24 Feb 2019
23 Feb 2019
सोशल मीडिया का रचना कर्म
कल तक जो श्रोता और पाठक ढूंढ़ते थे, आजकल वे हर सुबह शाम फॉरवर्ड हो रहे हैं।
जो सोशल मीडिया पर अपडेट रहता है, वह कहीं बाहर जाता है, तब भले ही परिवार को नहीं कहकर जाता हो, लेकिन फेसबुक पर बताकर ही निकलता है। किसी भी शुभ अवसर या पर्व पर जितनी बधाई फेसबुक पर दी जाती है, उतनी फेस टु फेस कहां दी जाती है? भले ही आपको अपना बर्थ डे याद न रहे। लेकिन आप फेसबुक पर हैं, तो आपके फेसबुक मित्रों को अवश्य याद रहता है। चाहे परिजन, यार, रिश्तेदार बधाई न दें, पर वे दुनिया के किसी भी कोने में हो, मुबारकबाद देना कभी नहीं भूलते। मेरे जैसा तो सोशल मीडिया पर ही डिजिटल केक काटकर अपने जन्मदिन को यादगार बना लेता है।.
जो सोशल मीडिया पर अपडेट रहता है, वह कहीं बाहर जाता है, तब भले ही परिवार को नहीं कहकर जाता हो, लेकिन फेसबुक पर बताकर ही निकलता है। किसी भी शुभ अवसर या पर्व पर जितनी बधाई फेसबुक पर दी जाती है, उतनी फेस टु फेस कहां दी जाती है? भले ही आपको अपना बर्थ डे याद न रहे। लेकिन आप फेसबुक पर हैं, तो आपके फेसबुक मित्रों को अवश्य याद रहता है। चाहे परिजन, यार, रिश्तेदार बधाई न दें, पर वे दुनिया के किसी भी कोने में हो, मुबारकबाद देना कभी नहीं भूलते। मेरे जैसा तो सोशल मीडिया पर ही डिजिटल केक काटकर अपने जन्मदिन को यादगार बना लेता है।.
लेखकों को ही देख लीजिए, परंपरागत कागज, कलम, दवात छोड़कर, सोशल मीडिया पर मोबाइल की-बोर्ड के जरिए ही रचना कर्म और रचना धर्म निभा रहे हैं। वहां चुटकुलेबाजों और अफवाहबाजों से उनकी स्पद्र्धा जारी है। कल तक जो श्रोता और पाठक ढूंढ़ते थे, आज सुबह शाम फॉरवर्ड हो रहे हैं। हिसाब लगाया जा रहा है कि एक आह के असर होने तक कितने फॉरवर्ड की जरूरत होती है।
वधू की मुंहदिखाई की रस्म भी बदल चुकी है। दुल्हन
ससुराल नहीं पहंुचती, उससे
पहले सोशल मीडिया पर बगैर नेग दिए ही पूरी दुनिया उसका मुंह देख लेती है। आजकल तो
प्रथम पूज्य गणपतिजी की जगह भी सोशल मीडिया ने ले ली है। हम शादी का निमंत्रण पत्र
गणपतिजी से पहले किसी न किसी को तो वाट्सएप पर भेज देते हैं। अब किसी से जन्म-मरण
की भी जानकारी लेने की जरूरत नहीं। नवजात को सबसे पहले हम सोशल मीडिया के दर्शन
कराते हैं। पूरी दुनिया को पता पड़ जाता है कि फलाना सिंह बाप बन गया है। इसी तरह, मृतक व्यक्ति परलोक गमन
नहीं करता, उससे
पहले उसका आगमन सोशल मीडिया पर होता है। श्रद्धांजलि सभा से पहले ही इतनी
श्रद्धांजलि दे दी जाती है कि मृतक की आत्मा तृप्त हो जाती है।
20 Feb 2019
मुसीबत में ईमानदारी को दुआ-सलाम
ईमानदारी भी एक बला
ही है,जिसके गले पड़ी तो बस पड़ ही गयी। वही एक दिन गले की फाँस बन जाती है। जबकि
इसकी सगी बहन बेईमानी हाय-हैलो करने वालों के भी गले का हार बनकर रहती है। इस
दुनियादारी में ईमानदारी की कदर भी रत्ती भर की है! बेईमानी की कदर ही कदर है। बेईमानी
को तो बिना कार्य के भी हाथ जोड़कर नमस्कार करते हैं और ईमानदारी को तो
मुसीबत में भी दुआ सलाम नहीं करते हैं। तब भी बेईमानी को ही याद करते हैं।
आप
खुद ही देख लीजिए। सौ में से ज्यादा बेईमानी के ही अनुयायी मिलेंगे। वे भी
ईमानदारी को कोसते हुए और बेईमानी का गुणगान करते हुए मिलेंगे। फिर भी ईमानदारी
परवाह नहीं है। बल्कि इतराती हुई चलती है।
इतना
भी नहीं सोचती-समझती है। जिसकी सरकार होती है उसी की जय-जयकार होती है। बेईमानी की
तो हर सरकार में सांठगांठ होती है। नेताओं की तो यह खास है। उनके साथ उठना-बैठना
इसकी दिनचर्या का हिस्सा है। राजनीति से जुड़े हुए इसके कई किस्से हैं। यहाँ पर
बताना का अभिप्राय है बेईमानी से दुश्मनी मोल लेना।
ईमानदारी
का हमारा भी एक परम मित्र परम भक्त है। उसके तो रक्त में भी
ईमानदारी कूट-कूटकर भरी है। ब्लड बैंक वाले भी उससे द्वारा किया रक्तदान को नहीं लेते हैं।
लेकर क्या करें? उसके ब्लड ग्रुप का ब्लड लेने कोई आता
ही नहीं। वह दिनभर में दो ही
काम करता हैं। पहला वक्त की कद्र करना सिखाता है और दूसरा ईमानदारी का पाठ पढ़ाता
है। जिससे उसका घर खर्च भी नहीं चल पाता है। बीवी-बच्चे समझाते भी खूब है।
ईमानदारी में क्या रखा है? सिर्फ और सिर्फ भलाई। भलाई
से पेट नहीं भरता है। बेईमानी का दामन पकड़ ले,कमाई ही कमाई
है। मैं भी बड़ा होने के नाते खूब समझाता हूँ। मैं तूझ से बड़ा हूँ,तेरे भले के लिए कह रहा हूँ। इतना सुनते ही वह कविता करने लग जाता है।
बड़ा हुआ तो,क्या हुआ। तूने ईमानदारी का पाठ तो नहीं पढ़ा।
जिसने ईमानदारी का पाठ नहीं पढ़ा। वह भले ही साठ पार का ही क्यों ना हो।
मित्र
को कौन समझाए! ज़िंदगी की पुस्तक में ईमानदारी का जो पाठ होता है। वह बड़ा दुरूह होता है।
जल्दी सी हर कोई पढ़ ही नहीं सकता है। अगर किसी ने ईमानदारी का पाठ पढ़ भी लिया तो
उसके याद नहीं हो पाता है और किसी ने मन लगाकर याद भी कर लिया तो कंठस्थ नहीं होता
है और किसी ने दृढ़ निश्चय करके कंठस्थ भी कर लिया तो उसे हर रोज एक नई परीक्षा
देनी पड़ती हैं। इसलिए लोग ईमानदारी का पाठ पढ़ने के बजाय बेईमानी की कहानी पढ़ने
में रुचि रखते हैं। पहली बात तो बेईमानी की परीक्षा नहीं होती। अगर किसी दिन देनी
भी पड़ जाए तो नकल-वकल करके पास हो जाते हैं।
मित्र
बेईमानी की कहानी भी तो नहीं पढ़ता। अन्यथा अच्छी खासी कमाई कर ही सकता है। क्योंकि बेईमानी की कहानी में नकल नानी,जुगाड़ मामा और
रिश्वत परियों की कहानी होती है। जो कि एक बार पढ़ने पर ही मुँहज़बानी रहती है,
जिनको सुनाकर कम से कम घर गृहस्थी का खर्च तो आसानी से निकाल ही सकता है। लेकिन
जिस पर ईमानदारी का भूत सवार होता है। वह सौ बार फेल हो जाए तो भी ईमानदारी के
पढ़े हुए पाठ पर ही चलेगा। चाहे सिर कट जाए या धड़ अलग हो जाए। मगर जब तक जीएगा।
तब तक ईमानदारी की ही माला फेरता रहेगा। फिर चाहे माला गले की फांस ही क्यूं न बन
जाए?
