भगत
जी कि शनिवार की रात भूत-भूतनियों के नाम रहती है। रात को वह उनका साक्षात
साक्षात्कार लेते हैं। साक्षात्कार में अजब-गजब प्रश्न पूछे जाते हैं। अक्सर भूत बयानों पर कायम रहते हैं,लेकिन भूतनियां
वचन देकर मुकर जाती हैं। भक्तगण बताते है कि भगत जी ने ना जाने कितनी
भूत-भूतनियों को जीने की राह दिखाई है। उनमें से कई तो अच्छी ज़िंदगी भी जी रही होंगे। लेकिन, पहली बार एक ऐसी भूतनी आई,जो
साक्षात्कार देने के बजाय विरोध पर उतर गई। भगत जी को
ललकार रही थी। दो-दो हाथ करने के लिए हाथ-पैर पीट रही थी। भगत जी की वर्षों की तपस्या से बनी प्रतिष्ठा की इमारत को गिराने पर तुली थी। हालाँकि, भगत जी इससे पहले भी तममा
भूतनियों को काबू कर चके थे। वे तमाम हथकंड़े जानते हैं,लेकिन इसके आगे सारे हथकंड़े ठंडे पड़ गए।
भगत जी, भभूत और भूतनी
भगत
जी ने एड़ी से चोटी तक तंत्र-मंत्र फूँक मारे,फिर
भी उसके विरोध के स्वर कम नहीं हुए। दाँत कटकटाते हुए कह रही थी, ‘तूने या समाज ने यह जो तामझाम खड़ा कर रखा है।
इसके आगे समाज झुकता होगा।
मैं झुकने वाली नहीं हूँ। अपनी ताकत किसी और को दिखाना। तेरे प्रति लोगों के मन
में इज्जत होगी,लेकिन मेरे मन नहीं है। तू क्या समझता है?तेरी गीदड़
धमकियों से डर जाऊंगी। अबे मैं कोई साधारण
भूतनी नहीं,बल्कि नंदन वन की बाघिन भूतनी हूँ। इसलिए दहाड़-दहाड़कर कह रही हूँ। मुझसे पंगा मत ले। वरना गंगा भेज दूंगी।’
भगत
जी पहली बार डरे हुए लग रहे थे,लेकिन आभास नहीं हो। इसलिए डराते हुए बोले, ‘तू मुझे क्या गंगा भेजेगी? तू रूक जरा! तूझे अभी गंगासागर के लोटे में समेटे
देता हूं। यह सुनकर भूतनी और भड़क गई,‘बोली ऐसी धमकियां न दे वर्ना अभी तेरे चेले
चपाटी और भक्तगणों के सामने तेरा कच्चा चिट्ठा खोलती हूँ।’
भगत
जी भावुकता में बोल दिए, ‘चल खोल,मेरी पॉल।’ यह सुनकर वह हँसने
लगी। आँखों की पुतली चढ़ाते हुए बोली,‘सब के सब कान खोलकर सुन लो। जिसे तुम भगत जी कहते हो। यह कोई और नहीं
बल्कि तुम्हारे मन के डर का धंधा बनाने वाला व्यापारी है। जब भी कोई मरता है। ये
खुश होता है। रात को श्मशान में जाकर जश्न मनाता है। दिनभर तुम्हारे मन के डर
टटोलता है और रात को तुम्हें,तुम्हारे ही डर से डरता है। यह किसी भूत-भूतनी को
मुक्ति नहीं देता है। बल्कि यह तो तुम्हारें अंदर के भूत-भूतनियों को तुम्हारे
सामने लाता है,तुम्हें डराता है। यही इसका धंधा है। भूतनी कुछ और बोलती उससे पहले
ही अचानक भगत जी को कुछ होने लगा,जैसे भगत जी में भूत आ रहा हो, लोग कुछ समझ पाते
उससे पहले भगत जी अपने भूत के साथ अपनी धूनी-भभूत सब छोड़-छाड़ के सर पर पैर रखकर
भागते नजर आ रहे थे।
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