7 Feb 2021

अफसर का सर प्रेम

वह अफसर है। उसे सर बहुत प्रिय है। सर उसके अफसर और सरनेम में भी समाहित है। उसका सरनेम सरासर है और सरासर में तो एक बार नहीं,दो बार सर है। जिसके आगे-पीछे सर ही सर  हो। वह तो सरकार से भी सर कहलवा सकता है। क्योंकि,सरकार भी सर है तो ही है। सरकार में ‘सर’ नहीं हो,तो अकेली ‘कार’ से सरकार कभी नहीं बने। ‘कार’ तो हर किसी के पास होती है। लोगों के पास लग्जरी कार तक होती हैं। फिर भी उनको सरकार का सौभाग्य प्राप्त नहीं होता है। ऐसा भी नहीं है कि वो प्रयास नहीं करते हैं। प्रयास तो खूब करते हैं,पर सफल नहीं पाते हैं। सफल वही हो पाते हैं,जिनके पास ‘सर’ और ‘कार’ दोनों होते हैं। जिसके पास सरकार होती है या सरकार में होता है। उसका रुतबा असरदार होता है। असरदार इसलिए असरदार होता है क्योंकि उसमें सर है। सर नहीं हो तो अदार ही रह जाए। अदार कोई अर्थ ही नहीं निकलता है। जिसका कोई अर्थ ही नहीं,वह व्यर्थ है।

उसे सर कहकर उसके सिर पर बैठ जाओ। उसके कक्ष में,उसके सम्मुख रखी कुर्सियों पर पसरकर बैठ जाओ,मना नहीं करेगा। मुस्कुराते हुए बातचीत करेगा। उस समय आपको आभासी नहीं होगा कि मैं अफसर के सामने बैठा हूँ। ऐसा महसूस होगा कि मैं तो अपने किसी परिचित के पास आया हुआ हूँ और उससे सुख-दुख की बतला रहा हूँ। उस वक्त यह मत समझ बैठिए कि अफसर तो बहुत ही अच्छा है। अच्छा-वच्छा कुछ नहीं है। यह तो अफसर को सर कहने का कमाल है। 

सच पूछिए तो वह अफसर ही सर सुनने के लिए बना है। सर सुने बगैर तो वह एक पल भी नहीं रह सकता है। उसकी सुप्रभात और शुभरात्रि ही सर सुनने के बाद होती है। वह सर सुनकर मन ही मन में इतना प्रसन्न होता है कि जैसे कि कोई लॉटरी निकलने पर होता है।

उस अफसर की ऑफिस में उसके सिवाय अन्य किसी भी कर्मचारी को कोई सर कह देता है न तो उसके सिर दर्द हो जाता है। उसका कहना है कि ऑफिस में जो सर्वोच्च पद पर आसीन होता हैं,वही सर होता है। बाकी के अधीनस्थ तो अपने-अपने पदों के नाम से ही संबोधित किए जाते हैं। यह जिसका कहना है,वही ऑफिस में सर्वोच्च पद पर आसीन है। यानी कि वही सर है। अगर किसी ने किसी बाबू को सर कह दिया और अफसर ने सुन लिया तो उस व्यक्ति का काम आसानी से हो जाए,संभवतःसंभव नहीं। कई चक्कर काटने पड़ेंगे। अनुनय-विनय करना पड़ेगा।

हाँ,जिसने बाबू को बाबूजी कह दिया और अफसर ने सुन लिया तो उसका काम तत्काल प्रभाव से हो जाता है। उसकी फाइल में किसी दस्तावेज की कमी होने के बावजूद भी फाइल अटकती-भटकती नहीं,बल्कि सीधी अफसर की टेबल पर पहुँच जाती। जिसने अफसर के हर प्रश्न का जवाब यस सर और नो सर में दिया न उसके दस्तावेजों पर तो बगैर देखें व पढ़े हस्ताक्षर कर देता है। 

 

वह अफसर हाजिर हो या गैरहाजिर हो। उसके परिसर में दिनभर सर गुंजायमान रहता है। इसलिए नहीं कि परिसर शब्द में सर है,बल्कि इसलिए रहता है कि परिसर में अफसर हैं। वह हर उस अवसर का पूरा लाभ उठाता है,जिसमें सर होता है। वैसे अवसर में भी सर है। वह दूध भी तभी पीता है,जब उसमें केसर होता है। क्योंकि केसर में सर है। उसे घुसर-पुसर करने वाले लोग बहुत पसंद है। पसंद इसलिए हैं कि घुसर-पुसर में एक बार नहीं,बल्कि दो बार सर है। इसी तरह उसे प्रोफ़ेसर,अनाउंसर व फ्रीलांसर लोग भी बहुत पसंद है। यह लोग भी इसीलिए पसंद है कि उनमें सर समाहित है। वह डांस डांसर का ही देखता है। देखने की वजह सर ही है। स्त्रियों की नाक में नकबेसर व गले में नवसर कैसे भी हो। नए हो या पुराने हो। महँगे हो या सस्ते हो। उन दोनों आभूषणों की तारीफ किए बगैर नहीं रहता है। अगर उन दोनों आभूषणों के नाम में सर नहीं हो न,तो वह कभी तारीफ नहीं करें। 

उस अफसर को चैसर का खेल और टसर के कपड़े इसलिए पसंद है कि उनके नाम में सर है। उसके बगीचे में सबसे ज्यादा नागकेसर के वृक्ष है। वो भी इसीलिए है कि उनके नाम में भी सर है। उसे सर से इतना प्यार-प्रेम है कि वह उस बीमारी से ग्रस्त हैं,जिसके नाम में सर है। वह कैंसर से पीड़ित है।

 


 

1 comment:

राकेश 'सोहम' said...

बहुत असरदार है सरकार।