नूतन वर्ष पर,प्राय:जो
संकल्प लेते हैं। वे थर्टी फर्स्ट की रात जमकर एंजॉय करते होंगे। उनके लिए
यह अंतिम रात होती है उस संकल्प की। सालभर का कोटा एक ही रात में पूरा कर लेते
होंगे। मन ही मन सोचते हैं कि एक तारीख से सुबह जल्दी उठेंगे और भगवान का स्मरण
करेंगे। अपने से बड़ों का सम्मान करेंगे। घर के आप-पास सफाई रखेंगे। जल विदोहन
नहीं करेंगे। सहिष्णुता की भावना रखेंगे। कुछेक तो बाकायदा डायरी में अंकित करते
हैं। इस वर्ष से अमुख चीज का त्याग करूंगा और अमुख का सेवन करूंगा। एकाध दिन तो वे
अपनी दिनचर्चा में एकाएक आए बदलाव से खुश दिखते हैं। ज्यों-ज्यों दिन बीतते है और
पूर्व भांति ही सामान्य होने लगते हैं। संकल्प-वंकल्प भूल जाते हैं।
मेरे परम मित्र जेठाराम ने थर्टी फर्स्ट
की रात को तीन संकल्प लिए थे। पहला संकल्प सुबह जल्दी उठूंगा और भगवान का
स्मरण करूंगा। दूसरा संकल्प दारू नहीं पीऊंगा और तीसरा संकल्प लिया था-झूठ नहीं
बोलूंगा। थर्टी फर्स्ट की रात को बारह बजे तक तो जमकर पार्टी की उसके
बाद बधाई एवं शुभकामनाओं के आदान-प्रदान में चार बज गए। पांच बजे आकर सोया और आठ
बजे उठा। नौ बजे भगवान का स्मरण किया। पहला संकल्प पहले ही दिन फ्लॉप हो गया।
शाम को वर्माजी के घर पर पार्टी थी। वर्माजी
ने जेठाराम से कहा-‘आओं मित्र! पैग-सैग लगाते
हैं।’
यह सुनकर जेठाराम मुंह पर हाथ लगाते हुए
बोला-‘वर्माजी! मैंने तो रात से
दारू पीना छोड़ दिया है।’
वर्माजी मुस्कुराते हुए बोले-‘रात में ही छोड़ी है तो रात में पी भी लो।’
जेठाराम बोला-‘नहीं,नहीं,नहीं।
मैंने संकल्प लिया है।’
वर्माजी बोले- ‘भाई! संकल्प ही तो लिया है। फेरे थोड़े लिए
है। लोग तो फेरे लेने के बाद भी एक-दूसरे को छोड़े देते हैं। क्या तुम संकल्प नहीं
तोड़ सकते? आज-आज पी लो कल से फिर से
संकल्प ले लेना।’
जेठाराम कुछ बोल पाता उसके पहले ही वर्माजी
ने उसके हाथ में दारू से भरा गिलास थमा दिया। और कहा- ‘सोच-विचार मत करों। जल्दी से गटक जाओं। दूसरा
पैग भी लेना है।’
जेठाराम राम दुविधा में पड़ गया और सोचने
लगा। भला एक बार पीने से क्या होता है? ऐसा करता हूं। अब-अब पी लेता हूं। इसके बाद से नहीं पीऊंगा।
सोचते-सोचते एक पैग गटक गया। वर्माजी से बोला- ‘दूसरा पैग बनाओं। वर्माजी!’
वर्माजी पैग बनाते हुए बोले- ‘यह हुई ना तो दोस्ती वाली बात।’
जेठाराम पार्टी खत्म करके घर लौटा तो
श्रीमतीजी तुनुक कर बोली-‘आपने तो दारू नहीं पीने का
संकल्प लिया था। फिर दारू क्यूं पीकर आए हो।’
जेठाराम बोला-‘संकल्प
तो लिया था। पर क्या है ना कि वर्माजी मान ही नहीं रहे थे। उनका मान रहने के लिए
पीली।’
यह सुनकर श्रीमतीजी ओर तुनुक गई और बोली-‘एक तो संकल्प तोड़ा है और ऊपर से झूठ और बोल
रहे हो। आपने झूठ नहीं बोलने का संकल्प लिया था। वह भी तोड़ दिया।’
यह सुनकर जेठाराम निरुत्तर हो गया और सोचने
लगा संकल्प नहीं लेता तो ही अच्छा रहता । नूतन वर्ष के संकल्प पहले ही दिन फ्लॉप
हो गए।
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