14 Mar 2019

उम्मीदों पर पानी फेरती उंगलियां


फागुन के गीत गाए जा रहे हैं। पेड़ों से पत्तियां झड़ने लगी हैं। मौसम का मिजाज बदल रहा है। राजनीतिक सरगर्मियों से बाजार गुलजार हो गया है। मतदाता बदलाव की बयार में ईवीएम का बटन दबाने के लिए तैयार बैठा है। जूतम-पैजार वाले माननीय जूते को सलाम कर रहे हैं। जूता आम चुनाव में अपनी भागीदारी निभाने की जुगत तलाश रहा है। टिकटों का खेल आरंभ हो चुका है। टिकट के खिलाड़ी लोकसभा नामक खेल खेलने के लिए हाईकमान से अनुनय-विनय करने में लगे हुए हैं। हाईकमान है कि जिताऊ उम्मीदवार की तलाश में पानी के ग्लास के ग्लास पिए जा रहा है, फिर भी अंतिम निर्णय पर नहीं पहुंच पा रहा। किसको मैदान में उतारा जाए और किसको नहीं। युवा को उतारा जाए या फिर पुराने को या फिर नया चेहरा जीत का सेहरा बांध सकता है? जिन नेताओं को अपने टिकट के कटने का भय सता रहा है, वे आलाकमान स्तरीय तांत्रिक से अपना भय दूर करवाने के लिए उनकी शरण में दिल्ली में पड़े हुए हैं।
इस बार होली का रंग चुनावी रंग में मिलकर एक नए रंग में नजर आएगा। राजनीतिक पार्टियां अपनी-अपनी रंग-बिरंगी योजनाओं की पिचकारियों से मतदाताओं को रंगने की कोशिश करेंगी। लेकिन इस बार मतदाता के हाथ में भी लोक-लुभावन योजनाओं को रंगने का रंग-गुलाल रहेगा। आज का मतदाता बहुत समझदार है। वह अच्छी तरह से जानता है कि किसको किस रंग में रंगना है। उसे पता है कि देश के भविष्य का चुनाव है, इसलिए ईवीएम का बटन दबाने से पहले सौ बार सोचेगा। मगर राजनीतिक पार्टियां भी देश के भविष्य को मजबूत हाथों में देने के लिए बरगलाने की एड़ी से चोटी तक की कोशिश करेंगी।
सही मायने में देश का भविष्य मतदाता की उस उंगली पर है, जिससे ईवीएम का बटन दबाया जाता है। लेकिन कई बार मतदाता की उंगली को पता नहीं क्या हो जाता है, जो बहुतों की उम्मीदों पर पानी फेर देती है।



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