25 Mar 2018

आपकी अंतिम यात्रा मंगलमय हो


प्रिय मित्र,
               सप्रेम नमस्‍ते।

इंटरनेट के युग में भारतीय डाक सेवा से आपका पत्र प्राप्‍त हुआ। बड़ी प्रसन्‍नता हुई। आपने पत्र में लिखा कि मैं परलोक की सैर करना चाहता हूं। उसके लिए क्‍या करना होगा? प्रिय मित्र! मित्र होने के नाते मैं आपको बता दू कि परलोक की सैर कोई सैर-सपाटा नहीं हैं कि आप घुम-फिरकर वापस घर लौट आए। यह जिंदगी की अंतिम यात्रा है,जो एक ना एक दिन हम सभी को करनी होती है। यहीं एकमात्र ऐसी यात्रा है जिसमें यात्री का किराया भत्‍ता यात्री से वहन नहीं किया जाता है। और ना ही यात्रा में यात्री को किसी भी तरह की सुविधा से महरूम होने दिया जाता है। कर्मफल के मुताबिक वे तमाम सुविधाएं प्रदान की जाती है जिनका यात्री हकदार है। किसी कारणवंश सुविधाएं नहीं भी मिले तब भी दुखी होने की जरूरत नहीं हैं। परलोक के मुख्‍य प्रबंधक यमराज के द्वारा बिना कहे-सुने ही अपने आप ही व्‍यवस्‍था हो जाती है।

इस यात्रा कि और यात्राओं की तरह पूर्व तैयारी नहीं करनी होती हैं और ना ही पूर्व में रिजर्वेशन करवाने की जरूरत है। जिस दिन की यात्रा होती है,उसी दिन तत्‍काल में टिकट तथा सीट मिल जाती है। ना ही किसी तरह के सामान की जरूरत हैं। इहलोक से परलोक चलने वाली गाड़ी भारतीय रेल की तरह नहीं है,अपने निर्धारित समय से चलती है। एक सेकण्‍ड भी लेट नहीं होती है। इस गाड़ी में यात्री को भारतीय रेल के यात्रि‍यों की तरह हिदायत नहीं दी जाती है कि सहयात्री से किसी भी तरह का खान-पीन नहीं करें। इसमें आप  किसी भी सहयात्री के साथ खान-पीन कर सकते है। खूब मौज-मस्‍ती कीजिए। जो मन में आए कीजिए। किसी तरह की कोई रोक-टोक नहीं है। बेरोकटोक है। लेकिन सहयात्री का सौभाग्‍य हर किसी के भाग्‍य में नहीं होता। यह तो किसी भाग्‍यशाली यात्री को ही प्राप्‍त होता है।

ये मित्र! एक बार फिर से बता रहा हूं कि परलोक की यात्रा करना आपके हाथ में नहीं। और यात्राओं की तरह नहीं है कि टिकट विंडों पर गए। लाइन में लगे। टिकट कटवाया और यात्रा के लिए चल दिए। इस यात्रा की यात्रा तो अचानक होती है। इसलिए इसकी चिंता अभी से मत कीजिए। चिंता से उनमुक्‍त हो जाए और जिंदगी का आनंद लीजिए। इसके बावजूद भी परलोक की यात्रा करना चाहते है तो जाने से पहले एक ओर बात बता दू कि किसी भी निजी या अजीज को कुछ भी मत बताकर जाना। चुपचाप ही निकल जाना। तब तो आपकी यात्रा मंगलमय होगी। बताकर गए तो पिछे वालों पर तलवार लटकती रहेंगी। किसी से लेनदेन होतो चुकती कर जाना। अन्‍यथा पिछे वालों पर ब्‍याज की गाज गर्जती रहेंगी। मोहमाया में फंसे हुए पेंचों को निकालकर जाना। अन्‍यथा पेंच यात्रा में बाधा उत्‍पन्‍न कर सकते हैं।

आपके जाने के बाद बहुत सी सामाजिक रवायत होगी। जिनमें दकियानूसी ज्‍यादा होगी। उनकी आपको जरा भी फिक्र नहीं करनी है। जिन्‍हें फिक्र करनी हैं,वे अपने आप कर लेगे। बारह दिन तक तो करते भी हैं। तेरहवें दिन फिक्र मुक्‍त हो जाते हैं। लिखने को तो और भी बहुत कुछ बाकी रह गया हैं। लेकिन इन्‍हीं कामनाओं के साथ आपकी अंतिम यात्रा मंगलमय हो।
                                                                   - आपका मित्र

