बचपन
में एक ज्योतिषी महाराज ने मुझे बताया था कि तुम्हारी हस्तरेखाओं में भाग्य
की रेखा तो बड़ी भाग्यवान हैं। कहीं से भी कटी-फटी हुई नहीं है। न टेढ़ी-मेढ़ी है।बिल्कुल सीधी सट्ट है। हथेली पर आड़ी तिरछी खींची हुई लकीरों में कौन सी लकीर भाग्य वाली है।
मुझे तो आज तक पता नहीं लगा है। लेकिन मैंने जब से यह
सुना है कि सब किस्मत का खेल है। तभी से किस्मत का खेल
खेलने के लिए बेचैन हूँ। बस मौका नहीं मिल रहा है। कैसे
भी करके एक बार मौका मिल जाए तो मेरा भी नसीब चमक जाए। क्योंकि मेरी हथेली पर
भाग्य की लकीर है।
लोग
कहते हैं कि जब किस्मत का ताला खुलता है न तो ऊपरवाला छप्पर फाड़कर देता है। मगर
मैंने तो किस्मत पर ताला भी नहीं लगा रखा है। लगाऊंगा कहां से मेरी किस्मत के दरवाजे की तो छोड़िए,मेरे तो घर के
दरवाजे में ढंग से सांकल नहीं लगी हुई है,जो कि मैं अपनी
किस्मत पर ताला लगाऊंगा। वैसे भी ताला तो वे लोग लगाते हैं जिनके पास खजाना होता है। जिसका उन्हें चोरी होने का भय रहता
है। मेरा तो वैसे ही कंगाली में आटा गिला हो रहा है। सच
पूछिए तो मैंने अपना छप्पर भी फाड़ रखा है। ताकि
ऊपरवाले को देने में किसी तरह का कष्ट नहीं हो। फिर भी ऊपरवाला देने में देरी कर
रहा है। पता नहीं ऊपरवाले की फेहरिस्त में मेरा नंबर कितने नंबर पर हैं, जो कि आ ही नहीं रहा है। या जानबूझकर नंबर नहीं लिया जा रहा हैं। मुझे तो
यह भी पता नहीं सूची में मेरा नंबर है भी या नहीं। कहीं मैं वैसे ही तो प्रतीक्षा
नहीं कर रहा हूँ। मेरे पास ऊपरवाले
के संपर्क सूत्र भी तो नहीं हैं। अन्यथा पूछताछ कर ही लेता। फेसबुक पर भी तो नहीं है। होते तो फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजकर,इनबॉक्स में चैट करके मामला सेट कर लेता।
मेरा
पड़ोसी कहता हैं कि भगवान के घर में देर है अंधेर नहीं। मगर मेरे तो घर में बिजली
के बावजूद भी अंधेरा छाया हुआ है। मित्र कहता है कि सब्र
रख,सब्र का फल मीठा होता है। आज नहीं तो कल तेरी भी किस्मत
चमकेगी। मित्र को कैसे बताऊं कि मुझे सब्र के मीठे फल के बजाय बेसब्री फल पसंद है। फिर
चाहे वह कड़वा ही क्यों ना हो? मैं खा लूंगा। खाने के
बाद डकार तक नहीं लूंगा।
आप सोच रहे होंगे। भला किस्मत का भी कोई खेल होता है। भाई साहब! चाहे खेल कोई भी हो। उसमें असली खेल ही किस्मत
का होता है। जो अपने प्रिय खेल का खिलाड़ी होने के
साथ-साथ किस्मत के खेल का भी खिलाड़ी है। उसकी तो हर हाल में जीत ही होती है। भले ही खेल का खिलाड़ी अनाड़ी हो पर किस्मत के खेल का असली खिलाड़ी है तो उसे कोई
भी माई का लाल पराजित नहीं कर सकता। विश्वास नहीं है तो कभी किसी किस्मत के
खिलाड़ी के साथ अपना भाग्य आजमाकर देख लेना। चारों खाने चित नहीं आओ तो कहना।
ऐसा नहीं है कि मैं हाथ पर हाथ रखकर बैठा हूँ। रोज भाग्य से लड़
रहा हूँ। उससे हाथ जोड़कर विनती करता हूँ। मुझे भी
किस्मत का खेल खेलना है। मैं भी किस्मत के खेल का खिलाड़ी बनना चाहता हूँ। लेकिन
भाग्य है कि रोज मुझे लताड़कर खदेड़ने में रहता है। जैसे तैसे हिम्मत जुटाकर पूछता
हूँ तो बोलता है कि अभी तेरा नसीब साथ नहीं दे रहा है। जिस दिन साथ देगा। उस दिन
से तुझे भी खेलने का मौका दूंगा। ऐसा शायद ही कोई दिन
गया होगा कि मैं अपने नसीब से यह नहीं पूछता हूँ कि मेरा साथ क्यों नहीं देता है?
रोज उसका एक ही जवाब होता है कि मैं
मेहनत के बगैर किसी के भी साथ नहीं देता हूँ। यह बात तेरी खोपड़ी में बैठती क्यों
नहीं। जो कि रोज-रोज पूछता है। आदत से लाचार है क्या? मेहनत से पूछता हूँ तो वह नसीब का ठीकरा मेरे सिर पर फोड़ती है। बोलती है कि तेरा नसीब ही खराब है।
मैं तो अपनी तरफ से पूरी कोशिश करती हूँ। तेरे लिए तो जी तोड़ परिश्रम करती हूँ।
उसके बावजूद भी तेरा नसीब साथ नहीं देता तो मैं क्या
करूं?
समझ में यह नहीं आता है कि नसीब और मेहनत के बीच में ऐसा कौन सा
छत्तीस का आंकड़ा फंसा हुआ है। जो कि मेरे भाग्य का
ठीकरा एक-दूसरे के सिर पर फोड़ते हैं। मुझे साफ-साफ
क्यों नहीं कह देते। यह खामियां हैं। इन्हें पूरी कीजिए। ग्रह नक्षत्रों के कारण बाधा आ रही है। किसी
ज्योतिषी से सलाह मशवरा करके निवारण कीजिए। लगता है कि यह तो बताने से रहें। मुझे
ही कुछ करना होगा। क्योंकि मैं भी हार मानने वालों में नहीं हूँ। किस्मत का खेल तो
खेल कर ही रहूंगा। फिर चाहे अंजाम जो भी हो। देखा
जाएगा।
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