देखते ही देखते तू-तू मैं-मैं से हुई
तकरार हाथापाई पर उतर आई। बीच-बचाव में गए सज्जन गाली-गलौज की गोलियों से घायल
होकर वापस लौट आए। पर बुराई बाई और अच्छाई ताई की ओर से गालियों की गोलाबारी शांत
नहीं हुई। बल्कि हावी होती गई और लड़ती-झगड़ती बीच सड़क पर आ गई। तमाशबीन भीड़ छुड़ाने के बजाय खड़ी-खड़ी
तमाशा देखने में मशगूल थी। मैं बीच-बचाव में इसलिए नहीं कूदा कि औरतों की लड़ाई हैं। कहीं भारी नहीं पड़ जाए।
कोर्ट-कचहरी के चक्कर नहीं काटने पड़ जाए। पर वहाँ पर औरतें भी काफी थी। जिनमें से
छुड़ाने के लिए एक भी आगे नहीं आ रही थी।
कई भाई लोग तो अपने मोबाइल से इस तरह
वीडियो बना रहे थे। जैसे कि किसी फिल्म की शूटिंग कर रहे हो। मैंने एक भाई साहब से
पूछा भी आप वीडियो क्यों बना रहे हैं? भाई साहब ने पहले तो मेरी ओर घूर कर देखा और फिर बोला,'आपको क्या आपत्ति है?' 'मुझे कोई आपत्ति नहीं है पर
किसी का इस तरह वीडियो बनाना अच्छी बात नहीं है।' यह
सुनकर वह बोला, 'मैं ही अकेला थोड़ी बना रहा हूँ और भी तो
बना रहे हैं। इसलिए मैं भी बना रहा हूँ।' मैंने उससे
पूछा,'बनाकर क्या करोगे?'वह तपाक से बोला,'सोशल मीडिया पर वायरल करूंगा। तुम इतने
सवाल-जवाब क्यों कर रहे हो? यह दोनों क्या तुम्हारी सगी संबंधी हैं। 'मैंने कहा, 'नहीं हैं।' तो फिर साइड हटो। और मैं साइड में
हो गया।
तमाशबीन भीड़ में से मुट्ठी भर लोग यह
जरूर पूछ रहे थे कि दोनों के बीच
हुज्जत हुई कैसे? भीड़ में से पता चला कि अच्छाई ताई ने
बुराई बाई को यह कह दिया था कि आज रावण दहन के पुतले के
साथ बुराई भी जलकर खाक हो जाएगी। बस यह सुनकर ही बुराई बाई आग बबूला हो गई और
गालियों की झड़ी लगा दी। काफी देर तक तो अच्छाई ताई सुनती रही। जब नहीं-नहीं मानी तो चोटी पकड़कर दो-चार थप्पड़
रसीद कर दी। फिर क्या था? दोनों में गुत्थमगुत्थी हो
गई और लड़ती-झगड़ती घर से सड़क तक आ गई।
बुराई बाई अच्छाई ताई को जो मुँह में आया वही बकी जा रही थी। तू अच्छाई ही होकर भी क्या कर पाई? मुझे देख मैं चुटकियों में असंभव को भी संभव कर देती हूँ। तू क्या समझती है रावण के पुतले के साथ जलकर खाक हो जाती हूँ। यह तेरा भ्रम है और मेरी कलाकारी है, जो कि मैं तुम जैसे लोगों की आँखों में धूल झोंककर साइड से निकल जाती हूँ। मैं वह बुराई हूँ जो कभी खत्म नहीं होने वाली। एक बार तू मुझे छोड़, फिर बताती हूँ, मैं क्या बला हूँ। अच्छाई ताई उसका हाथ मरोड़ती हुई बोली,'तू चाहे जो भी बला हो। मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकती। आज मैं तुझे तेरी औकात बताकर ही रहूंगी। यह तो शुक्र है कि वक्त पर एक ओर से अच्छाई ताई की बहन 'भलाई' आ गई और दूसरी ओर से बुराई बाई का भाई 'बुरा' आ गया था। जिन्होंने आते ही दोनों को अलग-अलग कर दिया। अन्यथा तमाशबीन भीड़ के भरोसे तो न जाने क्या अनर्थ हो जाता। बुरा भाई बुराई बाई को धमकाते हुए बोला,' तेरे अंदर थोड़ी बहुत भी लाज शर्म है या नहीं। इतनी बड़ी बूढ़ी के साथ हाथापाई पर उतर गई। तुझे पता भी है आखिरकार जीत अच्छाई की होती है और अच्छाई ताई अच्छाई के सब गुण विद्यमान है। चल घर पर तेरी खबर लेता हूँ।