लोग एक-दूसरे से पूछ रहे हैं। फ्यूज कैसे हुई? किसी ने फ्यूज कर दिया या फिर अपने आप हो गई। फ्यूज हुई है या खराब। अभी तक इसका पुष्टिकरण होना शेष है। अभी तो फ्यूज ही मानकर चल रहे हैं। उस दिन भी इस तरह की बात हो रही थी। जिस दिन विद्युत पोल के संग रिश्ता जुड़ा था। तब भी सब अपना-अपना राग व अपनी-अपनी ढपली बजा रहे थे। वह भी रहित लय,सुर,ताल मिलाए। एक जनाब! कह रहा था कि लाइट की रोशनी चहंूओर फैले। इस तरह से मुंह करना। दूसरा कह रहा था कि इसकी रोशनी सिर्फ ओर सिर्फ रोड़ पर आनी चाहिए। नेताजी कह रहा था कि भैया इस तरह से लगाओं की इसकी रोशनी से सबके घर रोशन हो जाएं। इन सबकी बात सुनकर स्ट्रीट लाइट लगाने वाला कन्फ्यूज हो गया था। बड़ी मुश्किल से लगाकर गया था,बेचारा।
लो जी! अध्यक्ष जी आ गए। यह कहकर किसी ने सबका ध्यान खींचा। अध्यक्ष जी ने आते ही समिति के एक सदस्य से पूछा-‘अरे,भाई! चाय-नाश्ते की व्यवस्था की है या नहीं। अगर नहीं की है,तो पहले चाय-नाश्ता लेकर आओं।’ एक महाशय बोला- ‘स्ट्रीट लाइट फ्यूज नहीं हुई है,फ्यूज की गई है।’ किसने की है फ्यूज। यह भी तुम जानते होंगे। किसी ने उससे पूछ लिया। उसने उत्तर दिया-‘मुझे क्या पता? किसने की है फ्यूज। मुझे ऐसा प्रतीत हुआ है। इसलिए बोल दिया भाई! वरना मुझे क्या लेना-देना?’ यह सुनकर एक बंधु बोला-‘भाई साहब! लेना-देना कैसे नहीं है? क्या तुम मोहल्ले के वासी नहीं हो?’ इतना सुनकर वह निरूत्तर हो गया।
अल्पाहार के बाद फिर से बैठक प्रारम्भ हुई। इस बार अध्यक्ष जी ने अनुशासनात्मक रवैया अपनाया। हाथ-जोडक़र निवेदन किया और कहा-‘एक-एक आदमी से राय-मशवरा किया जाएंगा। सबके सुझाव रजिस्टर में अंकित किए जाएंगे। उसके उपरांत ही अंतिम निर्णय लेंगे। आपकी क्या राय है?’ सब एक स्वर में बोले यह ठीक है। किसी ने तर्क दिया तो किसी ने विर्तक दिया। एक महाशय ने अपना ही दुखड़ा रो दिया। पत्नी से हुई अनबन की कहानी सुना दिया। स्ट्रीट लाइट फ्यूज क्या हुई? उसकी पत्नी ने उसका जीना हराम कर रखा है। बोलता है स्ट्रीट लाइट जलती थी,तो मेरे आंगन में रोशनी खिलती थी। जिससे हमारे एकाध बल्ब जलने से बच जाते थे और लाइट की बचत होती थी। यह सुनकर लोगों को हंसी आ गई। लेकिन एक नवयुवक ताव में आकर बोला-‘अध्यक्ष जी! भाषण-बाजी ही होती रहेगी। या फिर स्ट्रीट लाइट को दुरुस्त कराने की भी सोचेंगे।’अध्यक्ष जी बड़ी शालीनता से बोले-‘भैया धैर्य रखों। उस संदर्भ में ही मीटिंग की है।’अध्यक्ष जी की बात पूर्ण भी नहीं हुई थी कि एक प्रश्न उछलकर आया। ‘लगता है होना-जाना तो कुछ है नहीं। स्ट्रीट लाइट को फ्यूज ही रहने दो। फ्यूज रहने से कम-से-कम मक्खी-मच्छर तो नहीं होंगे।’
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