लाल पीली हो गई
और बोली,‘मुझे सब पता है। बताने की
जरूरत नहीं है। जिसकी जरूरत है न उसके संदर्भ में तो बता नहीं रहे हैं। पंखे का
गुणगान किए जा रहे हो। तुम तो सारी दोपहरी नीमड़ी तले
बैठकर ताश पत्ती पीटते रहते हो। तुम्हें क्या पता? गर्म
हवा तो मैं खाती हूं न।’
मैंने कहा,‘तू सीढ़ी लगा। मैं अभी दो बाल्टी पानी की छत पर डाल आता हूं। छत ठंडी होते
ही देखना,पंखा ठंडी हवा नहीं देने लगे तो कहना।’
वह बोली, ‘तुम मूर्ख हो या फिर मुझे मूर्ख समझते हो। दो बाल्टी तो दो मिनट में उड़
जाएंगी। दिख नहीं रहा धूप कित्ती तेज पड़ रही है। सूर्य
की ओर देखा तक नहीं जा रहा है। एक दिन पानी डालने से क्या होगा? रोज-रोज तो डालने से रहे। छत पर डालने के बजाए कूलर लाकर उसी में डालिए न।’
मैंने कहा, ‘कूलर तो ले आएंगे। पर उसे रखेंगे कहां? इस छोटे
से कमरे में रखने की जगह तो है ही नहीं। सारी जगह तो बेड,अलमारी
और संदूक ने रोक रखी है।’
पत्नी बोली,‘लेकर तो आए नहीं और रखने की पहले ही सोचने लग गए। जंगले के बाहर रख लेंगे।’
‘तुम्हें पता भी है। जंगले के
बाहर रखेंगे तो हवा अंदर पार ही नहीं होगी। जंगले की जाली बहुत ही बारिक है।’
मेरी बात को बीच में ही काटती हुई पत्नी बोली, ‘जंगले की जाली काट लेंगे। तुम कूलर
तो लेकर आओं।’
मैंने कहा,‘थोड़ी देर के लिए मान लीजिए कूलर आ ही गया। उसे जंगले के बाहर रख भी दिया।
पर मुझे यह बताइए बाहर धूप से कूलर गर्म नहीं होगा क्या? गर्म होने के बाद फिर वह भी गर्म हवा ही फेंकेगा। फिर तुम एसी के लिए
कहोगी। एसी लाने की मेरी औकात नहीं है।’
जिसकी औकात है न वो तो ला नहीं रहे हो और बेमतलब की बातें बनाते जा रहे
हो। सीधे-सीधे यूं ही क्यों नहीं कर देते कि कूलर लाने की औकात नहीं है। तुमसे
अच्छा तो हमारा पड़ोसी ही सही है,जो कि अपनी बीवी के एक बार
कहने पर ही कूलर लाकर लगा दिया। जबकि वह तो हमारे से भी गरीब है।’ यह कहकर पत्नी रसोई में चली गई और मैं सोच रहा हूं कि कूलर लाऊं या फिर
नहीं लाऊं। अब आप ही बताइए।
मोहनलाल मौर्य
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