हर अफवाह सच में परिवर्तन
होने का ख्वाब देखती है। जो कभी पूरा नहीं होता है। इन दिनों चोटी काटने की अफवाह
भी इसी वहम में है कि मैं भी अफवाह न रहकर सच में परिवर्तन हो जाऊं। इसलिए सच के
मार्ग पर चलने के लिए उतावली हो रही है। लेकिन सच की राह इससे कोसों दूर है। वहां
तक पहुंचेगी,उससे पहले ही दम तोड़ चुकी होगी। क्योंकि किसी भी तरह की अफवाह के पैर
नहीं होते। वह तो दूसरों के कंधों पर सवार होकर कुछ दिन दौड़ लेती हैं। दूसरे भी
इसका ज्यादा दूर तक बोझ उठा नहीं पाते हैं। वे तो क्या है कि अंधविश्वास के चलते
अपने कंधों पर बैठा लेते हैं अन्यथा वे ही अपने समीप नहीं आने दे। जैसे ही इनकी
आंखों पर से अंधविश्वास का चश्मा उतरता है। वे खुद ही कंधों पर बैठी अफवाह को झट
से नीचे पटक देते हैं।
सच की डगर पर दौड़ना आसान
थोड़ी है। बल्कि इस डगर पर तो चलना तक मुश्किल है,क्योंकि यह रास्ता इत्ता विकट
होता है कि कदम-कदम पर खतरा होता है और इस पर जित्ते घुमाव आते हैं। उतने घुमाव
शायद ही किसी मार्ग पर आते होंगे। घुमाव भी इत्ते नजदीक-नजदीक होते हैं कि एक
घुमाव पार करके आधा किमी चले नहीं कि दूसरा घुमाव आ जाता है। और प्रत्येक घुमाव पर
खतरा नहीं खतरे का बाप होता है। जिससे भेंट होने पर पूरी अदब से भेंटवार्ता होती
है। इस मार्ग पर तो इंसान ही चलने से कतराता है। अफवाह नाम की चीज की तो हिम्मत
नहीं,जो इस मार्ग पर
चल सके। वह तो क्या है कि सच के मार्ग पर चलने का ख्वाब देख लेते है। ख्वाब देखना
और ख्वाब को पूरा करने में दिन-रात का अंतर है। जो अफवाह नाम की चीज के लिए तो कतई
असंभव है।
चोटी वाली अफवाह जो ख्वाब
देख रही है। वह ख्वाब ही रहेगा। वैसे भी ख्वाब कहते हैं कि कभी पूरे नहीं होते
हैं। वह अपने मनसूबे में कभी भी कामयाब नहीं होगी। वजह साफ है कि वह जिस कधर सच के
मार्ग पर चढ़ने के लिए उतावली हो रही है। उसी कधर कतरा भी रही है। चोटी वाली अफवाह
ही क्या? हर अफवाह भली
भांति जानती है कि सच के मार्ग पर चलना किसी भी अफवाह कि बस की बात नहीं। यह चोटी
वाली अफवाह होने को तो अब से पहले ही रफूचक्कर हो लेती। पर क्या है कि कुछेक लोग
अंधविश्वास की ज्योति को बुझने नहीं देते। उसे जलाए रखना चाहते है। इसी वजह से यह
हावी हो रही है और अंधविश्वास की गलियों में घूम रही है। अंधविश्वास की गलियां
काफी अंधेरी होती हैं। इसमें प्रकाश का कहीं कोई नामोनिशां नहीं होता है। हां,यदि
प्रकाश की एक किरण भी इसमें पहुंच जाए,तो सारा अंधविश्वास धरा का धरा रह जाता है।
चोटी कटवा अफवाह के पीछे भी शायद यही मनोविज्ञान काम कर रहा है। देखना कुछेक दिन
उपरांत अंधविश्वास की गलियों में ही दम तोड़ देंगे। इसके बाद फिर कोई नई अफवाह का
जन्म होगा। कुछ दिन तक होहल्ला मचेगा। फिर शांत। दरअसल क्या है, इस तरह की अफवाहें आती है और कुछ
दिन अफवाह फैला कर चली जाती है। यह सच है कि अफवाह आखिरकार अफवाह होती है।
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