27 Jan 2017

पड़ोसी ही पड़ोसी के काम आता है



मैं अपने पड़ोसी के बारे में क्या बताओं और क्या नहीं बताओंवह जब चाहे,तब चला आता है। नहीं समय देखता है और नहीं किसी से पूछताछ करता है। सीधा गेट खोलकर अंदर घुस आता है। जो चाहे उसको,उस वस्तु को उठाकर लिया जाता हैं। पूछते है,तो ऐसा बहाना बनाता है कि यकीन नहीं होतो भी यकीन करना पड़ता है। वह बोलता है,साहब! एक पड़ोसी ही पड़ोसी के काम आता है। यह सुनकर मेरा सातवें आसमान में चढ़ा पारा भी उतर जाता है। नहीं उसे शर्म आती है और नहीं वह झिझकता है। बल्कि मुस्कुराता हुआ,सामान लेकर खिसकता है। उधार मांगकर लून,तेल,लकड़ी,हल्दी-मिर्च,मसाला तो आए दिन ले जाता हैं। कभी-कभी साग-सब्जी,दूध-दही,छाछ का भी प्रस्ताव रख देता हैं। महीने में एक-दो बार हजार-पांच सौ रूपए भी मांग लेता हैं । खुद से बात नहीं बनती है,तो बीवी,बच्चों को भेज देता हैं।

वह बहुत चतुर है। पहले उसने मेरी उंगुली पकड़ी। फिर उंगुली पकड़ते-पकड़ते पहुंचा पकड़ लिया। अब पता नहीं क्या पकडऩे की फिराक में हैमुझे भय हैकहीं गर्दन नहीं पकड़ ले। किसी दिन गर्दन पकड़ ली तो क्या होगाजो मांगेगा वह देना पड़ेगा। नहीं तो जान से हाथ धोना पड़ेगा। लेकिन वह ऐसा कदाचित  नहीं करेगा। क्योंकि वह मुझको अपना एटीएम समझता है। और वह अपने एटीएम को क्यों क्षति पहुंचाएंगाबल्कि वह तो सुरक्षित रखेगा। मैं ही तो उसका एक पड़ोसी हूं,जिसके घर बेरोकटोक चला आता है। और कुछ ना कुछ लेकर ही जाता है। मुझे याद नहीं पड़ता कि वह कभी खाली हाथ वापस गया, जब भी गया कुछ न कुछ लेकर ही गया।

मैं कई दफा उसको भला-बुरा भी कह चुका हूं। पर,वह एक कान से सुनता है और दूसरे कान से निकाल देता है। पूछता हूं तो ऐसा जवाब देता है कि दोबारा पूछने का मन ही नहीं करता। कहता है,‘साहब! बगैर काम की बात सुनने से क्या फायदाकाम की बात सुननी चाहिए। जिससे कोई ना कोई कार्य तो सिद्ध हो।’ मेरे इस पड़ोसी से सिवाय नुकसान के मुझे कोई फायदा भी तो नहीं। उसको किसी कार्य के लिए कहू तो टालमटोल कर जाता है। मेरे कार्य से पहले अपना कार्य बता देता है कि मैं फला कार्य में व्यस्त हूं। एक घंटे के लिए बाइक लेकर जाएंगा और तीन-चार घंटे बाद लौट आए तो गनीमत है। कई बार तो सुबह लेकर जाएंगा और देर शाम को वापस करने आएंगा। बाइक में पेट्रोल भी तब भरवाता होगा। जब रिजर्व में आ जाती होगी। उससे पंचर हो जाए तो उसके पैसे भी मेरे से वसूलने की सोचता है।

ऐसे पड़ोसी से कैसे पिंड छुड़ाऊंयह मेरी समझ में नहीं आता। किसी से राय-मशवरा करता हूं,तो वे लोग भी यहीं कहते हैं कि भाई! तुम भी कैसी बात करते हो। पड़ोसी के प्रति जो मन में भ्रम है,उसे निकाल दो। एक पड़ोसी ही पड़ोसी के काम आता है।

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