19 Jan 2018

मूर्खता के नेपथ्‍य में समझदार

मोहनलाल मौर्य

आप भले ही उसे मूर्ख समझते होंगे। वह तो अपने आपको समझदार समझता है। समझता क्या हैसमझदार है। रंगमंच पर उसका अभिनय देखकर उसे मूर्ख समझना आपकी ही मूर्खता हैं। वह मूर्खता के नेपथ्य में अभिनयचातुर्य है। आप भूल से भी उसे मूर्ख मत समझ लेना। यह समझ लो कि उसकी मूर्खता ही उसका पेशा है। वह अपने पेशे में सिद्धहस्त है। वैसे तो आप भी अपने पेशे में सिद्धहस्त होंगे। लेकिन मूर्खता में सिद्धहस्त होना तो कोई उससे ही सीखे। सीखे नहीं तो देखे कि वह किस तरह मूर्खता का अभिनय करता है। उस वक्‍त यह नहीं सोचे कि मूर्ख बनने के पीछे बेचारे की कोई मजबूरी होगी। मूर्खता उसकी मजबूरी नहीं,समझदारी है। जिसकी वह जान-बूझकर अदाकारी  करता है। जिसे देखकर आप समझ बैठते है कि वाकई में मूर्ख है। इसी वक्‍त आप सोचे-समझे तो उसकी मूर्खता की कलाकारी को समझ सकते है। लेकिन आप सोचते-समझते नहीं। क्‍योंकि आप तो अपने आपको समझदार समझते हो और आप जैसे समझदार सोचते-समझते थोड़ी है। आप तो जो देखते-सुनते है उसे ही सच समझते है। शायद आपने अभी तक यह नहीं सुनना होगा कि आंखों देखी और कानों सुनी भी कई बार सच नहीं होती। सुनी होती तो आप अब तक समझदारी छोड़कर उसकी मूर्खता की खोज में जुट गए होते।
लेकिन एक बात आप अब भी समझ लो। आप उसे मूर्ख कहकर लताड़ते रहते हो। वह निरुत्तर रहता है इसलिए। उसके निरुत्तर में प्रत्युत्तर होता है,पर वह देना नहीं चाहता। आप यहीं कहेंगे कि क्यों नहीं देना चाहतावह आपको ही मूर्ख समझता है। एक दफा उसने मुझे बताया था कि उस मूर्ख से तर्क करना समझदारी नहीं बेवकूफी है। यह सुनकर एक बार तो मैं भी हतप्रभ रह गया। आपकी नजर में वह बेवकूफ है और उसकी नजर में आप बेवकूफ है। समझ में नहीं आता कि आप दोनों में से मूर्ख कौन है और ज्ञानी कौन हैवह या आप। वह लगता नहीं और आप होंगे नहीं। आप अपने आपको समझदार जो मान बैठे हो। आपको मूर्ख घोषित करना भी मूर्खता होगी। क्‍योंकि इसमें मूर्खता की ही तौहीन होगी। आपकी वजह से मूर्खता की तौहीन होना। आपकी समझदारी के मुंह पर तमाचा है। आपकी समझदारी पर तमाचा पड़ना आपकी तौहीन नहीं,समझदारी की तौहीन है। समझदारी की तौहीन होना समझदार से समझदारी का गायब होना है। इसलिए आप तो अपने आप में समझदार ही रहे।

