25 Oct 2016

पत्नी से क्षमा मांगने में भलाई है- दैनिक जनवाणी



पत्नी ने यूएन अध्ययन की पति को पीटने में भारतीय पत्नियां तीसरे स्थान परवाली खबर क्या पढ़ी? वह तो मेरे पीछे ही पड़ गई। कहती है कि तुम्हें बहुत दिन हो गए मुझे उंगुली पर नचाते हुए। अब मैं बताती हूं,उंगुली पर कैसे नचाते है? कैसे हुकम चलाते है? जरा पास में आओं। उसमे अचानक मां दुर्गा का स्वरूप देखकर,उसके समीप जाने से मुझे डर लगता है। पता नहीं क्या कर बैठे? पत्नी के हाथ में झाडू देखकर शेर की तरह दहाडऩे वाले म्याऊॅ बन जाते हैं। बाहर दादागिरी दिखाने वाले ‘सत्‍यों’ को भी पत्‍नी के आगे मियामियाते हुए देखा है। मेरी तो औकात ही क्या है? जो उसके पास चला जाओं।
मैं सोच रहा हूं कि मेरी पत्नी की तरह सब भारतीय पत्नियों ने जिस दिन झाडू उठा ली। तब क्या होगा? क्या पति हमें पत्नियों से बचाओंकी तख्ती लिए जन आंदोलन करेंगे। सडक़ पर उतरेंगे। जंतर-मंतर पर धरना देंगे। संसद का घेराव करेंगे। हमें पत्नियों से बचाओंहम शामत में है। कहते हुए अपनी बात रखेंगे। धरना-प्रदर्शन कर, शाम को घर जाएंगे तो पत्नियां कहेंगी। आए गए हमारे खिलाफ आंदोलन करके। क्या हुआ? कुछ हुआ। कुछ नहीं होगा। जैसे प्रश्नों की बौछार से पतियों को सराबोर कर देंगी। फिर पति निरुत्तर खड़े रहेंगे। पस्त होकर कहेंगे। तुम्हें जो करना है,करो। लेकिन झाडू मत उठाओं। बेलन मत फेंको। जोर से मत बोलों। पड़ोसी सुन लेगा, देख लेगा। आखिर मेरी भी कुछ इज्जत है। खैर यह सब छोड़ो।
मुझे तो अपनी पत्नी से बचने की जुगत सोचना है। इस वक्त उससे कैसे बचाव किया जाए? उसके समीप चला तो जाओं। पर,पता नहीं वह क्या फेंक मारे। घर में हर वस्तु का जित्ता उसे पता है उतना मुझे नहीं है। क्योंकि दिन-रात घर,बाहर का कार्य तो वहीं करती है। सुबह पांच बजे उठती है और बारह बजे सोती है। रसोई की तो हर चीज से अच्छी तरह से वाकिफ है। चिमटा,चकला,बेलन,झाडू फेंककर मारने में तो उसका निशाना कभी चूकता ही नहीं है। यह तो मेरी किस्मत अच्छी है कि हर बार मैं बाल-बाल बच जाता हूं। लेकिन इस बार बचने का कोई चांस दिखाई नहीं दे रहा है। सिवाह क्षमा मांगने के। चलो क्षमा मांग कर ही देख लेता हूं। कहते है कि क्षमा मांगना  सबसे बड़ी  बहादुरी होती । और जब जान बचाने की बात आए तो माफी मांगने में हर्ज ही क्‍या है?


