बच्चों के परिणाम आने शुरू हो गए हैं। अकों
की मारा-मारी मची हुई हैं। अकों का अंक गणित हिचकोले खा रहा है। अंकों की घटत-बढ़त
हो रही है। इस घटत-बढ़त के अनुरूप माता-पिता के चेहरे खिले हुए हैं। खिलता हुआ
चेहरा उसे चिढ़ा रहा,जिसके बच्चे की दो प्रतिशत कम रही,अपने बच्चे से। खिलता हुआ चेहरा भी खुलकर नहीं खिल रहा।
उसके बच्चे की पड़ोसी के बच्चे से दो प्रतिशत कम रही। पड़ोसी प्रफुल्लित तो है,मगर चिंतित भी है। उसका बेटा कक्षा में टॉपर आया है,पर मेरिट में न आ सका। बेटा दो प्रतिशत से मेरिट में आने से
महरूम हो गया। यह मलाल उन माता-पिता को चिंतित कर रहा है। जिनके लाल अपने
अड़ोसी-पड़ोसी के लाल से दो प्रतिशत तले दब गए।
बच्चों के माता-पिता घटत-बढ़त के हिसाब-किताब
में लगे हुए हैं। अपने के कैसे घटे? उसके बच्चे के कैसे बढ़े? एक-एक प्रतिशत पर मंथन जारी है। बार-बार मार्कशीट को देखा
जा रहा है। विषय वार बच्चे की कमजोरी ईजाद कर रहे हैं। किस विषय में बच्चे के अंक
कम है। जिस विषय में अंक कम है। उस पर शोध किया जा रहा है। उस विषय का तो ट्यूशन
भी करवाया था। उसके बावजूद भी अंक कम कैसे आए? इस संदर्भ में बच्चे से
सवाल-जवाब किया जा रहा है। उस पर हुआ व्यय खर्च उसे गिनाया जा रहा है। बच्चा
निरूत्तर है। वह सोच नहीं पा रहा है कि वह जवाब भी दे, तो क्या दे? उसके जवाब
से उसके मां-बाप कितना संतुष्ट होंगे। माता-पिता उसकी नजाकत को भाप नहीं पा रहे
है।
प्रतिस्पर्धा की दौड़ में बच्चा कहीं फिसल
गया होगा। क्योंकि इस उम्र में बच्चे फिसल भी जाते हैं। यह तो सामान्य की बात है।
अनोखा क्या है इसमे। आंखे चार हुई और बच्चा फिसला। आंखे चार नहीं हुई,तो बच्चा कहीं ओर फिसल गया होगा। इंटरनेट का युग है। मोबाइल,लैपटॉप पर उंगलियां ज्यादा चल गई होंगी। परीक्षा में लेखन
स्पीड़ धीमी रही हो होगी। स्मरण शक्ति जाम में फस गई होगी। जब तक जाम खुला,परीक्षा का समय पूर्ण हो गया होगा। प्रतिस्पर्धा के मैदान
में मेहनत की दौड़ करते वक्त पैरे तले कुछ आ गया होगा। जिससे पैर फिसल गया होगा।
फिसल कर गिरता है,तो एकाध प्रतिशत की चोट या खरोंच आयी जाती
है। शायद इसलिए,दो प्रतिशत दूर जाकर गिरा हो।
ऐसी स्थिति में बच्चे को मरहम पट्टी की जरूरत
होती है। उसे पुचकार की जरूरत होती है। लेकिन हम चोट व खरोंच की अनदेखी कर,गिरने की वजह पूछते है। फिर बच्चे अटपटे जवाब देते हैं।
चिंटू से दो प्रतिशत कम है,तो क्या हुआ? बिट्टू से तो दो प्रतिशत
ज्यादा है। वह तो क्या है कि चिंटू परीक्षा में नकल-वकल कर दो प्रतिशत ज्यादा ले
आया। उसकी क्या बिसात,जो मेरे से दो अंक ज्यादा ले आए। जो भी हो
या हुआ हो। माता-पिता को इसकी परवाह नहीं। उन्हें,तो दो प्रतिशत का मलाल है।
वे दो प्रतिशत कम आना अपनी तौहीन समझते हैं।
No comments:
Post a Comment