उफ ! क्या गरमी है। बेचैनी कम होने के बजाय बढ़ती जा रही है।
सूर्यदेव गगन से इत्ती तपन बरसा रहा है कि औसत तापमान से तापमान चालीस डिग्री
सेल्सियस से भी ऊपर पहुंच रहा है। पुराने रिकॉड़ टूटकर गिर रहे है और नये स्थापित
हो रहे है। गरमी का जलवा है। वैसे इस मौसम में गरमी नहीं तो क्या सर्दी होगी? हर साल होती है। इस साल भी हो रही है,तो क्या नई बात हो
गई। लेकिन बार-बार कहा जा रहा है,कूलर, गर्म हवा फेंक रहे हैं।
तीव्रगति से चलने वाली
गरमी की बहिन ‘लू’। गरमी से भी खतरनाक है। जो ‘लू’ की चपेट में आ गया। उसे अपनी
नानी की याद बिना याद किए ही आ जाती है। कई बार ‘लू’ ग्रस्त नानी को याद करते-करते स्वर्गवासी नानी
के पास पहुंच जाता है। नवासे को इस तरह से एकाएक देखकर नानी भी अवाक रह जाती है।
नवासे से नानी इहलोक से परलोक आने की वजह पूछती है। नवासा ‘लू’ का हवाला देता है।
यह सुनकर नानी को भी अपनी नानी याद आ जाती है। ‘लू’ से तो खुद यमराज भी डरता हैं। वह भी अपने दूतों
को ‘लू’ से बचने की हिदायत देकर इहलोक भेजता हैं। कहता है, थोड़ी थोड़ी देर बाद
पानी पीते रहना, खाली पेट बाहर मत निकलना। खाली पेट वाले को लू सबसे पहले लगती है।
संभलकर काम करना चाहिए।‘लू’ का मारा दूत भी बिस्तर पकड़ लेता है।
भाई साहब! आपको क्या
बताओं? गरमी तो गरमी
सूर्यदेव के तीखे तेवर देखकर तो हैंडपम्प मुंह लटकाए खड़े हैं। कुआं,बावड़ी,जोखड़ सूखे पड़े
हैं। बेजुबान पशु-पक्षी बूंद-बूंद के लिए तरस रहे हैं। पर मेघ नहीं बरस रहे। भाई
साहब! सूर्यदेव के तीखे तेवरों से तो बचना। किंतु पशु-पक्षियों के लिए पानी की
व्यवस्था अवश्य करना। इसके तीखे तेवर दोपहर में तो ओर भी तीखे हो जाते हैं।
जिन्हें देखकर सड़के सूनी पड़ जाती हैं। बाजार में सन्नाटा पसर जाता है। अपने आप
ही देह से पसीनो छूटने लगता है। पर भाई साहब! उस मजदूर का क्या होगा? जो भयंकर गरमी
में भी काम करता है। यह सुनकर भाई साहब तो निरुत्तर हो गए। लेकिन आप इसे मजदूर की
मजबूरी कहे या फिर पेट की भूख। यह तो हरेक मौसम में काम करता है और इसकी देह से
हरके मौसम,ऋतु में पसीना
निकलता रहता है। मजदूर तो अपना पेट पसीने की कमाई से ही भरता है। मजदूर की तरह ही
किसान है और यहीं हाल गरीब का है।
भाई साहब! गरमी आती ही क्यूं है? वसन्त ऋतु के
उपरांत वर्षा ऋतु ही आ जाए तो कितना अच्छा रहे। सूर्यदेव की तपन से झुलसने वाले
पेड-पौधे प्रफुल्लित हो जाए। सड़क से पिघलने वाला तारकोल बंद हो जाए। गरमी में
कुत्तों की जीभ बाहर निकल आती हैं उसका निकल बंद हो जाए। यह सूर्यदेव भी ना गरमी
ऋतु में अपनी त्यौरियां चढ़ाता है ओर ऋतुओं से तो यह भी डरता है। गरमी याद दिलाती
है,तुम जितना प्रकृति के साथ छेड़छाड़ करोगें,मैं तुम्हें उतना ही सताऊंगी। बंद
करो ये विकास के नाम पर विनाश।
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