पत्नी ने यूएन अध्ययन की ‘पति को पीटने में भारतीय पत्नियां
तीसरे स्थान पर’
वाली
खबर क्या पढ़ी? वह तो मेरे पीछे ही पड़ गई। कहती है कि
तुम्हें बहुत दिन हो गए मुझे उंगुली पर नचाते हुए। अब मैं बताती हूं,उंगुली पर कैसे नचाते है? कैसे हुकम चलाते है? जरा पास में आओं। उसमे अचानक मां
दुर्गा का स्वरूप देखकर,उसके
समीप जाने से मुझे डर लगता है। पता नहीं क्या कर बैठे? पत्नी के हाथ में झाडू देखकर शेर की
तरह दहाडऩे वाले म्याऊॅ बन जाते हैं। बाहर दादागिरी दिखाने वाले ‘सत्यों’ को भी
पत्नी के आगे मियामियाते हुए देखा है। मेरी तो औकात ही क्या है? जो उसके पास चला जाओं।
मैं सोच रहा हूं कि मेरी पत्नी की तरह सब
भारतीय पत्नियों ने जिस दिन झाडू उठा ली। तब क्या होगा? क्या पति ‘हमें पत्नियों से बचाओं’ की तख्ती लिए जन आंदोलन करेंगे। सडक़ पर
उतरेंगे। जंतर-मंतर पर धरना देंगे। संसद का घेराव करेंगे। ‘हमें पत्नियों से बचाओं’ हम शामत में है। कहते हुए अपनी बात
रखेंगे। धरना-प्रदर्शन कर, शाम को घर जाएंगे तो पत्नियां कहेंगी। आए गए हमारे खिलाफ आंदोलन
करके। क्या हुआ?
कुछ
हुआ। कुछ नहीं होगा। जैसे प्रश्नों की बौछार से पतियों को सराबोर कर देंगी। फिर
पति निरुत्तर खड़े रहेंगे। पस्त होकर कहेंगे। तुम्हें जो करना है,करो। लेकिन झाडू मत उठाओं। बेलन मत फेंको।
जोर से मत बोलों। पड़ोसी सुन लेगा, देख लेगा। आखिर मेरी भी कुछ इज्जत है। खैर यह सब छोड़ो।
मुझे तो अपनी पत्नी से बचने की जुगत सोचना है।
इस वक्त उससे कैसे बचाव किया जाए? उसके समीप चला तो जाओं। पर,पता नहीं वह क्या फेंक मारे। घर में हर वस्तु का जित्ता उसे पता है
उतना मुझे नहीं है। क्योंकि दिन-रात घर,बाहर का कार्य तो वहीं करती है। सुबह पांच बजे उठती है और बारह बजे
सोती है। रसोई की तो हर चीज से अच्छी तरह से वाकिफ है। चिमटा,चकला,बेलन,झाडू
फेंककर मारने में तो उसका निशाना कभी चूकता ही नहीं है। यह तो मेरी किस्मत अच्छी
है कि हर बार मैं बाल-बाल बच जाता हूं। लेकिन इस बार बचने का कोई चांस दिखाई नहीं
दे रहा है। सिवाह क्षमा मांगने के। चलो क्षमा मांग कर ही देख लेता हूं। कहते है कि
क्षमा मांगना सबसे बड़ी बहादुरी होती । और जब जान बचाने की बात आए तो
माफी मांगने में हर्ज ही क्या है?
मैं डरता हुआ पत्नी से क्षमा मांगने गया। उसने
कहा-‘अब तब तो मैं यह समझती रही कि भारतीय
पत्नियां मेरी तरह ही होगी। पर,भला हो यूएन अध्ययन वालों जिन्होंने मेरे ज्ञानचक्षु खोल दिए। अब
तुम्हें मैं बताती हूं कि पत्नी पर हुकम कैसे चलाते है? एक बार पास में आओं।’ मैंने कहा-‘देवी! मैं क्षमा चाहता हूं। आज के बाद
मैं तुम्हें कुछ नहीं कहूंगा। तुम्हें,जो करना है करो।’