मैं डरता हुआ पत्नी से क्षमा मांगने गया। उसने कहा-अब तब तो मैं यह समझती रही कि भारतीय पत्नियां मेरी तरह ही होगी। पर,भला हो यूएन अध्ययन वालों जिन्होंने मेरे ज्ञानचक्षु खोल दिए। अब तुम्हें मैं बताती हूं कि पत्नी पर हुकम कैसे चलाते है? एक बार पास में आओं।मैंने कहा-देवी! मैं क्षमा चाहता हूं। आज के बाद मैं तुम्हें कुछ नहीं कहूंगा। तुम्हें,जो करना है करो।

12 Oct 2016

रावण ने देखा अपना दहन - दैनिक जनवाणी


रावण ने देखा अपना दहन
रावण दहन का लाइव कास्‍ट देखने खुद रावण भी आया है। रामलीला मैदान खचाखच भरा हुआ है। कोलाहल माहौल है। सबकी निगाहें रावण पर टिकी हुई है। माइक से नेताजी के आने की उद्घोषणा हो रही है। चहुंओर उत्साह है। पुतला सज-धज कर तैयार है। इत्ते बड़े रावण को देखकर रावण भी हैरान है। वह भी मन ही मन सोच-विचार कर रहा है. मेरी कद-काठी तो इत्ती नहीं थी। जित्‍ती इसकी है. मेरे तो दंत पीले थे,इसके तो सफेद है। लगता है इसने अच्छी क्वालिटी की टूथपेस्ट यूज की है। इसकी मूंछ वानर की पूंछ से मिलती-जुलती है। इस वानर की पूंछ ने ही तो सत्यानाश किया था,लंका का। सोने की लंका को जलाकर खाक कर दिया था। इस वानर से तो राम बचाएं। राम कैसे बचाएंगाराम का तो मैं शत्रु था। राम की धर्मपत्नी का तो मैंनें अपहरण किया था। मैंनें सीता माता का अपहरण जरूर किया था।लेकिन उसके आत्म सम्मान को रत्ती भर भी ठेस नहीं पहुंचाई। और आज जो मेरा अनुसरण कर रहे हैं। वे अपहरण भी करते हैं। फिरोती भी मांगते है,फिरोती न मिले तो टपका भी देते हैं। और न जाने क्या-क्या करते हैं?कलियुग रावण तो मेरे से दो कदम आगे हैं। फिर लोग इन कलियुग रावणों का तो दहन करते नहीं.मेरा ही करते है.जो कि सरासर अन्‍याय है।

रावण यह सब सोच ही रहा था कि इत्ते में ही नेताजी आ गए। आते ही नेताजी ने पुतले की नाभि में तीर मारा और बम-पटाखों की धड़ाम-धम होने लगी। देखते ही देखते रावण जलकर खाक हो गया। लोग कह रहे थे,‘बुराई पर अच्छाई की विजय हुई। रावण मन ही मन मुस्कुराने लगा। इस दिन हर साल बुराई जलती है। फिर साल भर में इतनी बुराई कहां से आ जाती है। तुम लोगों को मेरे में बुराई दिखती है स्वयं में नहीं। मैं तो इत्ता भी बुरा नहीं था। जित्ते तुम हो। रावण ने पब्लिक की नब्ज टटोलने के लिए,मानव के हृदय में झांक कर देखा तो रावण बैठा था। उसकी न मोटी-मोटी आंखें हैं,न भुजाओं में बल हैं। ललाट पर कोध्र की लकीर नहीं। लेकिन मन में ईर्ष्या,लोभ-लालच,छल कपट भरा पड़ा है।

दशहरा मैदान से रावण सीधा नेताजी के घर गया। नेताजी के मन में झांक कर देखा तो चकित रह गया। यह क्याजिस मन ने अभी मेरी नाभि में तीर मार कर मेरा नेस्तनाबूद किया था और मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की भूमिका अदा की थी। उस मन में  घोटाले की मंशा उछल-कूद कर रही है। बस मौके की ताक में है। यहां से रावण एक सरकारी दफ्तर में घूस गया। वहां के कर्मियों के मन में झांक कर देखा तो होश उड़ गए। यह क्या?यहां तो रिश्‍वत रावण बैठा है। यहां से निकल कर रावण गली में घूसा,तो देखा। कुछ गुण्ड़े एक महिला से बदसलूकी कर रहे हैं और कह रहे है। जो भी है हमारे हवाले कर दो,वरना जान से हाथ धो बैठोगी। महिला भयभीत हो गई और उसने अपने आभूषण गुण्ड़ों के हवाले कर दिया। रावण यह सब देखकर समझ गया और अपने लोक की ओर प्रस्थान कर गया।
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6 Oct 2016

