20 Feb 2019

मुसीबत में ईमानदारी को दुआ-सलाम


ईमानदारी भी एक बला ही है,जिसके गले पड़ी तो बस पड़ ही गयी। वही एक दिन गले की फाँस बन जाती है। जबकि इसकी सगी बहन बेईमानी हाय-हैलो करने वालों के भी गले का हार बनकर रहती है। इस दुनियादारी में ईमानदारी की कदर भी रत्ती भर की है! बेईमानी की कदर ही कदर है। बेईमानी को तो बिना कार्य के भी हाथ जोड़कर नमस्कार करते हैं और ईमानदारी को तो मुसीबत में भी दुआ सलाम नहीं करते हैं। तब भी बेईमानी को ही याद करते हैं। 
आप खुद ही देख लीजिए। सौ में से ज्‍यादा बेईमानी के ही अनुयायी मिलेंगे। वे भी ईमानदारी को कोसते हुए और बेईमानी का गुणगान करते हुए मिलेंगे। फिर भी ईमानदारी परवाह नहीं है। बल्कि इतराती हुई चलती है।
इतना भी नहीं सोचती-समझती है। जिसकी सरकार होती है उसी की जय-जयकार होती है। बेईमानी की तो हर सरकार में सांठगांठ होती है। नेताओं की तो यह खास है। उनके साथ उठना-बैठना इसकी दिनचर्या का हिस्सा है। राजनीति से जुड़े हुए इसके कई किस्से हैं। यहाँ पर बताना का अभिप्राय है बेईमानी से दुश्मनी मोल लेना।
ईमानदारी का हमारा भी एक परम मित्र परम भक्त है। उसके तो रक्त में भी ईमानदारी कूट-कूटकर भरी है। ब्लड बैंक वाले भी उससे द्वारा किया रक्तदान को नहीं लेते हैं। लेकर क्या करेंउसके ब्लड ग्रुप का ब्लड लेने कोई आता ही नहीं। वह दिनभर में दो ही काम करता हैं। पहला वक्त की कद्र करना सिखाता है और दूसरा ईमानदारी का पाठ पढ़ाता है। जिससे उसका घर खर्च भी नहीं चल पाता है। बीवी-बच्‍चे समझाते भी खूब है। ईमानदारी में क्‍या रखा हैसिर्फ और सिर्फ भलाई। भलाई से पेट नहीं भरता है। बेईमानी का दामन पकड़ ले,कमाई ही कमाई है। मैं भी बड़ा होने के नाते खूब समझाता हूँ। मैं तूझ से बड़ा हूँ,तेरे भले के लिए कह रहा हूँ। इतना सुनते ही वह कविता करने लग जाता है। बड़ा हुआ तो,क्‍या हुआ। तूने ईमानदारी का पाठ तो नहीं पढ़ा। जिसने ईमानदारी का पाठ नहीं पढ़ा। वह भले ही साठ पार का ही क्‍यों ना हो।
मित्र को कौन समझाए! ज़िंदगी की पुस्तक में ईमानदारी का जो पाठ होता है। वह बड़ा दुरूह होता है। जल्दी सी हर कोई पढ़ ही नहीं सकता है। अगर किसी ने ईमानदारी का पाठ पढ़ भी लिया तो उसके याद नहीं हो पाता है और किसी ने मन लगाकर याद भी कर लिया तो कंठस्थ नहीं होता है और किसी ने दृढ़ निश्चय करके कंठस्थ भी कर लिया तो उसे हर रोज एक नई परीक्षा देनी पड़ती हैं। इसलिए लोग ईमानदारी का पाठ पढ़ने के बजाय बेईमानी की कहानी पढ़ने में रुचि रखते हैं। पहली बात तो बेईमानी की परीक्षा नहीं होती। अगर किसी दिन देनी भी पड़ जाए तो नकल-वकल करके पास हो जाते हैं।
मित्र बेईमानी की कहानी भी तो नहीं पढ़ता। अन्यथा अच्छी खासी कमाई कर ही सकता है। क्योंकि बेईमानी की कहानी में नकल नानी,जुगाड़ मामा और रिश्वत परियों की कहानी होती है। जो कि एक बार पढ़ने पर ही मुँहज़बानी रहती है, जिनको सुनाकर कम से कम घर गृहस्थी का खर्च तो आसानी से निकाल ही सकता है। लेकिन जिस पर ईमानदारी का भूत सवार होता है। वह सौ बार फेल हो जाए तो भी ईमानदारी के पढ़े हुए पाठ पर ही चलेगा। चाहे सिर कट जाए या धड़ अलग हो जाए। मगर जब तक जीएगा। तब तक ईमानदारी की ही माला फेरता रहेगा। फिर चाहे माला गले की फांस ही क्‍यूं न बन जाए?

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