17 Mar 2018

अंतिम मैसेज ‘बिलकुल’ लिखकर ‘वलेस’ कुल को छोड़कर चल बसे व्‍यंग्‍यकार सुशील सिद्धार्थ



मोहनलाल मौर्य  
उत्‍तर प्रदेश के सीतापुर के भीरा,बिसवां में 2 जुलाई 1958 को जन्‍में प्रख्‍यात व्‍यंग्‍यकार सुशील सिद्धार्थ का शनिवार सुबह निधन हो गया। 60 वर्ष की उम्र में इस तरह से चले जाना व्‍यंग्‍य जगत में शोक की लहर दौड़ गई। उनके निधन की खबर जिसने भी सुनी विश्‍वास नहीं हुआ कि अद्भुत व्‍यक्तित्‍व के धनी अप्रत्‍याशित अलविदा कैसे हो गए। मैं खुद स्‍तब्‍ध हूं।


नए-पुराने,नवोदित स्‍थापित व्‍यंग्‍कारों को एक मंच पर लाने के लिए वे अ‍हर्नशि आमादा रहते थे। इसके लिए उन्‍होंने 22 जुलाई 2015 को वलेस (व्‍यंग्‍य लेखक समिति) के नाम से वाट्सऐप ग्रुप बनाया था। जिससे मुझ जैसे नवोदित से लेकर समकालीन व्‍यंग्‍य शिरोमणि पद्मश्री ज्ञान चतुर्वेदी सहित बहरहाल 61 सदस्‍य है। इस ग्रप में वे नित्‍य व्‍यंग्‍य में नवाचार एवं आगामी योजनाओं पर प्रकाश डालते रहते थे तथा व्‍यंग्‍यकारों की प्रकाशित,अप्रकाशित व्‍यंग्‍य रचनाओं पर बेबाक टिप्‍पणी देकर उन्‍हें अवगत करवाते थे। व्‍यंग्‍य विधा में उनके अमूल्‍य योगदान को कभी भूलाया नहीं जा सकता है। वे व्‍यंग्‍य पर बहुत बारीक से अपना वक्‍तव्‍य रखते थे तथा सदैव व्‍यंग्‍य के संदर्भ में समर्पित रहते थे। नवोदितों व्‍यंग्‍यकारों के तो वे एक तरह से भगवान ही थे। क्‍योंकि नवोदितों पर उनका विशेष फोक्‍स रहता था।


वलेस ग्रुप में सबसे पहले वरिष्‍ठ व्‍यंग्‍यकार अं‍जनी चौहान का मैसेज आया सुशील सिद्धार्थ नहीं रहे। ये देखकर तमाम वलेसी स्‍तब्‍ध रह गए। वलेस ग्रुप में वरिष्‍ठ व्‍यंग्‍यकार निर्मल गुप्‍त की एक पोस्‍ट के नीचे बीती रात 8.53 पर अंतिम मैसेज ‘बिलकुल’ लिखकर ‘वलेस’ कुल को छोड़कर चल बसे। इससे पूर्व उन्‍होंने ‘सुदर्शन जी अपने व्‍यंग्‍य का टेक्‍स्‍ट लगाओं’ लिखा था। और फेसबुक पर उनकी अंतिम पोस्‍ट ‘लिखे जा रहे व्‍यंग्‍य आखेट का अंश’ था तथा ‘आखेट’ नाम से उनका नवीनतम व्‍यंग्‍य सग्रंह प्रकाशन की तैयारी में है। जिसमें इकलातीस व्‍यंग्‍य हैं। जिसका आवरण सुशील सिद्धार्थ ने सोशल मीडिया पर पोस्‍ट किया था।


वे मेरे सबसे प्रिय व्‍यंग्‍यकार नहीं अपितु मेरे गुरु भी थे,जो कि मुझे समय-समय पर मार्गदर्शित करते रहते थे। उनसे मेरा जुड़ाव फेसबुक के जरिए हुआ था। वलेस ग्रुप में जुड़ने के बाद तो अक्‍सर वार्तालाप होती रहती थी। उनके साक्षात दर्शन 23 दिसम्‍बर 2017 को प्रथम ज्ञान चतुर्वेदी सम्‍मान के अवसर पर भोपाल के स्‍वराज भवन में हुए थे। जिसमें खासतौर से उन्‍होंने आमंत्रि‍त किया था। और में इस कार्यक्रम मैं सबसे पहले आने वाले आगंतुक के रूप में उपस्थित हुआ था। वहां दो दिन तक उनके साथ रहा। उनके साथ बिताए वे पल हरपल याद रहेंगे।


