5 Mar 2019

किस्मत का खेल और बेचैनी



सब किस्मत का खेल है। जब से यह सुना है,तब से किस्मत का खेल खेलने के लिए बेचैन हूँ। लेकिन मौका नहीं मिल रहा है। दसवीं क्लास से ही मौके की तलाश में हूँ। बस एक बार मौका मिल जाए तो मेरा भी नसीब चमक जाए,मैं भी तकदीरवाला बन जाऊंगा,मेरी भी हथेली पर भाग्य की लकीर है। मौके को पाने के चक्कर में मैंने धोखे भी बहुत खाए हैं। गणना की जाए तो धोखा खाने का वर्ल्ड रिकॉर्ड मेरे ही नाम पर गिनीज बुक में दर्ज हो।
कहने वाले कहते हैं कि जब किस्मत का ताला खुलता है न तो ऊपरवाला छप्पर फाड़कर देता है। लेकिन मैंने तो किस्मत पर ताला लगा ही नहीं रखा है। मेरी किस्‍मत के दरवाजे तो क्‍या होने थे,घर के दरवाजे में ढंग से सांकल नहीं लगी है। अलबत्‍ता उनमें झिर्रियां बहुतायत में हैं।   वैसे भी मेरे पास कौन सा भाग्य का खजाना है। जिसको लुटेरे लूट ले जाएंगे। इतना ही नहीं मैंने तो अपना छप्पर भी फाड़ रखा है। ताकि ऊपरवाले को देने में कष्ट नहीं हो। फिर भी ऊपरवाला देने में देरी कर रहा है। पड़ोसी कहता हैं कि भगवान के घर में देर है अंधेर नहीं। मगर मेरे तो घर में बिजली के बावजूद भी अंधेरा है। मित्र कहता है कि सब्र रख,सब्र का फल मीठा होता है। आज नहीं तो कल किस्मत चमकेगी। मित्र को कैसे बताऊं कि मुझे सब्र के मीठे फल के बजाय बेसब्री फल पसंद है। फिर चाहे वह कड़वा क्यों ना हो?c
आप सोच रहे होंगे। भला किस्मत का भी कोई खेल होता है। मैं आपको बता दूं कि खेल चाहे कोई भी हो। उसमें असली खेल ही किस्मत का होता है। जो अपने प्रिय खेल का खिलाड़ी होने के साथ किस्मत के खेल का भी खिलाड़ी है। उसकी तो हर हाल में जीत होती है। यकीन नहीं है तो कभी आजमाकर देख लेना। लेकिन आजमाने से पहले यह जरूर जान लेना खिलाड़ी है या अनाड़ी है। क्योंकि किस्मत के खेल के भी कुछ खिलाड़ी अनाड़ी होते हैं। उनको भाग्य पर भरोसा नहीं होता है। वो अपने दम पर ही फ़तह चाहते हैं।
ऐसा भी नहीं है कि मैं हाथ पर हाथ रखकर बैठा हूँ। रोज भाग्य से लड़ रहा हूँ। हाथ जोड़कर विनती करता हूँ, मुझे भी किस्मत का खेल खेलना है। लेकिन वह रोज मुझे लताड़कर भगा देता है। बोलता है कि अभी तेरा भाग्य साथ नहीं दे रहा है। जिस दिन साथ देगा। उस दिन तुझे भी खेलने का पूरा मौका दूंगा। मैं अपने भाग्य से भी रोज पूछता हूँ कि मेरा साथ क्यों नहीं देता है। बोलता है कि मेहनत के बिना मैं किसी का साथ नहीं देता हूँ। मेहनत है कि भाग्य से रूठी हुई है। बोलती है कि परिश्रम मैं करती हूँ और श्रेय उसे मिलता है। तुम भी सफल होन के बाद औरों की तरह कह दोगे, यह तो मेरे भाग्य में लिखा था। कमबख्त कोई यह  नहीं कहता कि मेहनत का फल मिला था। जबकि सारा खेल मेरा होता है। 
लेकिन मेरा जो जुनून है। वह मुझे हिम्मत देता है। कभी हतोत्साहित नहीं होने देता है। कहता है कि किसी से भी अनुनय-विनय मत कर। बस मेहनत की सुन,जैसा वह कहती है, वैसा करता रह। देखना, एक न एक दिन भाग्य साथ देगा। आज नहीं तो कल तू भी किस्मत के खेल का खिलाड़ी होगा। मौका भी आएगा और चौका भी मारेगा।

No comments: