कई
दिनों से विकास गायब है। जगह-जगह ढूँढ लिया। अभी तक कोई खोज-खबर नहीं। मन में
विचार कौंधा कहीं विकास का किसी ने अपहरण तो नहीं
कर लिया। यही सोचकर मैं थाने जा पहुँचा। जाते ही थानेदार साहब से पूछा,‘साहब! आपके यहाँ पर विकास नाम से गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज है क्या?’
यह
सुनकर थानेदार साहब बोले,'पहले तो आप कुर्सी पर बैठिए।’
रोजनामचा
को देखकर बोले-‘यहाँ तो इस नाम से गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज
नहीं हुई है।’
मैंने
एक बार ओर निवेदन किया-‘साहब अच्छी तरह से देखकर बताए। शायद रिपोर्ट दर्ज हुई होगी। विकास का इस
तरह से लापता होना। आमजन के लिए चिंताजनक है। इसके लापता होने से आमजन का हाल
बेहाल है।’
यह
सुनकर थानेदार साहब चकित रह गए और बोले,'भाई क्या बोल रहे हैं आप? आप किस विकास की बात कर रहे हो। आखिर यह विकास क्या भला है? मैं समझा नहीं।’
मैंने
कहा-‘साहब! विकास के बिना विकास अधूरा है।’
सुनकर
थानेदार साहब चौंके और बोले,‘अच्छा-अच्छा तो आप उस विकास की बात कर रहे
हो। अरे,भाई! उस विकास के बारे में तो भला क्या बता सकता हूँ?बलात्कार,चोरी,डकैती,लूट-पाट,मारपीट की कोई बात हो तो बताओं हम ढूँढ कर
बताते देंगे।’
‘साहब ! रिपोर्ट दर्ज नहीं हुई है,तो अब कर लीजिए।’ मैंने एक बार फिर से निवेदन
किया।
थानेदार
साहब बोले-‘जिसका कोई अता-पता नहीं। उसकी रिपोर्ट कैसे दर्ज करे? तुम्हीं बताओं!’
मैं
क्या बताता ? चुपचाप चला आया।
थाने
से बाहर निकला तो मन में विचार कौंधा। अगर अपहरण हुआ होगा तो किसी डाकू ने बीहड़
इलाके में छुपा रखा होगा। यही सोचकर थाने से सीधा चम्बल के
बीहड़ में गया। डाकूओं के भय से भयभीत था। भय था कही कोई डाकू आकर कनपटी पर बंदूक
नहीं तान दे। कुछ कह पाऊं उससे पहले टपका नहीं दे। बीहड़ इलाको में जाना हथेली पर
जान रखकर जाना होता है। पर मुझे विकास को ढूँढ़ना था। बड़ी मुश्किल से डरता-डरता
गया। एक-एक डाकू से पूछा विकास तुम्हारे पास है क्या? पर सबने इनकार कर दिया।
एक
डाकू ने अवश्य पूछा-‘ जरा विकास का हुलिया तो बताओं। उसकी कद-काठी,रंग-रूप,उम्र,क्या है? दिखता कैसा
है?’
दरअसल
मैंने भी कभी विकास को देखा नहीं। मैं क्या बताता? उसे देखा होता तो थानेदार
साहब को ही बताकर रिपोर्ट दर्ज करवा देता।
मैं
बोला-‘विकास को देखा तो मैंने भी नहीं।’
इस
पर पहले तो वह शोले के गब्बर की तरह हंसा। फिर बोला-‘जब तुमने विकास को देखा नहीं तो ढूँढ़ने क्यूँ चले आए? विकास से तुम्हारा रिश्ता क्या है?’
मैंने
कहा-‘खून का रिश्ता तो नहीं है और न दिल का रिश्ता है। मानवीयता का रिश्ता है।’
‘तुम भी अजीब आदमी हो। नहीं खून का रिश्ता है और नहीं दिल का। मानवीयता के नाते यहाँ तक चले आए। मान गए भाई! तुम्हें डर
नहीं लगा। लेकिन यह विकास है कौन?'
कहीं
आप मजाक तो नहीं कर रहे हैं। विकास को सब जानते है। आप नहीं जानते हैं। डरते
हुए बोला।
डाकू
बोला,' नहीं जानता हूँ। तभी तो पूछ रहा हूँ।
मैं
जिस विकास ढूँढ रहा हूँ। वह वही है, जिसके बारे में नेतागण
चुनावी दौर में लंबी चौड़ी बातें करते हैं।
इतना
सुनकर डाकू जोर-जोर से हंसने लगा। बोला,‘वह विकास बीहड़ों में
नहीं। इस वक्त जहाँ चुनाव है। वहाँ ही मिलेगा।’
मैं
वहाँ पहुँचा जहाँ चुनाव होने थे। वहाँ किसी नेताजी की रैली निकल रही थी तो किसी का
भाषण चल रहा था। जिधर देखों उधर ही माहौल चुनावी रंग में रंगा हुआ था। चुनावी
रंग-बिरंगे माहौल में विकास को ढूँढ़ना घास में सुई ढूँढ़ना था।
कई
नेताओं से भी पूछताछ की पर किसी ने भी संतुष्टजनक जवाब नहीं दिया। बड़ी मुश्किल से एक माननीय ने मुँह खोला ‘विकास उन सड़कों पर मिलेगा।
जिनका मैंने निर्माण करवाया है और उद्घाटन किया है। वहाँ नहीं मिले तो उस गाँव में
मिलेगा। जिसको मैंने गोद लिया है। अगर वहाँ भी नहीं मिले तो विकास सामुदायक भवन
में मिलेगा। मैंने गत दिनों ही उद्घाटन किया है।’
माननीय
ने जहाँ-जहाँ बताया,वहीं जाकर देखा पर कहीं भी नहीं मिला।
एकाएक
एक चुनावी घोषणा पत्र पर मेरी नजर पड़ी। मैंने देखा कि घोषणा पत्र में लोक
लुभावानी योजनाओं के साथ विकास भी छुपा बैठा था। दुबला-पतला,तिखे नैन
नक्ष,हिरण सी आँखे,घने काले बाल,पर उसके चेहरे पर चमक थी।
मैंने
पहली बार विकास को देखा था। मैं भागकर उसके पास गया और उससे पूछा-‘क्या तुम्हीं
विकास हो।’
उसने
पहले तो मेरे को निहारा फिर बोला-‘हाँ मैं
ही विकास हूँ।’
मैंने
कहा-‘तुम्हें कहा-कहा नहीं ढूँढ़ा और तुम हो कि यहाँ दूबे पड़े हो।’
वह
बोला-‘मैं यही ठीक हूँ।
तुम
जाओं। ओर किसी को बताना मत। मैं यहाँ पर हूँ।’
मैंने
उसको समझाते हुए बोला-‘तुम्हारी जगह यहाँ नहीं है। वहाँ है,जहाँ तुम्हें होना चाहिए।’
यह
सुनकर वह बोला-‘वहाँ जाकर क्या करूंगा? जहाँ हर कोई ताना मारता
है। यहाँ विविध योजनाओं और वायदों के साथ खुश तो हूँ।’
मैंने
विकास को बहुत समझाने की कोशिश की पर वह नहीं माना। मैं उसको घोषणा पत्र में देखकर
इसलिए चला आया। चलों आखिरकार विकास मिल तो गया। अन्यथा पाँच साल तक ढूँढ़ना पड़ता।
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