साधारण सादगी से सराबोर सुशील सिद्धार्थ की अब तक प्रीति न करियों कोय, मो सम कौन, व्‍यंग्‍य संग्रह में नारद की चिंता,मालिश महापुराण,हाशिये का राग,सुशील सिद्धार्थ के चुनिंदा व्‍यंग्‍य,राग लन्‍तरानी,दो अवधी कविता संग्रह। इनके अलावा इनके संपादन में पंच प्रपंच, व्‍यंग्‍य बत्‍तीसी,श्रीलाल शुक्‍ल संचयिता,मैत्रेयी पुष्‍पा रचना संचयन,नये नवेले व्‍यंग्‍य,व हिंदी कहानी का युवा परिदृश्‍य (तीन खंड) आदि किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं।


साहित्‍य क्षेत्र में सुशील सिद्धार्थ का नाम जाना पहचान था। खासतौर पर व्‍यंग्‍य विधा में। वे किसी परिचय का मोहताज नहीं थे। उनका परिचय देना सूर्य को दीपक दिखाना है। हाल ही में उनको कोटा में व्‍यंग्‍यश्री सम्‍मान से नवाजा गया था। इससे पूर्व वे हिंदी संस्‍थान उत्‍तर प्रदेश से दो बार व्‍यंग्‍य में और दो बार अ‍वधी कविता के नामित पुरस्‍कारों से सम्‍मानित हो चुके हैं। इनके अलावा लखनऊ से अवधी शिखर सम्‍मान,भोपाल से स्‍पंदन आलोचना सम्‍मान,और दिल्‍ली से शरद जोशी से सम्‍मान से नवाजे जा चुके हैं। उनको मेरे तरफ से भावभीनी श्रद्धांजलि।

1 Mar 2018

होली की होली, भड़ास की भड़ास

मोहनलाल मौर्य

वह ‘बुरा न मानों होली है’ कहता हुआ घर से निकला है। रंग-गुलाल हाथ में हैं तथा मन में भड़ास की भावना है। वह जिस पर रंग-गुलाल लगाकर भड़ास निकालने के फिराक में है उस पर भी कोई ना कोई भड़ास निकालने के लिए आतुर है। वह भी कह देगा, ‘बुरा न मानों होली है।’होली पर्व पर होता भी ऐसा ही है। जिसके रंग-गुलाल लगाना चाहते हैं,उसके तो लगता नहीं। किसी ओर के लग जाता है। होली खेलने का मजा भी तभी आता है जब इसके उसके रंग लगता है। फिर मजे-मजे में भड़ास तो स्वत: ही निकल जाती है।  होली की होली भड़ास की भड़ास

भड़ास निकालने वाले का सलीका अलहदा होता है। उसकी विशेषता हस्तकौशल में परिपूर्ण होता है,उसके हाथों में अपेक्षाकृत ज्यादा रंग-गुलाल होता है। पहले आलिंगन प्रवृत्ति अपनाता है। उसके उपरांत होली खेलते-खेलते भड़ास निकाल लेता है। अपनी भड़ास पूर्ण नहीं हो। जब तक रंग-गुलाल लगाता रहता हैं। किसके रंग-गुलाल लगाना है और किससे नहीं। यह नहीं देखता,जो मिल गया वहीं सही। अलबत्ता कई बार विपरीत हो जाता है। सेर को सवा सेर मिल जाता है। जब सेर सवा सेर से मुखातिब होता है। तब भड़ास तो भाड़ में घुस जाती है और दोनों रंग-गुलाल की बौछार से सराबोर हो जाते हैं। फिर होली खेलते-खेलते हमजोली हो जाते हैं। 

हमजोली मिलकर टोली बनाते हैं। टोली बनाकर हल्ला-गुल्ला करते हुए घर-घर होली खेलने जाते हैं। होली पर टोली की टोली आती देखकर जो दरवाजा बंद कर लेता है। उसको रंगने के लिए अपने-अपने हथकंडे अपनाते हैं। जिसका हथकंडा लगा गया और दरवाजा खुल गया। वह दरवाजा खुलते ही रंग-गुलाल लगाता है और भड़ास निकालने वाला रंग-गुलाल की आड़ में होली खेलते-खेलते भड़ास भी निकाल लेता है।

मन की भड़ास निकालने का सुअवसर होली पर्व पर जो मिलता है। ऐसा अवसर ओर दिन कहां मिलता हैमन से भड़ास निकल जाती है और तन पर रंग-गुलाल चढ़ जाती है। मन-तन की अभिलाषा पूर्ण हो जाती है। जो प्राय: हो नहीं पाती। मन की अभिलाषा पूर्ण होती है तो तन की नहीं होती और तन की होती है तो मन की नहीं होती। जब मन-तन की अभिलाषा एक साथ पूर्ण होती है। तब उसके लिए वह दिन होली दिवाली से कम नहीं होता। जब दिन ही होली का मिल रहा है तो वह अभिलाषा पूर्ण क्यों नहीं करेगावह तो अवश्य करेगा। सालभर से वह इसी दिन के इंतजार में तो रहता है। कब होली आए और कब भड़ास निकालु।

टोली के संग होली का आनंद


मोहनलाल मौर्य
मुझे तो अकेले होली खेलना कतई पसंद नहीं है। मैं घर से अकेला होली खेलने निकलता हूं तो घर से निकलते ही दबोच लेते हैं। टोली की टोली तैनात जो रहती हैं। गत वर्ष सीना तानकर होली दंगल में उतरा था। पर जो हाल हुआ था वह मैं ही जानता हूं। होली दंगल में उतरते ही ऐसी पटकनी दी कि चारों खाने चित आया। रंग-गुलाल से सराबोर होकर घर आया और आकर आईने में चेहरा देखा तो आईना भी मुझ पर हस रहा था। जो ओर दिनों खामोश रहता था। आईने से झूठ भी नहीं बोल सकता। उसे सब पता रहता है। वह वहीं बताता है जो खुद देखता है और आईना ही तो है,जो सच बोलता है। खैर,छोड़ों। होली पर्व ऐसा तो होता आया है। पर जो टोली बनाकर होली खेलने में मजा आता है वह भला अकेले में कहां आता हैटोली के संग होली  का आनंद
होली पर टोली अनायास ही बन जाती है। टोली बनते ही पूरी की पूरी टोली जिस गली से निकलती है तो अच्छे-अच्छों की रंग-गुलाल फीकी पड़ जाती है। बंदा सोचता रह जाता है कि किसके रंग-गुलाल लगाऊं और किसके नहीं लगाऊं। वह एक के लगाएंगा तो उस पर पूरी-पूरी टोली हमला कर देती हैं। इसलिए बचकर निकलना ही मुनासिब समझता है। पर उसका बचना नामुनासिब है। ट्रैफिक हवलदार से बचकर निकल सकते हैं। पर होली पर टोली से बचकर निकलना मुमकिन नहीं नामुमकिन है। क्योंकि उसके पीछे ग्यारह मुल्कों की पुलिस नहीं। बल्कि गली-मोहल्ले के वे लडक़े होते हैं,जो एक साथ टूटकर पड़ते हैं। ऐसा रंगते है कि वह भी टोली में शामिल हो जाता है।
जब टोली की हुड़दंग और होली की मस्ती मिल-बैठते हैं। तब पिचकारी पिचक जाती है और काला पेंट परवान चढ़ जाता है। रंग-गुलाल मुंह ताकते रह जाते हैं। सोचते है कि किसी खूबसूरत लोहे पर जाकर तो मुंह काला नहीं करता। अपुन के पर्व पर आकर अपनी टांग फंसा देता है,कमबख्त कहीं का। होली पर टोली वालों के सम्मुख कोई समझदारी दिखाता है,तो वे कीचड़ को भी रंग-गुलाल समझकर उसके चेहरे पर पोत देते हैं। इनका मानना है कि कीचड़ में कमल खिल सकता है तो कीचड़ से होली खेलने में क्या बुराई है? जो समझदारी नहीं दिखाता है और हंसी-खुशी से टोली के संग होली खेलता है,उसे रंग-गुलाल से सराबोर कर देते हैं। फिर उसका चेहरा नहीं,उसके सफेद दंत भी रंग-बिरंगे दिखते हैं।
अबकी बार मैं भी टोली के संग होली दंगल में उतरुगा। इसके लिए चाहे मुझे गठबंधन क्यों ना करना पड़े? जब राजनैतिक पार्टियां ही चुनावी दंगल में गठबंधन करके उतर सकती हैं,तो भला मैं क्यूं नहीं होली दंगल में उतर सकता? देखना मैं भी किसी ना किसी टोली से गठबंधन करके होली पर ऐसा धमाल मचाऊंगा की सब मेरे रंग में रंग जाएंगे। देखने वाले देखते रह जाएंगे और रंग-गुलाल लगाने वाले रंग-गुलाल लगाकर चले जाएंगे।