कहीं आप मुझे भी तो मूर्ख नहीं समझ रहे है। कुछ लोग मूर्खो जैसी वार्ता करने वालों को भी मूर्ख समझ लेते हैं। आपने सुना भी होगा,देखों कैसी मूर्खो जैसी बात कर रहा हैं। इसलिए कह रहा हूं। आप मुझे भी मूर्ख समझ रहे है तो ठीक ही समझ रहे है। हो सकता है,मैं भी मूर्ख हूं। अगर मैं मूर्ख हूं तो मेरे लिए तो गर्व की बात है। अब आप कहेंगे इसमें गर्व वाली बात कहां से आ गई,जो आप गर्व कर रहे हो। मैं गर्व इसलिए कर रहा हूं कि मूर्खता में जो सुख-चैन है,जो आनंद है। वह भला समझदारी में कहां है? क्‍योंकि मूर्ख से कोई जल्‍दी सी उलझता नहीं है। उलझता है तो गुत्थी झुलझती नहीं। इसलिए मेरी तो मूर्खता में ही समझदारी है। मूर्खता में समझदारी का फायदा एक नहीं,अनेक है। एक तो ज्‍यादा माथापच्‍ची नहीं करनी पड़ती है। दूसरा अपना काम आसानी से हो जाता है। और किसी को संदेह भी नहीं होता कि बंदा मूर्ख नहीं समझदार है। इससे ज्‍यादा अपने को चाहिए क्‍या?
आप जिसे मूर्ख समझते होना उसे ही देख लो। आपसे अपना स्वार्थ नि:स्वार्थ करवाना उसकी फितरत है। चेहरे पर भोलापन और जुबान में मिठापन नैसर्गिक लगे ऐसे बोल बोलता है,जो उसका हुनर है। अजीबोगरीब वार्ता कर अपना उल्लू सीधा करना उसकी मूर्खता नहीं,चालाकी है। अब तो आप समझ गए ना कि वह मूर्ख नहीं है। बल्कि मूर्खता के नेपथ्‍य में डेढ़ गुणा समझदार है। कहना का तात्‍पर्य तो आप समझ ही गए होंगे। अगर आपको अब यकीन नहीं आ रहा है तो आप उसकी तहकीकात कर लीजिए। फिर आपको यकीन नहीं आए तो कहना। मैंने तो उसकी तरह मूर्खता का अभिनय करने वाले मेरे पड़ोसी गंगाराम का ही अनुसरण किया है। वह भी उसकी शरण में गए बैगर। क्‍योंकि गंगाराम शरणार्थियों को मूर्खता में समझदारी का ज्ञान नहीं परोसता। उसकी तो बगैर शरण में गए ही उसकी भावभंगिमा से ही मूर्खता में समझदारी का ज्ञान अर्जित किया जा सकता है। वह भी सावधानी पूर्वक। उसे भनक भी लग जाती है तो वह आप से पहले सावधान हो जाता है। और अहसास तक होने नहीं देता है। अहसास हो जाए तो मूर्खता में समझदारी का जो लिबास पहन रखा है वह उतर जाए।
अब भी आपके समझ में नहीं आया तो आपकी आप जानों। मेरा कर्तव्‍य समझाना नहीं बताना था,जो मैंने बताया दिया। समझदार को क्‍या समझाए? फिर आप तो मुझे समझदार ही नहीं डेढ़ गुणा समझदार लगते हो। लेकिन मेरी एक बात जरूर ध्‍यान रखएंगा। जिसमें आपकी भलाई है। बात दरअसल यह है कि अपनी समझदारी अपने पास ही रखिये। कहीं ओर काम आएंगी। यहां ही व्यर्थ कर दी तो कहीं ओर किससे काम चलाओंगे। क्‍योंकि समझदार होना तो बनता है पर समझदारी दिखाना कहां चलता है। जहां चलता है वहां चलाए। किंतु देखकर चलाए,कहीं कोई चालान नहीं काट दे। चालान कट गया तो समझ लो जुर्माना भरना ही पड़ेगा। और समझदारी दिखाने का जुर्माना कई बार बहुत महंगा पड़ता है। अब आप सोच लो। एक बार फिर कह रहा हूं मूर्खता में ही समझदारी है। समझदारी में तो खतरा भारी है और डेढ़ गुणा समझदारी की तो बात ही न्‍यारी।
                                  व्‍यंग्‍योदय अंक 06-2018


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