18 Feb 2019
16 Feb 2019
9 Feb 2019
8 Feb 2019
शराब
अंशु ने शराब को मुँह क्या लगाया,वह तो उसके सिर पर ही चढ़ गई है। किसी को कुछ समझती ही नहीं है,जो मुँह में आया वहीं बकने लग जाती है। बेवजह ही किसी से भी भिड़ जाती
है। भिड़ंत होती दिखती है, तो अंशु को आगे कर
देती है और खुद पतली गली से खिसक लेती है। पता नहीं
क्या जादू-टोना कर रखा है,अंशु को तो ख्वाब में भी शराब ही दिखाई देती है। जबकि शराब उसे बर्बाद करने पर
तुली हुई है। रोज बोतल मांगती है। मना करते हैं तो मरने मारने की धमकी देती है। समझाते हैं तो गाली गलौज से पेश आती
है। अंशु और शराब का तो सूर्यास्त के साथ ही पीने का सिलसिला शुरू हो जाता है और देर रात तक चलता है।
कल
तक अंशु शराब से दोस्ती खराब बताता था। आज उसी के संग झूम रहा है। बोलता है कि
शराब है तो शबाब है,वरना जिंदगी वीरान है। शराब ही तो
है जो सुख-दुख की संगी-साथी है। खुशी
में खुशी जताने के लिए और गम में गम बुझाने के लिए शराब
का एक प्याला भी बहुत राहत प्रदान करता है। जबकि शराब का प्याला इतना बदमाश है कि पीने
वाला जब तक मतवाला नहीं हो जाए तब तक उसे पिलाता रहता है। क्योंकि पीने वाला जब तक टल्ली
नहीं हो जाए,उसे मजा ही नहीं आता है। अंशु तो ऐसा है कि टल्ली होने के बाद अपना घर ही नहीं,पूरी
गली को सिर पर उठा लेता है। जब तक गली वाले उसके नशे का चकनाचूर नहीं कर
दें,तब तक शांत नहीं होता है। एक बार गिर गया न तो भारतीय मुद्रा की
तरह गिरता ही रहता है। कई बार तो घरवालों और गलीवालों से भी नहीं उठता है।
पुलिस उठाकर ले जाती है तब उठता है।
पहले
यदा-कदा पीता था और अब सदा मदहोश रहता है। मदहोशी में शराब के सिवाय किसी की भी
नहीं सुनता है। जबकि शराब उस वक्त, उस
पर बॉस की तरह हुक्म चलाती है। अंशु शराब के आदेश को सर आँखों पर रखता है। जैसा शराब कहती है,वैसा ही करता है। कोई बीच में
टोकाटाकी करता है तो उसका टेंटुआ दबाने की कोशिश करता
है। इसलिए वह जो भी करता है,घरवाले चुपचाप देखते रहते
हैं। अंशु के घरवालों को मौन देखकर शराब बहुतप्रफुल्लित होती है। क्योंकि शराब की एक ही मंशा है,पीने वाले
आबाद आदमी की बर्बादी। अंशु तो कब का ही बर्बादी की राह पर चल रहा है। बस अब तो
मंजिल नजदीक है।
घर
में कुछ नहीं बचा है। सब कुछ बेच डाला है। राम का नाम जपने की जपमाला तक को नहीं
छोड़ा है। उसे भी एक दिन एक पव्वे में बेच दिया।
5 Feb 2019
4 Feb 2019
3 Feb 2019
समस्या-समाधान
व्यक्ति
रोज अनेकानेक समस्याओं से लड़ता है। इस
दौरान कभी हारता है तो
कभी जीतता है। समस्याओं की हार-जीत
से छूटकारा पाने के लिए,वह घर बैठे समाधान चाहता है।
भले ही खर्चा-पानी चार गुना लग जाए। लेकिन समस्या का समाधान घर बैठे-बिठाए ही होना
चाहिए।
आजकल
घर बैठे समाधान करने वाले भी,हर जगह दुकान खोले बैठे हैं।
इन्होंने भी अपना जाल ऑनलाइन से लेकर ऑफलाइन तक फैला रखा है। ग्राहक को पटाने के
तमाम नायाब तरीकों से इनकी दुकान नहीं, बल्कि गोदाम भी