अरे भाई, मुझे भी झूठ बोलना सिखा दो - नवभारत टाइम्‍स

अरे भाई, मुझे भी झूठ बोलना सिखा दो
मोहन लाल मौर्य
मैं कई दिनों से उस झूठकी तलाश में हूं। जिसे बोलकर लोग अपना कार्य आसानी से करवा लेते है। नौकरी पा लेते है। कारोबार चला लेते है। प्रेम-प्रसंग में फंसा लेते है। ब्याह-शादी रचा लेते है। चुनाव जीत जाते है। गबन कर लेते है। रिश्वत ले लेते है। पुरस्कार पा लेते है। अखबार में छप जाते है। टीवी पर दिख जाते है। सुर्खियों में बने रहते है। खास ऐसा ही झूठ मुझे भी बोलना आता तो मैं दर-दर की ठोकर नहीं खा रहा होता। कहीं ना कहीं कुछ ना कुछ जॉब कर रहा होता। मैं जब भी झूठ बोलता हूं। पकड़ा जाता हूं। एक दफा तो पकड़ा ही नहीं गया। अच्छे से धुनाई भी हुई । वह भी बिना वॉशिंग पाउडर के। वॉशिंग पाउडर मिलाकर करते तो हो सकता है। मुझे थोड़ा बहुत वह झूठबोलना आ जाता। जिसकी मुझे तलाश है।
जिस झूठकी मुझे तलाश है। उस के लिए मैंने बहुत पापड़ बेले। उन तमाम लोगों से मिला हूं। जो झूठ बोलने में पीएचडी कर रखे है। झूठ बोलने के गुर सिखाते है। झूठ की बुनियाद पर अपना कारोबार चलाते है। बेवकूफ बनाते है। इन सभी ने एक ही बात बताई,झूठ बोलने में है बड़ी कठिनाई। लेकिन,जो झूठ बोलकर कमार खाए,तो उसमें क्या है बुराई। तुझे झूठ बोलने से मिलती है,भलाई। तो तू भी झूठ बोल भाई। झूठ बोलने के फायदा-नुकसान क्या है? यह मसलन हम से जान भाई। झूठ बोलकर हो जाती है सगाई। घर में आ जाती है लुगाई। कईयों कि हो जाती है,ठुकाई। किसी की जग हंसाई। हम ने तो झूठ बोलकर कईयों को फंसाया। तेरी तू जान भाई। ऐसा झूठ बोलने वालों ने मुझे बताया। जिसने भी झूठ बोलने का नायाब तरीका बताया। मैंने वहीं अपनाया। जिस पर भी अपनाया। अपने आप को नाकामयाब पाया। नाकामयाब क्यूं पाया। यह मेरी समझ में आज तक नहीं आया। लेकिन मैं हार नहीं मानंूगा। कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है। झूठ बोलने के लिए रोना भी पड़ता है। और भी न जाने क्या-क्या करना पड़ता है। जो भी करना पड़े। मैं करूंगा। चाहे मुझे दिन-रात जागना पड़े। मैं जागूंगा। किसी के पीछे भागना पड़े। मैं भागूंगा। लडऩे-झगडऩे की नौबत आयी तो वह भी करूंगा। झूकना पड़े तो सिर झूका कर झूकूंगा। क्योंकि जिस दिन झूठ बोलकर कामयाबी पाली। उस दिन से अपने पिता के नाम से नहीं,अपने नाम से जानूंगा। घर,परिवार,समाज में मेरी पहुंच होगी,तो यस-कीर्ति की उपलब्धि से अलंकृत हो जाऊंगा।
