प्रिय मित्र,
सप्रेम नमस्ते।
इंटरनेट के युग में भारतीय डाक सेवा से आपका
पत्र प्राप्त हुआ। बड़ी प्रसन्नता हुई। आपने पत्र में लिखा कि मैं परलोक की सैर
करना चाहता हूं। उसके लिए क्या करना होगा? प्रिय मित्र! मित्र होने के नाते मैं
आपको बता दू कि परलोक की सैर कोई सैर-सपाटा नहीं हैं कि आप घुम-फिरकर वापस घर लौट
आए। यह जिंदगी की अंतिम यात्रा है,जो एक ना एक दिन हम सभी को करनी होती है। यहीं
एकमात्र ऐसी यात्रा है जिसमें यात्री का किराया भत्ता यात्री से वहन नहीं किया
जाता है। और ना ही यात्रा में यात्री को किसी भी तरह की सुविधा से महरूम होने दिया
जाता है। कर्मफल के मुताबिक वे तमाम सुविधाएं प्रदान की जाती है जिनका यात्री
हकदार है। किसी कारणवंश सुविधाएं नहीं भी मिले तब भी दुखी होने की जरूरत नहीं हैं।
परलोक के मुख्य प्रबंधक यमराज के द्वारा बिना कहे-सुने ही अपने आप ही व्यवस्था
हो जाती है।
इस यात्रा कि और यात्राओं की तरह पूर्व तैयारी
नहीं करनी होती हैं और ना ही पूर्व में रिजर्वेशन करवाने की जरूरत है। जिस दिन की
यात्रा होती है,उसी दिन तत्काल में टिकट तथा सीट मिल जाती है। ना ही किसी तरह के
सामान की जरूरत हैं। इहलोक से परलोक चलने वाली गाड़ी भारतीय रेल की तरह नहीं है,अपने
निर्धारित समय से चलती है। एक सेकण्ड भी लेट नहीं होती है। इस गाड़ी में यात्री
को भारतीय रेल के यात्रियों की तरह हिदायत नहीं दी जाती है कि सहयात्री से किसी
भी तरह का खान-पीन नहीं करें। इसमें आप किसी भी सहयात्री के साथ खान-पीन कर सकते है। खूब
मौज-मस्ती कीजिए। जो मन में आए कीजिए। किसी तरह की कोई रोक-टोक नहीं है। बेरोकटोक
है। लेकिन सहयात्री का सौभाग्य हर किसी के भाग्य में नहीं होता। यह तो किसी भाग्यशाली
यात्री को ही प्राप्त होता है।
ये मित्र! एक बार फिर से बता रहा हूं कि परलोक की यात्रा
करना आपके हाथ में नहीं।
और यात्राओं की तरह नहीं है कि टिकट विंडों पर गए। लाइन में लगे। टिकट कटवाया और
यात्रा के लिए चल दिए। इस यात्रा की यात्रा तो अचानक होती है। इसलिए इसकी चिंता
अभी से मत कीजिए। चिंता से उनमुक्त हो जाए और जिंदगी का आनंद लीजिए। इसके बावजूद
भी परलोक की यात्रा करना चाहते है तो जाने से पहले एक ओर बात बता दू कि किसी भी
निजी या अजीज को कुछ भी मत बताकर जाना। चुपचाप ही निकल जाना। तब तो आपकी यात्रा
मंगलमय होगी। बताकर गए तो पिछे वालों पर तलवार लटकती रहेंगी। किसी से लेनदेन होतो चुकती
कर जाना। अन्यथा पिछे वालों पर ब्याज की गाज गर्जती रहेंगी। मोहमाया में फंसे
हुए पेंचों को निकालकर जाना। अन्यथा पेंच यात्रा में बाधा उत्पन्न कर सकते हैं।
आपके जाने के बाद बहुत सी सामाजिक रवायत होगी।
जिनमें दकियानूसी ज्यादा होगी। उनकी आपको जरा भी फिक्र नहीं करनी है। जिन्हें
फिक्र करनी हैं,वे अपने आप कर लेगे। बारह दिन तक तो करते भी हैं। तेरहवें दिन
फिक्र मुक्त हो जाते हैं। लिखने को तो और भी बहुत कुछ बाकी रह गया हैं। लेकिन इन्हीं
कामनाओं के साथ आपकी अंतिम यात्रा मंगलमय हो।
- आपका मित्र