23 Feb 2019

सोशल मीडिया का रचना कर्म

कल तक जो श्रोता और पाठक ढूंढ़ते थे, आजकल वे हर सुबह शाम फॉरवर्ड हो रहे हैं।
जो सोशल मीडिया पर अपडेट रहता है, वह कहीं बाहर जाता है, तब भले ही परिवार को नहीं कहकर जाता हो, लेकिन फेसबुक पर बताकर ही निकलता है। किसी भी शुभ अवसर या पर्व पर जितनी बधाई फेसबुक पर दी जाती है, उतनी फेस टु फेस कहां दी जाती है? भले ही आपको अपना बर्थ डे याद न रहे। लेकिन आप फेसबुक पर हैं, तो आपके फेसबुक मित्रों को अवश्य याद रहता है। चाहे परिजन, यार, रिश्तेदार बधाई न दें, पर वे दुनिया के किसी भी कोने में हो, मुबारकबाद देना कभी नहीं भूलते। मेरे जैसा तो सोशल मीडिया पर ही डिजिटल केक काटकर अपने जन्मदिन को यादगार बना लेता है।.

लेखकों को ही देख लीजिए, परंपरागत कागज, कलम, दवात छोड़कर, सोशल मीडिया पर मोबाइल की-बोर्ड के जरिए ही रचना कर्म और रचना धर्म निभा रहे हैं। वहां चुटकुलेबाजों और अफवाहबाजों से उनकी स्पद्र्धा जारी है। कल तक जो श्रोता और पाठक ढूंढ़ते थे, आज सुबह शाम फॉरवर्ड हो रहे हैं। हिसाब लगाया जा रहा है कि एक आह के असर होने तक कितने फॉरवर्ड की जरूरत होती है। 
वधू की मुंहदिखाई की रस्म भी बदल चुकी है। दुल्हन ससुराल नहीं पहंुचती, उससे पहले सोशल मीडिया पर बगैर नेग दिए ही पूरी दुनिया उसका मुंह देख लेती है। आजकल तो प्रथम पूज्य गणपतिजी की जगह भी सोशल मीडिया ने ले ली है। हम शादी का निमंत्रण पत्र गणपतिजी से पहले किसी न किसी को तो वाट्सएप पर भेज देते हैं। अब किसी से जन्म-मरण की भी जानकारी लेने की जरूरत नहीं। नवजात को सबसे पहले हम सोशल मीडिया के दर्शन कराते हैं। पूरी दुनिया को पता पड़ जाता है कि फलाना सिंह बाप बन गया है। इसी तरह, मृतक व्यक्ति परलोक गमन नहीं करता, उससे पहले उसका आगमन सोशल मीडिया पर होता है। श्रद्धांजलि सभा से पहले ही इतनी श्रद्धांजलि दे दी जाती है कि मृतक की आत्मा तृप्त हो जाती है। 

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