किसी ने मुझे यह भी बताया है कि झूठ बोलने के लिए कसम भी खानी पड़ती है। मैं कसम खाने के लिए आमादा हूं। मां-बाप। बीवी-बच्चे। भाई-बहिन। यार-दोस्त। रिस्तेदार। आदि-इत्यादि। कि कसम तो मैं ऐसे खा जाऊंगा। जैसे लोग गाजर-मूली खाते है। झूठी कसम खाने से पहाड़ थोड़ी टूट जाएंगा। लोग तो भरी अदालत में गीतापर हाथ रखकर न जाने कैसी-कैसी और किस-किस की कसम खा जाते है। उन पर न तो पहाड़ टूटता है और नहीं वे पहाड़ तले दबते है। झूठ बोलने वाले तो स्वर्गगामी  मां-बाप की कसम खा जाते है। मुझे आपकी कसम’,‘मेरी कसमखाने में भला मेरा क्या जाता है। बस,मुझे तो वह झूठबोलना आना चाहिए। जिसे बोलकर लोग बड़ी-बड़ी मछली यूं ही फंसा लेते है। मछली आसानी से फंस भी जाती है और उसे पता भी नहीं लगता है। उसे कब और कैसे? किस जाल से फंसाया गया है। ऐसा ही झूठ बोलने का हुनर मुझे सीखना है। सीखने के उपरान्त बड़ी मछली न सही। छोटी-मोटी मछली तो मैं भी अपने जाल में फंसाया करूंगा।
झूठ बोलकर कैसे फंसाते है? इसकी खुफिया जानकारी एक महाशय ने दी। उसने बताया कि झूठ बोलने में न हींग लगती है,न फिटकिरी। रंग चोखा आता है। न तेरे बाप का। न मेरे बाप का कुछ जाता है। जो भी आता है। उसी से आता है। जिसके सम्मुख हम झूठ बोल रहे हैं। झूठ बोलने से अगर कुछ भी नहीं आता है,तो कोई बात नहीं। कम से कम झूठ बोलने का अभ्यास ही हो जाता है। जो आगे काम आता है। अपने आप कोई नहीं फंसता है। उसे फंसाया जाता है। कैसे फंसाया जाता है? यह तरीका भी उसने ही बताया। जिस तरह से बकरे को हलाल करने से पूर्व उसे कुछ खिलाते-पिलाते है। उसके बाद हलाल करते है। उसी तरह से झूठ की कुव्वत से किसी को फंसाना है,तो पहले उसकी अच्छी तरह से खातिरदारी करों। फिर मौका देखकर बातों ही बातों में वह झूठबोल दो। जिससे अपना स्वार्थ सिद्ध होता है। बातों ही बातों में इसलिए,क्योंकि उसे शक नहीं हो कि बंदा झूठ बोलकर अपने को फंसा रहा है।
इसी ने बताया कि आज के युग में कौन झूठ बोल रहा है और कौन सच। यह परखना जरा मुश्किल है। झूठ सच लगता है और सच झूठ। तू तो आंख मूंद कर झूठ बोल। किसी सामने नहीं बोल सकता है,तो मोबाइल पर झूठ बोल। मोबाइल पर तो ज्ञानी से ज्ञानी भी मूर्ख बन जाता है। मसलन,दस- बीस किलोमीटर दूर बैठा व्यक्ति भी मोबाइल पर यही कहता है- दो मिनट में आ रहा हूं। पांच मिनट में पहुंच रहा हूं। नजदीक ही हूं। बस आ गया। इत्ती स्पीड तो हवाई जहाज की नहीं होती। जित्ती इन दो,पांच मिनट वालों की होती है। मैंने सलाह तो मान ली, लेकिन मुझसे  मोबाइल पर भी झूठ नहीं बोला जा रहा. सोचता हूं, झूठ हम बोलते है,बदनाम मोबाइल होता है। वह मोबाइल, जो हमारे सुख-दुख का साथी है। ऐसे साथी को भी हम झूठ बोलने में  क्‍यों शामिल करें। उसने हमारा क्‍या बिगाड़ा है!                          
            


नवभारत टाइम्‍स 06 अक्‍टुबर  2016