10 Aug 2017

सुनूंगा तो अंतरात्मा की ही सुनूंगा

उसकी अंतरात्मा हमेशा उसे सही राह दिखाना चाही। लेकिन वह हर बार सुनी की अनसुनी कर देता। अंतरात्मा कचोटती रह जाती। इसी का फायदा उठाकर नेताजी की अंतरात्मा सुन लेती है। उसकी अंतरात्मा की आवाज को और सुनकर नेताजी के भाषण में उपयोग कर देती है। इस बात का भान नेताजी को भी नहीं है। वे भी असमंजस में हैं। पीए द्वारा लिखा गया भाषण माइक पकड़ते ही बदल कैसे जाता है? यह नहीं तो पीए समझ पा रहा है और ना ही नेताजी के समझ में आ रहा है। इसे आम आदमी तो भली भांति समझ ही नहीं पाता और ना ही अमल कर पाता है। इसलिए हर बार ठगा जाता है और नेताजी जीतता जाता है।
आम आदमी की तो अंतरात्मा भी आम आदमी की तरह ही भोली-भाली होती है। जिससे ना सियासी दाव-पेंच आता है और ना ही अवसरवादी नेता की तरह दल बदलना आता है। बस,उसे तो दो वक्त की रोजी-रोटी की कसरत आती हैं। जिसे पूरी करके अपने स्वामी और उसके परिवार का पेट भरती है और मतदान दिवस पर मतदान करना नहीं भूलती है। इसी तरह किसान की अंतरात्मा कर्ज माफी के लिए सरकार से पुकार करती है। परन्तु उसकी पुकार कुछ तो पहले से ही कर्ज तले दबी हुई होती है और रही सही पुकारते-पुकारते दम तोड़ देती है।

नित्य नेताजी के पास भांति-भांति अंतरात्माएं दुख,दर्द,दया-याचना लेकर पहुंचती हैं। तब नेताजी की अंतरात्मा है कि गहरी नींद में सोई हुई रहती है। जगाने पर भी नहीं जागती है। उसकी तो आंखे तब खुलती हैं,जब नेताजी की कुरसी खतरे में होती है। तब तो गहरी नींद आ रही हो,तब भी नहीं सोएंगी। बल्कि फट से जागकर जट से कुरसी बचाने की जुगत में जुट जाएंगी। कुरसी के लिए चाहे इस्तीफा ही क्यूं ना दिलवाना पड़े,दिलवाएंगी। नेताजी को उसी कुरसी पर फिर से बैठाने के लिए। चाहे दुश्मन से ही हाथ क्यूं ना मिलाना पड़े,मिलाएंगी। और रातों-रात सियासी खेल खेलकर सुबह तो शपथ दिलवा देती है।
यह सब देखकर उसकी अंतरात्मा उसे जगाती है,जो अपनी अंतरात्मा की आवाज हर बार सुन कर अनसुनी कर देता है। अब उसने भी ठान लिया है। सुनूंगा तो अंतरात्मा की ही सुनूंगा। अन्यथा किसी की नहीं सुनूंगा। अब उसकी तो अंतरात्मा प्रफुल्लित है,पर नेताजी की अंतरात्मा दुखी है। जिस अंतरात्मा की सुनकर वह नेताजी के लिए, यह सब कर रही थी। अब आगे नहीं कर पाएंगी। इसलिए दुखी होकर उसने नेताजी को सब कुछ साफगोई बता दिया है। जो नेताजी के नहीं समझ में आ रहा था। अब वह अच्छी तरह से समझ में आ गया है। पर अब समझने से क्या फायदा है? क्योंकि अब तो उसकी अंतरात्मा जो कुछ भी बताएंगी उसी को बताएंगी और नेताजी की अंतरात्मा सुनकर भी ना सुन पाएंगी। इसी मलाल में नेताजी और उसकी अंतरात्मा हैरान है।

लेकिन नेताजी ने भी ठान लिया है। अब तो सुनूंगा तो अंतरात्मा की सुनूंगा। चाहे कुछ भी करना पड़े। इसके लिए चाहे किसी की अंतरात्मा ही उधार क्यों ना लेनी पड़े। लेने के लिए मय ब्याज रकम चूकाऊंगा। या फिर उसकी की अंतरात्मा ही क्यों ना खरीदनी पड़े। जिसकी अंतरात्मा से नेताजी की कल तक राजनीति चमक रही थी।

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