28 Jan 2017

झोलाछाप डॉक्टर सेवाराम


बात उन दिनों कि है,जब गांव में सरकारी अस्पताल नहीं था। तब दूर दराज से आया डॉक्टर सेवाराम ने क्लीनिक खोला था। उसने आते ही जो मुनादी की थी। वह अब भी बरकरार है। क्लीनिक के उद्घाटन अवसर पर गुड़ खिलाया था। उसकी वसूली आज तक जारी है। जबकि अब तो गांव में सरकारी उप स्वास्थ्य केन्द्र भी खुल गया है। एक मेल नर्स व एक एएनएम बैठती है। दोनों मरीजों की प्रतिक्षा में सरकारी कुरसी तोड़ते हैं। इनका भी कसूर क्या है? सरकारी कुरसी तोडऩे के लिए ही होती है। तबी तो नई कुरसी आएंगी। जिनके नसीब में सरकारी कुरसी नहीं हैं। वे घर पर भी कुरसी नहीं तोड़ सकते। घर की कुरसी तोडऩे की थोड़ी होती है। वह तो बैठने की होती है। गांव के सरकारी अस्पताल की कुरसी टुटने से बच सकती है। मरीज उधर से इधर आए तब। क्योंकि मरीजों के साथ कुरसी का भी इलाज होता है। वह भी तो गांव के सरकारी अस्पताल में स्वस्थ व चिरायु जीवने जीने आयी है। अन्यथा ओर कहीं भी जा सकती थी। मसलन,गांव की सरकारी स्कूल में जा सकती थी। ग्राम पंचायत भवन में जा सकती थी। डाकघर में जा सकती थी। नजदीकी पुलिस थाना में जा सकती थी।


डॉक्टर सेवाराम टू इन वन है। इनसानों के साथ पशुओं का भी इलाज करता हैं। मोटरसाइकिल के एक बगल में पशु दवा बैग और दूसरी बगल में इनसान दवा बैग लटका रहता है। ग्राहक का कब फोन आ जाए और कब जाना पड़ जाए। इसलिए आपातकालीन सेवा भी करनी पड़ती है। फोन आते ही मोटरसाइकिल के  किक मार चल देता है। यहां ग्राहक मरीज है और मरीज ग्राहक है। दुकानदार के लिए ग्राहक भगवान होता है और मरीज के लिए डॉक्टर भगवान स्वरूप होता है। अत:यहां पर डॉक्टर और मरीज दोनों भगवान स्वरूप हैं,एक-दूसरे के लिए। आप भले ही मोटरसाइकिल को एम्बुलेंस कह सकते है। रहित सायरन एम्बुलेंस,पर इसके साइलेंसर की ध्वनि ही दूरध्वनि है। जिसके सामने एम्बुलेंस सायरन की ध्वनि भी दब जाती है। मरीज क्लीनिक पर आए,चाहे डॉक्टर सेवाराम मरीज के घर पर जाए। कोई अतिरिक्त फीस नहीं। फीस दवाइयों में ही एडजस्ट कर ली जाती है। मोटरसाइकिल सहित अन्य खर्चा-पानी भी दवाइयों में पहले ही एड़ कर देता है। यह एड़ करता है और सरकारी अस्पताल में एडमिट करते हैं। सरकारी और झोलाछाप डॉक्टर में यहीं फर्क हैं। जो इस फर्क को पहचान गया वह हाई डोज से बच गया। जो नहीं पहचान पाया वह लूट गया और लूट लिया जाता है। और कई बार तो जान भी गवानी पड़ जाती है।


अनभिज्ञ व निरक्षर की दृष्टि में जो सुई लगाता है,वहीं डॉक्टर साहब! है। चाहे वह कम्पाउडर,नर्स ही क्यूं ना हो? या फिर देहात में फर्जी क्लीनिक खोलकर बैठा झोलाछाप डॉक्टर सेवाराम ही क्यूं ना हो? इनकों तो इलाज से मतलब है। डॉक्टर की गे्रड या डिग्री से नहीं। इनकी दृष्टि सोच,समझ की शक्ति से पहले ही परे होती है। अगर बची,खुची दृष्टि सोचने,समझने में लगा भी दी तो झोलाछाप दृष्टि बोल पड़ती है। इतना सोच-विचार मत कर। मुझ पर विश्वास है ना फिर काहे को टेंशन लेता है। ये ले तीन दिन की दवा,इसमें से सुबह-शाम लेनी है। ये एक बखत लेनी है और ये खाली पेट लेनी है। तीन तरह की, तीन रंग की,तीन पुडिय़ा है। याद नहीं रहे तो ऐसा करना। लाल पुडिय़ा सुबह-शाम की है और पीली पुडिय़ा एक बखत की है। सफेद वाली खाली पेट की है। इसके बाद भी कोई दिक्कत आए तो यहां चले आना।अनभिज्ञता व विश्वास चीज ही ऐसी है। एक बार जिसकी आंखों पर विश्वास की पट्टी बंध गई। उसे उतारना मुश्किल है। क्योंकि यह पट्टी बंधती नहीं बांधी जाती है। झोलाछाप डॉक्टर के पास जो मरहम पट्टी होती है वह यहीं तो काम आती है। और गांव के सरकारी अस्पताल में रखी मरहम पट्टी रखी-रखी एक्सपायरी डेट हो जाती है। यह तो हम भी जानते है कि मरहम पट्टी घाव भरने का कार्य करती है। पर जब मरहम पट्टी सरकारी एवं झोलाछाप के नाम से बंधती है। तब नाम के अनुरूप ही काम करती है।

डॉक्टर सेवाराम पता नहीं क्या जादू-टोना करता है? लोग जरा सा ताप बुखार होते ही सेवाराम की शरण में चले जाते हैं। जो बीमार नहीं हैं,वे चाय-पानी पीने आ जाते हैं। जब कोई केश बिगड़ता है तो इन्हीं को बुलाता हैं। यह दौड़े चले आते हैं। ले-देकर मामला रफा-दफा भी करवा देते हैं। देहात में पांच व्यक्तियों की बात सर्वप्रिय मानी जाती हैं। ताकि गांव की बात गांव तक रहे। कोर्ट-कचहरी तक नहीं जाए। अगर कोई डॉक्टर सेवाराम के खिलाफ पुलिस तक चल भी गया तो उससे पहले सेवाराम की सेवा हाजिर हो जाती है। इसका का नेटवर्क तगड़ा है। मेडिकल सतर्कता दल के आने से पूर्व ही भनक लग जाती हैं और उनके आने से पहले ही क्लीनिक बंद कर भग जाता है। यह मिलता नहीं और इस पर कार्यवाही होती नहीं। 

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