31 May 2017

उफ! गरमी के तीखे तेवर

भाई साहब! गरमी ने अपने तीखे तेवर दिखाना शुरू कर दिया है। अरे,भाई! मई चल रही है। जून आने को आतुर है। इन दिनों में ही गरमी अपने तेवर नहीं दिखाएंगी तो फिर कब दिखाएंगी। जाड़े के दिनों में तो दिखाने से रही। मई-जून ही तो इसके प्रिय माह हैं और इन महीनों में ही इसका मिजाज बिगड़ जाता है। मिजाज बिगड़ते ही यह कुपित हो उठती है। जब यह कुपित होती है,तो अपने  सीधे तेवर बदलकर तीखे कर लेती हैं। इसके तीखे तेवर देखकर इससे पंखा,कूलर,एसी,भी डरने लगती हैं। डरके मारे यह सब ठंडी हवा देते-देते एकदम से गर्म हवा देने लगते हैं। जब यह एकदम से गर्म हवा देने लगते हैं,तो हमें इनमें कुछ ना कुछ मिस्टेक नजर आने लगती है। जबकि मुख्य वजह मिस्टेक न होकर गरमी के तीखे तेवरों का प्रहार होता है।
भाई साहब! गरमी अपने तेवर अपने-आप नहीं बदलती है। सूर्यदेव गगन से इत्ती तपन धरा पर भेज देता है। जिससे औसत तापमान से तापमान चालीस डिग्री सेल्सियस से भी ऊपर पहुंच जाता है। तापमान चालीस डिग्री पार जाते ही गरमी बेकाबू हो जाती है। बेकाबू होने पर इसके सामने सब जतन फेल है। फिर तो नींबू पानी,जूस,से भी राहत नहीं मिलती। इनदिनों तो भाई साहब! उफ! गरमी कब अपनी त्यौरियां बदल ले। कहना मुश्किल है। अपने रोजमर्रा के कार्य इसके तेवर बदलने से पूर्व ही करले वहीं फायदेमंद है। अन्यथा यह तो किसी को भी नहीं बख्शती। इसकी दृष्टि में सब समतुल्य हैं। किसी से कोई भेदभाव नहीं। नहीं परोपकार की भावना। इससे बचने के लिए तो खुद को ही जुगत करनी पड़ती है।
तीव्रगति से चलने वाली गरमी की बहिन ‘लू’। गरमी से भी खतरनाक है। जो ‘लू’ की चपेट में आ गया। उसे अपनी नानी की याद बिना याद किए ही आ जाती है। कई बार ‘लू’  ग्रस्त स्वर्गवासी होकर नानी के पास पहुंच जाता है। नवासे को इस तरह से एकाएक देखकर नानी भी अवाक रह जाती है। नवासे से नानी इहलोक से परलोक आने की वजह पूछती है। नवासा ‘लू’ का हवाला देता है। यह सुनकर नानी को भी अपनी नानी याद आ जाती है। ‘लू’  से तो खुद यमराज भी डरता हैं। वह भी अपने दूतों को ‘लू’ से बचने की हिदायत देकर इहलोक भेजता हैं। क्योंकि ‘लू’ का मारा दूत भी बिस्तर पकड़ लेता है।
भाई साहब! आपको क्या बताओं? गरमी के तीखे तेवर देखकर तो हैंडपम्प मुंह लटकाए खड़े हैं। कुआं,बावड़ी,जोखड़ सूखे पड़े हैं। बेजुबान पशु-पक्षी बूंद-बूंद के लिए तरस रहे हैं। पर मेघ नहीं बरस रहे। भाई साहब! गरमी के तीखे तेवरों से तो बचना। किंतु पशु-पक्षियों के लिए पानी की व्यवस्था अवश्य करना। इसके तीखे तेवर दोपहर में तो ओर भी तीखे हो जाते हैं। जिन्हें देखकर सड़के सूनी पड़ जाती हैं। बाजार में सन्नाटा पसर जाता है। अपने आप ही देह से पसीनो छूटने लगता है। पर भाई साहब! उस मजदूर का क्या होगा? जो भयंकर गरमी में भी काम करता है। यह सुनकर भाई साहब तो निरुत्तर हो गए। लेकिन आप इसे मजदूर की मजबूरी कहे या फिर पेट की भूख। यह तो हरेक मौसम में काम करता है और इसकी देह से हरके मौसम,ऋतु में पसीना निकलता रहता है। मजदूर तो अपना पेट पसीने की कमाई से ही भरता है। मजदूर की तरह ही किसान है और यहीं हाल गरीब का है। यहीं लोग हैं,जो कैसे भी करके। गरमी क्या? गरमी के बाप के भी तीखे तेवर सहन करते हैं। क्या करे? भाई साहब मजबूर भी है और मजदूर भी है। गरमी के तीखे तेवर भी अमीर आदमी ही सहन नहीं कर पाता। अमीर पैसों की गरमी तो सहन कर लेता है।

भाई साहब! गरमी आती ही क्‍यूं है? वसन्‍त ऋतु के उपरांत वर्षा ऋतु ही आ जाए तो कितना अच्‍छा रहे। गरमी में तपन से झुलसने वाले पेड-पौधे प्रफुल्लित हो जाए। सड़क से पिघलने वाला तारकोल बंद हो जाए। गरमी में कुत्‍तों की जीभ बाहर निकल आती हैं उसका निकल बंद हो जाए। छःकी छः ऋतु अपने ऋतुकाल में आती हैं। गरमी भी आती तो अपने ही ऋतु काल में है। जितना बैचेन गरमी ऋतु करती है उतना कोई सी ऋतु नहीं करती। इसके तो तेवरों से ही डर लगता है। हाथ पांव उठा ले तो शामत आ जाए। इसके तीखे तेवर तो इन्द्रदेव ही नीचे कर सकता है। उसके आगे तो यह टिकती ही नहीं। पर भाई साहब! इन्द्रदेव तो आपके और हमारे बुलावे से तो आने से रहे। उनका तो जब मन करेगा। तब ही आएंगे। तब तक तो गरमी हाल-बेहाल कर देगी। 

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