हमेशा खचाखच भरा रहता है। कैसे भी करके एक बार ग्राहक
दुकान पर आ जाए। उसके बाद में समाधान की इतनी वैरायटी
लाकर रख देंगे। बिना खरीदे जा ही नहीं सकता। क्योंकि यह समाधान के साथ गारंटी का
दावा भी करते हैं।
यह
अपना एडवर्टाइजमेंट कुछ इस तरह से करते हैं। गृह-क्लेश,आपसी मनमुटाव,पति-पत्नी
में अनबन, गुप्त रोगी आदि इत्यादि समस्याओं का गारंटी के साथ घर बैठे समाधान। फलाने गुरुजी द्वारा तैयार
किया कवच मंगवाए। उसे पहनिए और समस्याओं से छूटकारा पाए। समस्या का समाधान नहीं हो तो पूरे पैसे वापस। तो देर किस बात की मोबाइल
उठाइए और नीचे स्क्रीन पर दिए गए नंबरों पर लगाइए और घर बैठे हमारा प्रोडक्ट मंगवाए। जब टीवी स्क्रीन पर इस तरह का विज्ञापन बार-बार
आता है तो लोग उसे ललचाए निगाहों से देखते हैं। और देखते-देखते ही ऑडर कर देते
हैं।
चाचा
ग्यारसी लाल कई दिनों से किसी समस्या से जूझ रहे थे। चाचा ने लगा दिया फोन। एक
सप्ताह उपरांत आया पार्सल। चाचा ने पार्सल खोला। पार्सल में घास-फूस और एक चिट्ठी
थी। जिस तरह बस में लिखा हुआ होता है,‘सवारी अपने सामान की रक्षा
स्वयं करें।’ उसी तरह चिट्ठी में लिखा हुआ था,‘अपनी समस्या का समाधान स्वयं करें।’ यह पढ़कर
चाचा अपना सिर पीटने लगे।
मैंने
कहा,‘चाचाश्री! सिर पीटने
से अब कुछ नहीं होगा। ऐसे समाधान होने लगे तो पता है न आपको देश में कितनी
समस्याएं हैं। गिनाने लगे तो सुबह से शाम हो जाएगी। अगर ऐसे समाधान होते तो हमें
दुश्मन से लड़ने की जरूरत ही नहीं होती। समस्याओं का ऐसे समाधान होने लगता तो
मुल्क में भ्रष्टाचार, महंगाई, बेरोजगारी,ऐसे
खुलेआम नहीं घूमती। खूँटे से बँधी हुई रहती। हमारे यहाँ तो टोल फ्री हेल्प लाइन पर समस्याओं का समाधान नहीं होता। सौ बार फोन लगाओं
तो बड़ी मुश्किल से एक बार लगता है। जब तक पूरी जन्म कुण्ड़ली नहीं जान लेंगे
उससे पहले शिकायत दर्ज नहीं करते। शीघ्र आपकी समस्या का समाधान कर दिया जाएंगा।
यह कहकर पूरी बात सुनने से पहले फोन काट देते हैं।’
चाचा
बोले,‘बेटे मेरे तीन हजार रुपए का क्या होगा?’
मैंने
चाचा को सांत्वना देते हुए कहा,‘जिस तरह श्मशान में गई हुई
लकड़ी वापस नहीं आती। उसी तरह उनके पास गए हुए पैसे वापस नहीं आते। भूल जाओं। ’
चाचा
बोले,‘ ऐसे-कैसे भूल जाए? खून-पसीने
की कमाई थी। कुछ कीजिए। इस समस्या का समाधान आप ही कर
सकते है।’
मैंने
कहा,‘ चाचाश्री! कमाई चाहे खून-पसीने
की हो या बेईमानी की। आपकी इस समस्या एकमात्र समाधान
भूलना ही है। बाकी आप चाहे जो कर लो। उनका बाल भी बांका
नहीं होगा। बल्कि आपकी जेब से हजार-दो और लग जाएंगे।’
मेरा
पड़ोसी भी एक बार झांसे में आ गया था। उसके घर पर चूहों ने हमला बोल दिया था। एक
व्यक्ति चूहे मारने की दवा बेच रहा था। उसने उससे दस पैकेट खरीदे। घर आकर खोले तो
हर पैकेट में एक ही बात लिखी हुई थी,चूहे पकड़िए और मारिए। आप भी
ऐसे समाधानों से दूर रहेंगे तो बेहतर है। अन्यथा चाचा ग्यारसीलाल की तरह ठगे जाओगे।
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