मोहनलाल मौर्य
उत्तर प्रदेश के सीतापुर
के भीरा,बिसवां में 2 जुलाई 1958 को जन्में प्रख्यात व्यंग्यकार सुशील सिद्धार्थ का
शनिवार सुबह निधन हो गया। 60 वर्ष की उम्र में इस तरह से चले जाना व्यंग्य जगत में
शोक की लहर दौड़ गई। उनके निधन की खबर जिसने भी सुनी विश्वास नहीं हुआ कि अद्भुत
व्यक्तित्व के धनी अप्रत्याशित अलविदा कैसे हो गए। मैं खुद स्तब्ध हूं।
नए-पुराने,नवोदित स्थापित
व्यंग्कारों को एक मंच पर लाने के लिए वे अहर्नशि आमादा रहते थे। इसके लिए उन्होंने
22 जुलाई 2015 को वलेस (व्यंग्य लेखक समिति) के नाम से वाट्सऐप ग्रुप बनाया था।
जिससे मुझ जैसे नवोदित से लेकर समकालीन व्यंग्य शिरोमणि पद्मश्री ज्ञान
चतुर्वेदी सहित बहरहाल 61 सदस्य है। इस ग्रप में वे नित्य व्यंग्य में नवाचार एवं
आगामी योजनाओं पर प्रकाश डालते रहते थे तथा व्यंग्यकारों की प्रकाशित,अप्रकाशित व्यंग्य
रचनाओं पर बेबाक टिप्पणी देकर उन्हें अवगत करवाते थे। व्यंग्य विधा में उनके
अमूल्य योगदान को कभी भूलाया नहीं जा सकता है। वे व्यंग्य पर बहुत बारीक से अपना
वक्तव्य रखते थे तथा सदैव व्यंग्य के संदर्भ में समर्पित रहते थे। नवोदितों व्यंग्यकारों
के तो वे एक तरह से भगवान ही थे। क्योंकि नवोदितों पर उनका विशेष फोक्स रहता था।
वलेस ग्रुप में सबसे पहले
वरिष्ठ व्यंग्यकार अंजनी चौहान का मैसेज आया सुशील सिद्धार्थ नहीं रहे। ये
देखकर तमाम वलेसी स्तब्ध रह गए। वलेस ग्रुप में वरिष्ठ व्यंग्यकार निर्मल
गुप्त की एक पोस्ट के नीचे बीती रात 8.53 पर अंतिम मैसेज ‘बिलकुल’ लिखकर ‘वलेस’
कुल को छोड़कर चल बसे। इससे पूर्व उन्होंने ‘सुदर्शन जी अपने व्यंग्य का टेक्स्ट
लगाओं’ लिखा था। और फेसबुक पर उनकी अंतिम पोस्ट ‘लिखे जा रहे व्यंग्य आखेट का
अंश’ था तथा ‘आखेट’ नाम से उनका नवीनतम व्यंग्य सग्रंह प्रकाशन की तैयारी में है।
जिसमें इकलातीस व्यंग्य हैं। जिसका आवरण सुशील सिद्धार्थ ने सोशल मीडिया पर पोस्ट
किया था।
वे मेरे सबसे प्रिय व्यंग्यकार
नहीं अपितु मेरे गुरु भी थे,जो कि मुझे समय-समय पर मार्गदर्शित करते रहते थे। उनसे
मेरा जुड़ाव फेसबुक के जरिए हुआ था। वलेस ग्रुप में जुड़ने के बाद तो अक्सर
वार्तालाप होती रहती थी। उनके साक्षात दर्शन 23 दिसम्बर 2017 को प्रथम ज्ञान
चतुर्वेदी सम्मान के अवसर पर भोपाल के स्वराज भवन में हुए थे। जिसमें खासतौर से
उन्होंने आमंत्रित किया था। और में इस कार्यक्रम मैं सबसे पहले आने वाले आगंतुक
के रूप में उपस्थित हुआ था। वहां दो दिन तक उनके साथ रहा। उनके साथ बिताए वे पल हरपल
याद रहेंगे।
साधारण सादगी से सराबोर सुशील
सिद्धार्थ की अब तक प्रीति न करियों कोय, मो सम कौन, व्यंग्य संग्रह में नारद की
चिंता,मालिश महापुराण,हाशिये का राग,सुशील सिद्धार्थ के चुनिंदा व्यंग्य,राग लन्तरानी,दो
अवधी कविता संग्रह। इनके अलावा इनके संपादन में पंच प्रपंच, व्यंग्य बत्तीसी,श्रीलाल
शुक्ल संचयिता,मैत्रेयी पुष्पा रचना संचयन,नये नवेले व्यंग्य,व हिंदी कहानी का
युवा परिदृश्य (तीन खंड) आदि किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं।
साहित्य क्षेत्र में
सुशील सिद्धार्थ का नाम जाना पहचान था। खासतौर पर व्यंग्य विधा में। वे किसी
परिचय का मोहताज नहीं थे। उनका परिचय देना सूर्य को दीपक दिखाना है। हाल ही में
उनको कोटा में व्यंग्यश्री सम्मान से नवाजा गया था। इससे पूर्व वे हिंदी संस्थान
उत्तर प्रदेश से दो बार व्यंग्य में और दो बार अवधी कविता के नामित पुरस्कारों
से सम्मानित हो चुके हैं। इनके अलावा लखनऊ से अवधी शिखर सम्मान,भोपाल से स्पंदन
आलोचना सम्मान,और दिल्ली से शरद जोशी से सम्मान से नवाजे जा चुके हैं। उनको मेरे
तरफ से भावभीनी श्रद्धांजलि।
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